गांधीजी स्वयं को कट्टर सनातनी हिंदू मानते थे : मोहन भागवत

Webdunia
सोमवार, 17 फ़रवरी 2020 (23:29 IST)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि महात्मा गांधी को कभी स्वयं के हिंदू होने पर लज्जा नहीं हुई और उन्होंने अनेक बार अपने को कट्टर सनातनी हिंदू बताया था।

भागवत ने यहां महात्मा गांधी के जीवन दर्शन पर आधारित एक पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा, गांधीजी ने इस बात को समझा था कि भारत का भाग्य बदलने के लिए पहले भारत को समझना पड़ेगा और इसके लिए वह सालभर भारत में घूमे।

भागवत ने कहा, इसके लिए उन्होंने (महात्मा गांधी ने) स्वयं को भारत के सामान्यजनों की आशा आकांक्षाओं से, उनकी पीड़ाओं से एकरूप होकर यह सारा विचार किया और इस विचार की दृष्टि का मूल हर भारतीय था, इसीलिए उनको (गांधीजी) अपने हिंदू होने की कभी लज्जा नहीं हुई।

भागवत ने कहा, गांधी जी ने कई बार कहा था कि मैं कट्टर सनातनी हिंदू हूं, इसलिए पूजा पद्धति के भेद को मैं नहीं मानता हूं। इसलिए अपनी श्रद्धा पर पक्के रहो और दूसरों की श्रद्धा का सम्मान करो और मिलजुलकर रहो।शिक्षाविद जगमोहन सिंह राजपूत द्वारा लिखित पुस्तक 'गांधी को समझने का यही समय' के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि यह सही है कि गांधी के सपनों का भारत अभी नहीं बन पाया है।

उन्होंने कहा, 20 साल पहले मैं कहता था कि गांधीजी की कल्पना का भारत अभी नहीं बन पाया है, आगे बन पाएगा या नहीं, पता नहीं। यह असंभव लगता था, लेकिन देशभर में घूमने के बाद मैं कह सकता हूं कि आज गांधी के सपनों का साकार होना प्रारंभ हो गया है और जिस नई पीढ़ी की आप चिंता कर रहे हैं, वह नई पीढ़ी ही उन सपनों को पूरा करेगी।

गांधीजी द्वारा अपनी गलतियों का प्रायश्चित करने की खूबी का भी जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि बापू ने जो प्रयोग किए और अगर प्रयोग गड़बड़ हुए तो उन्होंने इसका प्रायश्चित भी किया। उन्होंने कहा कभी कोई आंदोलन अगर भटक गया तो उन्होंने (गांधीजी) ने इसका प्रायश्चित भी किया।

भागवत ने आज के परिवेश में आंदोलनों के भटकने पर सवाल उठाते हुए कहा, आंदोलन में अगर कोई गड़बड़ हो जाए, कुछ कानून व्यवस्था का भय हो गया हो तो इसका प्रायश्चित लेने वाला कोई है? प्रायश्चित तो कभी कुछ लाठीचार्ज होता है, गोलीबारी होती है या जो पकड़े जाते हैं उनको भुगतना पड़ता है। जो कराने वाले हैं वो या तो जीतते हैं या हारते हैं।

उन्होंने गांधीजी के भारत दर्शन के तहत भारत को जानने और समझने की जरूरत पर बल देते हुए कहा, भारत को संवारना है या भारत का भाग्य बदलना है तो गांधीजी का स्मरण करने के बजाय गांधीजी का अनुसरण करना होगा।

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