300 लड़कियां बताएंगी लव जिहाद की हकीकत...

वृजेन्द्रसिंह झाला
वे हिन्दुत्व पर अपनी बातें पुरजोर तरीके से रखते हैं, लेकिन सधे हुए अंदाज में। जब हिन्दी भाषा की बात आती है तो वे चेतन भगत को मिलावटखोर कहने में तनिक भी नहीं हिचकते हैं,
लव जिहाद पर उनके तेवर तीखे हो जाते हैं। वर्तमान पीढ़ी में हिन्दुत्व की शिक्षा की कमी की चिंता उनके चेहरे पर साफ दिखाई पड़ती है। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार से भी उनकी यही अपेक्षा है कि अब तो कम से कम वर्षों से उपेक्षित हिन्दू समुदाय के हित में फैसले लिए जाएं। हम बात कर रहे हैं हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता रमेश शिन्दे की, जिन्होंने इंदौर प्रवास के दौरान वेबदुनिया से देश, समाज और धर्म से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर खुलकर चर्चा की।

रमेश शिंदे कहते हैं कि लव जिहाद को सबसे पहले हिन्दुस्तान में वर्ष 2009 में पुस्तक के माध्यम से हम सामने लाए थे। हालांकि इससे सिर्फ हिन्दुस्तान ही पीड़ित नहीं है, यह पूरी दुनिया में चल रहा है। 29 सितंबर 2009 को लंदन के पुलिस कमिश्नर सर इयान ब्लेयर ने सबसे पहले बताया था कि लव जिहाद चल रहा है। यह पूरे विश्व के लिए समस्या है। अपनी बात के समर्थन में शिंदे कहते हैं कि मोदी जी की सभा में जो पटना में बम विस्फोट हुआ था उसका पूरा फायनेंस कर्नाटक की आयशा बानो नामक लड़की के नाम से हुआ था, जिसका असली नाम आशा है। पहले उसको धर्मांतरित किया गया फिर उसके नाम से 30 अकाउंट खोले गए, जिसका उसे पता भी नहीं था। फिर उन खातों में आतंकवादियों की मदद के लिए पाकिस्तान और सऊदी से लगभग 5 करोड़ रुपए डाले गए। आतंकवादी तो भाग गए, मगर आयशा जेल में है। 
 
वे कहते हैं प्यार-मोहब्बत जैसी कोई चीज नहीं है। हिन्दू लड़कियों का आतंकवाद के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है कि इसकी राष्ट्रीय स्तर पर जांच होनी चाहिए। यदि जांच कमेटी बैठती है तो हम पूरी सहायता करने के लिए तैयार हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथसिंह के उस बयान कि मुझे तो कहीं लव जिहाद दिखाई नहीं देता, शिंदे कहते हैं कि यदि उन्हें दिखाई नहीं देता तो हम उन्हें दिखाने को तैयार हैं। आप हमें बुलाइए, हमसे पूछिए। जल्द ही हम लव जिहाद में फंसी 300 लड़कियों को पार्लियामेंट के बाहर लेकर जाने वाले हैं और उन्हें दिखाने वाले हैं कि यह है लव जिहाद। 
 
मिलावटखोर है चेतन भगत :  चेतन भगत द्वारा देवनागरी को रोमन में लिखे जाने संबंधी बयान पर शिंदे कहते हैं कि पहली बात तो यह कि भाषा की शुद्धता का ही प्रचार होना चाहिए, लेकिन कुछ लोगों को व्याकरण पढ़ना अच्छा नहीं लगता, उन्हें मिलावटखोरी ज्यादा अच्छी लगती है। मुझे लगता है कि चेतन भगत मिलावटखोर हैं और सरकार भी कहती है कि लोगों को मिलावटखोरों से दूर रहना चाहिए। वे चेतन पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘गीतां‍जलि’ के लिए साहित्य का जो नोबेल पुरस्कार मिला था, वह उन्होंने बंगाली में लिखी थी, न कि रोमन में। वे कहते हैं कि हमें अपनी भाषा का अभिमान नहीं छोड़ना चाहिए। 
 
शिंदे कहते हैं कि हिन्दू धर्म की शिक्षा सभी हिन्दुओं को मिलनी चाहिए। हम इस दिशा में कोशिश भी कर रहे हैं। हमारे हजारों धर्म शिक्षा वर्ग देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे हैं। वे कहते हैं कि कुछ गलत चीजें भी हमारे यहां हो रही हैं। गणेशोत्सव और नवरा‍त्र में धर्म नहीं बचा है। वहां दारू पीकर नाचने या जुआ खेलने से गणेश जी प्रसन्न नहीं होते हैं। मनोरंजन और धर्म दोनों अलग हैं। धर्म का शुद्धता से पालन किया जाना चाहिए।
 
वे कहते हैं कि हिन्दू जनजागृति समिति के माध्यम से विभिन्न अदालतों में याचिकाएं भी दायर की जाती हैं। मुंबई के आजाद मैदान दंगा मामले में भी समिति ने अपील की थी, जिस पर अदालत ने रजा अकादमी को 1.75 करोड़ का दंड भरने का आदेश दिया। संस्था की कोशिश है कि सभी हिन्दू संगठन एक मंच पर आएं। 
 
ऐसे बनेगा भारत हिन्दू राष्ट्र : भारत को 2022 तक हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात पर शिंदे कहते हैं कि बाबा साहब ने संविधान बनाते समय उसमें सेक्युलर शब्द का उल्लेख नहीं किया था। आपातकाल के दौरान संशोधन करके इसमें सेक्युलर शब्द डाला गया। 1971 में जब बांग्लादेश बना था तो वह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था, लेकिन वहां के लोगों का प्रभाव बढ़ने से 1978 में बांग्लादेश मुस्लिम राष्ट्र बन गया। वे कहते हैं कि जनता का आधार सबसे बडा होता है। जब बांग्लादेश में ऐसा हो सकता है कि भारत में क्यों नहीं? हालांकि वे यह भी कहते हैं कि हिन्दू राष्ट्र की संकल्पना में हमने यह कभी नहीं कहा हिन्दू राष्ट्र में अन्य धर्मों के लोग नहीं रह सकते। यह सिर्फ मुल्लाओं और पादरियों का प्रचार है। 
 
... और क्या है फिल्म पीके का आतंकवाद कनेक्शन... पढ़ें अगले पेज पर....

आमिर खान अभिनीत फिल्म पीके को हिन्दू धर्म विरोधी बताते हुए हिन्दू नेता शिंदे कहते हैं कि इस फिल्म के माध्यम से जो संदेश दिया गया है वह निश्चित ही हिन्दुओं के विरोध में है, लेकिन हिन्दू सहिष्णु है। वह कुछ नहीं बोलता है, इसलिए जो चाहे दिखा दो। फ्रांस की मैगजीन चार्ली एब्दो में बगदादी का कार्टून छापने पर 12 लोगों की हत्या कर दी जाती है, जबकि बगदादी तो मुसलमानों का प्रोफेट भी नहीं है।
वे कहते हैकि इस फिल्म एक डॉयलाग है कि भगवान खुद सुनता है तो मूर्ति की क्या जरूरत है, इसका अर्थ इस्लाम के मूर्ति पूजा के विरोध से लगाया जाता है। आमिर खान सॉफ्ट लेंग्वेज में इस्लाम की बात करते हैं। हाफिज मोहम्मद और जकी उर रहमान लखवी को पालने वाले पाकिस्तान को पूरी दुनिया में बुरा समझा जाता है, लेकिन इस फिल्म में पाकिस्तानियों को अच्छा बताया गया है। इस फिल्म में पाकिस्तान समर्थक कंटेंट इसलिए डाला गया है ताकि फिल्म का विजनेस बढ़ सके। वे कहते हैं कि पीके की विदेश में मार्केटिंग करने वाली कंपनी एआरवाय आतंकवादियों को फंडिंग करती है। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने भी इस बारे में लिखा है। इसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए। 
 
हिन्दू संतों और समाज में एकजुटता की कमी के प्रश्न पर शिंदे कहते हैं कि एकजुटता के प्रयास चल रहे हैं। अलग-अलग जगह अधिवेशन चल रहे हैं। लोगों में यह भावना निश्चित ही जाग रही है। एक साथ रहने से जो अलग-अलग आक्रमण हो रहे हैं, उन्हें रोका जा सकता है। और यह भाव लोगों में बन भी रहा है। रामपाल और आसाराम के मुद्दे पर शिंदे कहते हैं कि किसी भी हिन्दू संगठन ने रामपाल का बचाव नहीं किया क्योंकि उन्होंने कानून के संबंध में गलत बात की थी। हालांकि आसाराम के मामले में उनका रुख नरम रहा। दूसरी ओर वे कहते हैं कि भारत के मुसलमानों ने कभी भी ओसामा बिन लादेन और आईएसआईएस का विरोध नहीं किया। इससे भी आगे बसपा नेता याकूब तो चार्ली एब्दो के हत्यारों को 51 करोड़ रुपए देने को तैयार है। 
 
धर्मांतरण के खिलाफ बने कानून : आगरा में धर्मांतरण की घटना पर वे कहते हैं कि इस बार वाकई पब्लिसिटी स्टंट हो गया क्योंकि संसद में विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं था, इसीलिए इसे मुद्दा बनाया गया। यदि राजनीतिक पार्टियों को लगता है कि घरवापसी या धर्मपरिवर्तन गलत है तो क्यों नहीं इसके खिलाफ कानून बना दिया जाता है। यह दोगलापन नहीं तो और क्या है? इस सबके पीछे राजनीति ज्यादा है। वैसे हिन्दूवादी संगठन कभी कोई काम चर्चा में रहने के लिए नहीं करते। गोरक्षा के मुद्दे पर शिंदे कहते हैं कि यह सिर्फ हिन्दुओं की आस्था नहीं है ‍बल्कि राष्ट्र की संपत्ति है। गोधन की रक्षा समाज और प्रशासन दोनों की जिम्मेदारी है। जिस तरह हाल ही में राजस्थान में गोरक्षा मंत्री बनाया गया है़, उसी तरह अन्य राज्यों को भी इस दिशा में प्रयास करना चाहिए। 
 
केरल के एक पादरी द्वारा ज्यादा बच्चा पैदा करने वाले ईसाइयों को 10000 रुपए महीना देने की बात पर शिंदे कहते हैं कि हिन्दू समाज इतना साक्षर और सक्षम हो चुका है कि अब इस तरह की चीजों से डरने की जरूरत नहीं है। साक्षी महाराज द्वारा चार बच्चे पैदा करने की बात पर वे कहते हैं कि साक्षी महाराज ने अपना बयान वापस ले लिया है, साथ ही इस तरह की बातों से तो देश का संकट ही बढ़ेगा। जनसंख्या बढ़ेगी तो पानी, अन्न और जमीन का संकट पैदा होगा। इस तरह की बातों के बजाय हमें देश के बारे में अधिक सोचना चाहिए। हालांकि वे इस बात पर जोर देते हैं कि देश में समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। 
 
...और ये हैं नरेन्द्र मोदी से अपेक्षाएं : क्या केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार से आपकी कोई अपेक्षाएं हैं? शिंदे कहते हैं कि केन्द्र में सत्ता बदलने से हिन्दुस्तान के अच्छे दिन आए हैं, हिन्दुओं के अच्छे दिन आने में अभी समय है। हमारी मोदी सराकर से अपील है कि भारत का हिन्दू जो अब तक उपेक्षित रहा है, इसके हित के दृष्टिकोण से सोचा जाना चाहिए। हज के लिए निधि बढ़ाई जाती है, सुप्रीम कोर्ट के मना करने के बावजूद तेलंगाना और  महाराष्ट्र में मुसमलानों का आरक्षण की बात की जाती है, तुष्टिकरण की इस तरह की असंवैधानिक बातों को बंद किया जाना चाहिए। कश्मीरी पंडित 25 साल से बाहर हैं, देश की सीमाएं आज भी असुरक्षित हैं, बांग्लादेश से हर दिन घुसपैठ हो रही है। तस्करी के जरिए असम से हर शुक्रवार को 5000 गाएं बांग्लादेश जाती हैं। इस तरह की चीजें रुकनी चाहिए। बदलाव के प्रति आश्वस्त शिंदे कहते हैं ‍कि हिन्दू युवा अब जागरूक हो रहा है और जागरूकता के कारण ही देश में सत्ता परिवर्तन हुआ है। इसका असर आते पांच सालों में और देखने को मिलेगा।
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