'पाकिस्तान की सेना तालिबान की गॉडफादर'

Webdunia
शनिवार, 10 अक्टूबर 2015 (15:23 IST)
पाकिस्तानी सेना को तालिबान का गॉडफादर बताते हुए विदेश नीति के एक विशेषज्ञ ने यह चेतावनी दी कि जब तक पाकिस्तानी सेना और उसके नजरिए की जांच व इसमें सुधार नहीं किया जाएगा, तब तक अफगानिस्तान से अपने बलों को हटाने वाले अमेरिका को रणनीतिक विफलता का सामना करना पड़ेगा।
'द वॉशिंगटन पोस्ट में लिखे संपादकीय में फरीद जकारिया ने इस बात पर अफसोस जताया कि अमेरिकी सरकार में इसे छिपाकर रखने की आदत है क्योंकि वे नहीं जानते कि इस मुद्दे से निपटा कैसे जाए। भारतीय-अमेरिकी जकारिया ने लिखा, पाकिस्तानी सेना को तालिबान का गॉडफादर बताया जाता रहा है। पाकिस्तान 1980 के दशक में सोवियत संघ से युद्ध के दौरान अमेरिका समर्थित मुजाहिद्दीन का गढ़ रहा है। वर्ष 1989 में जब सोवियत संघ पीछे हट गया तो अमेरिका ने तेजी से कदम वापस खींच लिए और पाकिस्तान उस रणनीतिक शून्य में दाखिल हो गया।
 
उन्होंने लिखा, उसने पाकिस्तानी मदरसों में चरमपंथी इस्लाम की तालीम लेने वाले युवा पख्तून जिहादियों के समूह तालिबान (तालिब यानी छात्र) को आगे कर दिया। अब इतिहास खुद को दोहरा रहा है। अब जबकि अमेरिका अपने बल वापस ले रहा है तो पाकिस्तान एक बार फिर से अपनी पुरानी इच्छा के तहत अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
 
जकारिया ने कहा कि अमेरिका इस बात पर गौर किए बिना अफगानिस्तान की समस्या नहीं सुलझा सकता कि उस सरकार के खिलाफ उग्रवाद को विश्व की सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक सेना द्वारा सीमा पार से आकार, मदद और हथियार दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सरकार के भीतर या बाहर से किसी ने इस बात की ओर इशारा किया था लेकिन कोई भी नहीं जानता था कि करना क्या है। ऐसे में इसे छिपाकर रखा गया और नीति वही रही।
 
जकारिया ने लिखा, लेकिन यह कोई आकस्मिक तथ्य नहीं है। यह मूल तथ्य है और जब तक इससे नहीं टकराया जाता तब तक तालिबान को कभी हराया नहीं जा सकेगा। यह एक पुरानी कहावत है कि जब तक विद्रोहियों को आश्रय मिला रहा है तब तक उग्रवाद-निरोधी कोई भी प्रयास सफल नहीं हुआ है। इस मामले में विद्रोहियों के पास परमाणु क्षमता से संपन्न प्रायोजक है।
 
सीएनएन पर एक मशहूर टीवी शो चलाने वाले इस जाने माने अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा कि पाकिस्तान अमेरिका की मदद का दिखावा करने में माहिर रहा है जबकि वह असल में उसके सबसे घातक दुश्मनों को समर्थन दे रहा होता है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों ने तालिबान के साथ बातचीत शुरू करने के जो प्रयास किए हैं, उनमें से कईयों को देखिए। यह ऐसा साबित हुआ मानो हम भूतों से बात कर रहे थे। उमर को मरे हुए दो साल हो गए जबकि पाकिस्तानी अधिकारी उसके साथ संपर्क और बातचीत आयोजित करते रहे हैं।
 
उन्होंने कहा कि यह एक पूरे स्वरूप का हिस्सा है। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से लेकर निचले स्तर तक के पाकिस्तानी अधिकारी बिन लादेन या उमर के पाकिस्तान में रहने की बात से इंकार करते रहे हैं। जबकि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई द्वारा सार्वजनिक तौर पर इस बारे में कहते रहे। पाकिस्तान को टाइम बम बताते हुए जकारिया ने यह चेतावनी दी कि जब तक पाकिस्तान की सेना और इसकी सोच की जांच नहीं की जाती और इसमें सुधार नहीं लाए जाते, तब तक क्षेत्र से बल हटाने वाले अमेरिका को रणनीतिक विफलता का सामना करना पड़ेगा।
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