ये अच्छा है कि देश में सामरिक मसलों पर खुलकर बात होने लगी है : अता हसनैन

जयदीप कर्णिक
इंदौर। ये अच्छा है कि देश के आम नागरिक के मन में देश की सुरक्षा और सामरिक मसलों को लेकर गहरी जिज्ञासा जाग रही है। वो मुद्दे को गंभीरता से जानना चाहते हैं। अब वो देशभक्ति को सैनिकों की शहादत से आगे ले जाना चाहते हैं। ये शुभ संकेत है। पाकिस्तान के आईएसआई के बारे में सब जानते हैं पर आईएसपीआर के बारे में कम ही लोग जानते हैं। ये संस्था आधिकारिक रूप से पाक सेना का प्रचार करती है। भारत में हम ऐसा नहीं कर पाते।
ये कहना था लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि.) अता हसनैन का। वो सेना में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहकर अहम ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। अब लगातार अपने लेखों और भाषणों के ज़रिए सुरक्षा मामलों पर लिखते रहते हैं। वो कश्मीर में लंबे समय तक पदस्थ रहे और घाटी और नियंत्रण रेखा से जुड़े मामलों की गहरी समझ रखते हैं। उन्होंने सेना को कश्मीर के लोगों से “दिल का रिश्ता” कायम करने पर काफी ज़ोर दिया। कश्मीर में सेना से जुड़े नीतिगत मामलों में आज भी उनकी सेवाएँ ली जाती हैं। वो इंदौर में डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति द्वारा “जागृत समाज–सुरक्षित राष्ट्र” विषय पर व्याख्यान देने आए थे। इस व्याख्यान में उन्होंने कश्मीर समस्या और उसके समाधान पर विस्तार से प्रकाश डाला।
 
हमले पहले भी हुए, पर ये लक्षित हमला ख़ास : इस व्याख्यान से पहले वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने सेना और नीतिगत मसलों पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि इस समय देश में एक नए तरह की चेतना है सामरिक और सुरक्षा मसलों को लेकर। निश्चित ही सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। हाल ही में हुए लक्षित हमले भी इसी का बड़ा उदाहरण हैं। सोशल मीडिया के कारण इसकी अभूतपूर्व चर्चा हुई। ऐसा नहीं है कि इस तरह के लक्षित हमले पहले नहीं हुए हैं। पर हाँ, इस पैमाने पर नहीं हुए। पहले इस तरह के छोटे-मोटे हमले भारतीय सेना करती रही है। 2001 में भी सेना ने ऐसी एक कार्रवाई को अंजाम दिया था। इस बार के हमलों की ख़ासियत ये थी की ये बहुत बड़े पैमाने पर अंजाम दिए गए। और ये पहली बार हुआ कि इस तरह से इन हमलों की आधिकारिक घोषणा हुई। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों, देश के भीतर के दबाव और पाकिस्तान को माकूल जवाब देने के लिए ये जरूरी भी था। हमलों की घोषणा होने से पाकिस्तान को और दुनिया को ये संदेश मिला की भारत भी लड़ाई को हर स्तर पर लड़ने की क्षमता रखता है। अगर इस हमले के बाद पाकिस्तान ने जवाबी हमले किए हैं तो इसका साफ संदेश यही है कि हमारे हमले सफल रहे। पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। 
 
नगरोटा हमला राहिल शरीफ को आखिरी सलामी : जम्मू के नगरोटा में हुआ आतंकी हमला दरअसल पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहिल शरीफ की निवृत्ति के पहले आखिरी बेजा हरकत थी। उन्होंने आतंकियों से एक तरह से आख़िरी सलामी ली और ये संदेश देने की कोशिश की कि नए सेना प्रमुख बाजवा को किस राह पर चलना चाहिए। जब ये हमला हुआ ठीक उसी समय बाजवा, राहिल शरीफ से पदभार ग्रहण कर रहे थे। राहिल शरीफ ने अपने पूरे कार्यकाल में हर उस काम को अंजाम देने की कोशिश की जिससे भारत को नुकसान पहुँचे। ऐसा करते समय वो भारत को नुकसान पहुँचाने की पाकिस्तान की नीति के साथ ही अपनी व्यक्तिगत खुन्नस और दुश्मनी भी निभा रहे थे। सन 1965 और 71 के युद्धों में उनके परिजन भारतीय सेना के हाथों मारे गए। इसीलिए राहिल शरीफ भारत को लेकर हमेशा बदले की भावना से भरे रहते थे। पाक के नए सेना प्रमुख बाजवा कैसा काम करेंगे ये तो आनेवाला वक्त ही बताएगा पर उम्मीद ये ही की जा सकती है कि वो सीमा रेखा पर लगातार बढ़ रहे तनाव को कुछ कम करेंगे। 
 
भारतीय सेना को भी प्रचार और संपर्क पर ध्यान देना होगा : भारत की सेना दुनिया में सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक है। हम बहुत बढ़िया काम करते हैं। बस हमें अपने प्रचार को लेकर कुछ व्यवस्थित और नीतिगत काम करने की जरूरत है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जनता और समाज से संवाद के लिए हमारी सेना के पास कोई औपचारिक संस्था और ढाँचा नहीं है। एडीजीपीआई ये काम करती जरूर है पर इसे सेना ने ही अपने तईं खड़ा कर लिया है। जबकि पाकिस्तान ने ऐसी व्यवस्था 1949 से ही कर ली है। हम पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई के बारे में तो ख़ूब जानते हैं पर हम उनकी आईएसपीआर (इंटर सर्विस पब्लिक इंटेलिजेंस) नामक संस्था के बारे में बहुत कम जानते हैं। ये संस्था जनता में पाक सेना की बेहतर छवि बनाने का काम घोषित रूप से करती है पर अघोषित रूप से ये भारत की सेना को लेकर दुष्प्रचार और नकारात्मक घटनाओं को खूब तूल देने का काम भी करती है। 
 
मीडिया-सेना के बीच मजबूत संपर्क जरूरी : ले. जनरल (सेनि.) अता हसनैन ने माना कि सेना और मीडिया के बीच में अधिक बेहतर और मजबूत संवाद की जरूरत है। कई बार मीडिया सेना से जुड़े मामलों का सही कवरेज नहीं कर पाती। उन्होंने एनडीटीवी के पठानकोट हमले के कवरेज वाले मामले पर तो टिप्पणी करने से इंकार कर दिया पर ये ज़रूर कहा कि मीडिया और सेना के बीच सतत और बेहतर संवाद होना चाहिए। सेना का हर मसला बहुत संजीदा होता है और इसमें राष्ट्रहित जुड़ा होता है। इसकी रिपोर्टिंग को लेकर अतिरिक्त सावधानी और समझ जरूरी है।
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