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Metaverse: हकीकत की दुनिया के सामानांतर तैयार हो रहा एक ‘फि‍क्‍शनल यूनिवर्स’ जो आपकी ‘फ्यूचर की दुनिया’ होगी

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नवीन रांगियाल

अभी आप फेसबुक चलाते हैं और जब मन करता है ‘लॉग आउट’ कर के वर्चुअल से रियल वर्ल्‍ड में लौट आते हैं, लेकिन वो वक्‍त ज्‍यादा दूर नहीं है, जब यह ‘वर्चुअल वर्ल्‍ड’ ही आपकी दुनिया हो जाएगी। यानी हम इस दुनिया के साथ ही एक ‘वर्चुअल रिअलिटी’ में जी रहे होंगे।

इसे और ज्‍यादा आसान किया जाए तो कह सकते हैं कि हकीकत की इस दुनिया के ठीक सामानांतर एक ऐसी ‘डि‍जिटल दुनिया’ तैयार की जा रही है, जि‍सके भीतर हम प्रवेश कर सकेंगे और उस आभासी दुनिया में ठीक वैसे ही जी सकेंगे, जैसे हम बाहरी यानी सच की दुनिया में जीते और रहते हैं।

यह संभव हो सकेगा एक छोटे से टर्म ‘मेटावर्स’ की मदद से। इस शब्‍द का मतलब हम आगे चलकर समझेंगे, लेकिन पहले यह जान लेना जरूरी है कि आने वाले कुछ वक्‍त में हमारी दुनिया और हमारी जिंदगी इस शब्‍द की वजह से कैसे बदलने वाली है।

दरअसल, यह एक ऐसी वर्चुअल (आभासी) दुनिया होगी। जिसमें प्रवेश करने के लिए हमें एक खास तरह की आइडेंटि‍टी की जरूरत होगी। समझ लीजिए कि अपनी दुनिया से उस वर्चुअल दुनिया में जाने के लिए आपके पास एक ‘पहचान पत्र’ होगा, जिसे शायद डि‍जिटल आइडेंटि‍टी कहा जाए।

इस आइडेंटि‍टी से आप उस दूसरी दुनिया में प्रवेश करेंगे और ठीक वैसे ही जी सकेंगे जैसे यहां जीते हैं, मसलन, शॉपिंग करना, घूमना- फि‍रना, दोस्‍त बनाना, रिश्‍तेदारों से मिलना और इसी तरह के तमाम सांसारिक काम। हो सकता है आप वहां किसी से प्‍यार भी करें, झगड़ा भी और सेक्‍स भी।

धरती, आकाश, पाताल और तमाम अज्ञात दूसरी दुनियाओं के अलावा शायद तकनी‍क एक और ऐसी दुनिया ईजाद करने वाली है, जो हमारे भवि‍ष्‍य की दुनिया होगी, एक फि‍क्‍शनल यूनिवर्स। जहां, सच की दुनिया की तरह ही शॉपिंग होगी, दोस्‍ती, प्‍यार और सेक्‍स भी, लेकिन ‘वर्चुअल रियलिटी’ में … क्‍या भविष्‍य में ‘आभास’ यानी ‘फि‍क्‍शन’ ही नया ‘सत्‍य’ होगा, अगर हां तो क्‍या उसे मान्‍यता मिलेगी, यह तो भविष्‍य ही तय कर सकेगा।

बदल सकता है ‘facebook’ का नाम
दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ‘मेटावर्स’ तकनीक पर काम कर रहा है। हो सकता है कुछ समय में फेसबुक का नाम भी बदल जाए। लेकिन यह सब और ज्‍यादा स्‍पष्‍ट हो सकेगा, जब आधुनिक तकनीक को लेकर आयोजित की जाने वाली एक एनुअल कॉन्‍फ्रेंस में इसे लेकर फेसबुक या इसके सीईओ मार्क जुकरबर्ग चर्चा करेंगे। रिपोर्ट के मुताबि‍क इस तकनीक को साकार रूप देने के लिए कंपनी करीब 50 मिलियन डॉलर का निवेश कर सकती है और हजारों विशेषज्ञों को हायर किया जा सकता है।

कब पहली बार सुना गया Metaverse
अमेरिकन लेखक नील स्टीफेंसन के साइंस फिक्शन नॉवेल ‘स्नो क्रैश’ में पहली बार ‘मेटावर्स’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। इस नॉवेल की कहानी में वर्चुअल वर्ल्ड में रियल दुनिया लोग जाते हैं। यह नॉवेल 1992 में प्रकाशि‍त हुआ था। साल 2013 में एक फिल्‍म आई थी ‘हर’, जिसमें एआई तकनीक को लेकर कहानी बताई गई थी।
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कैसे काम करेगा Metaverse’?
मेटावर्स को चलाने के लिए ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई जैसी कई तरह की तकनीक का सहारा लिया जा सकता है। ऐसी स्‍थि‍ति में दूसरे सोशलनेटवर्किंग साइट भी बदल सकते हैं।

कैसे बदलेगी इंसान की दुनिया
तकनीक ने पहले ही इंसान की दुनिया बदल दी है, लेकिन ‘मेटावर्स’ से यह पूरी तरह से जिंदगी बदल देगा। इससे हमारे इंटरनेट इस्तेमाल करने के तरीके में भी बदलाव आएगा। जैसे मेटावर्स दुनिया में घूमते हुए आपको कोई चीज पसंद आई तो आप उसे डि‍जिटल करेंसी से खरीद लेंगे और वह आपके घर के पते पर डि‍लिवर हो जाएगी। अभी हम चैट और वीडि‍यो कॉल पर बात करते हैं, लेकिन इसके जरिए जब हम किसी से बात करेंगे तो लगेगा हम आमने-सामने ही बैठे हैं। शायद हम अपने साथी को छू भी सकें। भावनाएं ठीक वैसे ही व्‍यक्‍त होंगी, जैसे सच की दुनिया में होती हैं।

कब तैयार होगी यह नई दुनिया
मेटावर्स को पूरी तरह से डेवलेप होने में करीब 10 से 15 साल लग सकते हैं। कई कंपनियां मिलकर इस पर काम कर रही हैं। इसमें फेसबुक के अलावा गूगल, एपल, स्नैपचैट और एपिक गेम्स वो बड़े नाम हैं जो मेटावर्स पर कई सालों से काम कर रहे हैं।

क्‍या हो सकता है खतरा
पिछले दिनों प्राइवेसी को लेकर काफी हल्‍ला रहा। सरकार और ट्विटर और फेसबुक के बीच निजता को लेकर कई बार मुद्दे भी उठे। जब वर्चुअल वर्ल्‍ड और इंटरनेट की बात होती है तो सबसे पहले प्राइवेसी की सुरक्षा ही जेहन में आती है। जाहिर है जब इतने व्‍यापक रूप से तकनीक का इस्‍तेमाल होगा तो आपकी प्राइवेसी को खतरा होगा। कंपनियों हमारे जीवन, निजी डेटा और हमारी निजी बातचीत पर नियंत्रण कर सकेंगी।
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एआई पर आधारित फि‍ल्‍म ‘HER

साल 2013 में एक फिल्‍म आई थी, जिसका नाम था हर। इस फि‍ल्‍म में थिओडोर ट्वॉम्बली नाम का एक लेखक अपनी लेखन शैली सुधारने के लिए एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम को खरीदकर उसका सहारा लेता है। जब उसे एआई की क्षमताओं के बारे में पता चलता है तो वो इसे और ज्‍यादा एक्‍सप्‍लोर करता है, इसी सिस्‍टम की जरिए वो रोजाना एक लकी से बात करता है, बाद में थिओडोर को उससे प्‍यार हो जाता है, जबकि वो लकी एआई सॉफ्टवेयर की महज एक आवाजभर होती है। लेकिन रियल टाइम में थिओडोर की भावनाओं को नियंत्र‍ित करती है। यह फि‍ल्‍म एआई तकनीक का एक नमुनाभर थी, अब ऐसे में अगर कोई एआई से भी ज्‍यादा आधुनिक तकनीक ईजाद होती है तो अंदाजा लगाइए कि दुनिया और इसमें रहने वाले इंसान की जिंदगी कितनी बदलने वाली है।

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