नागा संन्यासी भस्म और नदियों की रेत से संवारते हैं केश

Webdunia
मंगलवार, 1 जनवरी 2019 (12:09 IST)
प्रयागराज। अखाड़ों के वीर शैव नागा संन्यासियों के पास लम्बी जटाओं को बिना किसी भौतिक सामग्री उपयोग के खुद रेत और भस्म से ही संवारना पड़ता है।
 
दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुंभ मेले में शिरकत करने पहुंचे जूना अखाड़ा के हरियाणा के हिसार निवासी नागा नरेश पुरी ने बताया कि उनकी जटा करीब दस फिट लम्बी है और पिछले करीब 30 साल से अधिक समय से उसकी सेवा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि नागा साधु बढ़ी और उलझी जटाओं को भस्म और नदियों के रेत से सवांरते हैं।
 
उन्होंने बताया कि किसी भी संन्यासी के लिए अपने जटा-जूट को संभालना जीव-जगत के दर्शन की व्याख्या से कम पेंचीदा नहीं है। नागा साधुओं के सत्रह श्रृंगारों में पंच केश (जिसमें लटों को पांच बार घूमा कर लपेटना) का बहुत महत्व है। यहां ऐसे-ऐसे केश प्रेमी साधु मौजूद हैं, जिनकी लटें इतनी लंबी हैं कि इंच टेप छोटे पड़ जाएंगे।
 
पुरी ने नागा संन्यासी जटा-जूट की साज संभाल के रहस्य से अवगत कराते हुए बताया कि साबुन-सोडे के प्रयोग की मनाही है। नदियों की रेत से ही हम लटों की मंजाई करते हैं। केश संवारने के लिए पारा के भस्म का भी प्रयोग किया जाता है। जूड़े की शक्ल में जटा-जूट रखने वाले साधु अपने केश गुच्छ में भी पारा रखते हैं। इससे केशों का पोषण तो होता ही है साथ में जूं और बदबू की समस्या भी खत्म रहती है।
 
उन्होंने बताया कि अधिकांश नागा साधु केवल भस्म को अपना वस्त्र मानते हैं। उन्हें शिखा (चोटी) का परित्याग करना होता है। वे या तो अपने सम्पूर्ण बालों का त्याग करते हैं या फिर उन्हें सिर पर संपूर्ण जटा धारण करना होता है, जिसे वे कभी कटा-छंटा नहीं सकते।
 
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि देश में जब-जब कुम्भ और अर्द्ध कुम्भ मेला लगता है, तब-तब नागा साधुओं के दर्शन होते हैं। सदियों से नागा साधुओं को आस्था के साथ-साथ हैरत और रहस्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि आम जनता के लिए ये कुतूहल का विषय हैं, क्योंकि इनकी वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-विधि आदि सब अजरज भरी होती है। ये किस पल खुश हो जाएं और कब खफा, कुछ नहीं पता।
 
उन्होंने बताया कि 'नागा' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका अर्थ पहाड़ होता है और इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा संन्यासी' कहलाते हैं। कच्छारी भाषा में 'नागा' से तात्पर्य 'एक युवा बहादुर सैनिक' से भी है। 'नागा' का अर्थ बिना वस्त्रों के रहने वाले साधु भी है। वे विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा जगद्गुरु आदिशंकराचार्य द्वारा की गई थी।
 
इनके आश्रम हरिद्वार और दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में हैं जहां वे आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके गुस्से के बारे में प्रचलित किस्से कहानियां भी भीड़ को इनसे दूर रखती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह शायद ही किसी को नुकसान पहुंचाते हों। बिना कारण कोई इन्हें उकसाए या तंग करे तो इनका क्रोध भयानक हो उठता है।
 
नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में सहायक साबित होते हैं। वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं। नागा साधुओं को विभूति, रुद्राक्ष, त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम धारण करते हैं। (वार्ता) 
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?

अगला लेख