भारत के जल युद्ध से अब पाकिस्तान में तबाही का खौफ़

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
गुरुवार, 24 अप्रैल 2025 (10:51 IST)
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए राजनयिक संबंधों को पूरी तरह खत्म करने की ओर कदम बढ़ाएं है,वहीं पाकिस्तान के साथ 1960 के सिंधु जल समझौते को तुरंत प्रभाव से निलंबित रखने का फ़ैसला किया है।  पाकिस्तान से 1965 और 1971 के युद्द के बाद भी भारत ने सिंधु जल समझौते को बरकरार रखा था लेकिन अब भारत का रुख बेहद आक्रामक है और यह स्थिति पाकिस्तान की नींद उड़ाने के लिए काफी है।  दरअसल सिंधु जल समझौता छह नदियों ब्यास,रावी,सतलुज,सिंधु,चिनाब और झेलम के पानी के इस्तेमाल को लेकर नियम तय किए गए थे।  इस समझौते के तहत पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों चिनाब, झेलम और सिंधु से संपूर्ण जल प्राप्त होता है,वहीं भारत को सतलुज,व्यास और रावी नदियों का जल प्राप्त होता है।  पाकिस्तान के सबसे सशक्त सूबे पंजाब और सिंध प्रांत पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से चिनाब, झेलम और सिंधु के पानी पर निर्भर है। 

सिंधु जल प्रवाह का सम्बन्ध चार देशों चीन,भारत,पाकिस्तान और अफगानिस्तान से है। 2016 में उड़ी में हुए आतंकी हमलें के बाद भारत के शीर्ष नेतृत्व ने संधि की समीक्षा शुरु कर दी थी। भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की बातचीत के बाद सितंबर 1960 में इस संधि पर हस्ताक्षर किये थे जिसमें विश्व बैंक भी इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता था। भारत अन्तर्राष्ट्रीय बाध्यताओं से बंधा है जिससे पानी को पूर्ण रूप से रोकने में परेशानियां आ सकती है।  लेकिन इस संधि की कुछ शर्तों को अब भारत ने हथियार बना लिया है।  पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है।  संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन करने की अनुमति है। अर्थात् जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने की अनुमति देता है।

भारत ने इस शर्त का फायदा लेते हुए कई नदियों और सहायक नदियों पर जल विद्युत् परियोजनाओं की शुरुआत कर बेहद रणनीतिक कदम उठायें है। झेलम नदी की सहायक नदी किशनगंगा नदी पर किशनगंगा जल-विद्युत परियोजना, चिनाब नदी पर रतले जल-विद्युत परियोजना, किश्तवाड़  जिले में कीरू पनबिजली परियोजना,डोडा ज़िले में चिनाब नदी की सहायक मारुसुदर नदी  पर पकल डल पनबिजली परियोजना, दुलहस्ती पावर स्टेशन, जम्मू-कश्मीर में सलाल पावर स्टेशन  जैसी भारत जी योजनाओं से पाकिस्तान बेहद आशंकित है।

पाकिस्तान अक्सर आरोप लगाता रहता है कि यह परियोजनाएं  सिंधु जल संधि का उल्लंघन करती है। रतले पनबिजली परियोजना पर आपत्ति जताते हुए विश्व बैंक  का रुख किया था लेकिन पाकिस्तान की आपत्ति को ख़ारिज करते हुए भारत को  बांध बनाने की अनुमति विश्व बैंक ने अगस्त 2017 में दे दी थी। लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख हाफिज सईद भारत के नदियों पर प्रभाव और पाकिस्तान में आने वाली बाढ़ को लेकर इसे जल आतंकवाद कह चूका है। पाकिस्तान को डर है की भारत इन जल विद्युत् परियोजनाओं के लिए जो जल संग्रहित कर रहा है,वह यदि एक साथ छोड़ दिया जाएं तो पाकिस्तान में तबाही आ जाएगी।

पानी और जलाशयों,बांधों और नदियों को हथियार की तरह इस्तेमाल करके किसी दुश्मन देश पर हमला करना, यह इतिहास में देखने को मिलता है। इसे जलयुद्ध  कहा जाता है,जहां जल को रणनीतिक हथियार की तरह प्रयोग किया जाता है। जून 1938 में चीनी राष्ट्रवादी सेनाओं ने जापानी सैन्य अग्रिम को रोकने के लिए हेनान प्रांत के हुआयुआनकोऊ में पीली नदी के बांधों को तोड़ दिया था। 1938 और 1947 के बीच,इस आपदा ने हेनान,अनहुई और जियांगसू में आठ लाख से अधिक लोगों की जान ले ली और लगभग चार मिलियन लोग विस्थापित हो गए थे।
रूस यूक्रेन युद्द में कखोवका डैम विस्फोट चर्चा में आया। कखोवका बांध  दक्षिणी यूक्रेन में नीपर नदी पर बना एक प्रमुख जल विद्युत संयंत्र और विशाल जलाशय है। यह 6 जून, 2023 को एक विस्फोट में नष्ट हो गया जिससे युद्धग्रस्त क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बाढ़ और मानवीय संकट उत्पन्न हो गया तथा हजारों लोग विस्थापित हो गए। इस हमले ने जल को आधुनिक युग में भी एक रणनीतिक हथियार के रूप में पुनः सामने ला दिया।

पहलगाम  पर आतंकी हमलें के बाद सिंधु जल समझौते पर पाकिस्तान को लेकर भारत का रुख बेहद आक्रामक है। यदि भारत इन नदियों का पानी रोकता है तो पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी और वहां के लोग  दाने दाने के लिए तरस  जायेंगे। वहीं भारत ने यदि जल विद्युत परियोजनाओं के लिए तैयार बांधों का पानी एक साथ छोड़ दिया तो पाकिस्तान तबाह हो जाएगा। यहीं कारण है की पाकिस्तान में भारत के के सिंधु जल समझौते से पीछे हटने के बाद हाहाकार मच रही है।

 

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