'एम्‍स' के लिए जुटाया धन, घर किया दान, ऐसी थी शाही परिवार की प्र‍िंसेस, जिसे गांधी कहते थे 'माई डियर इडियट'

नवीन रांगियाल
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021 (14:13 IST)
एम्‍स की स्‍थापना से लेकर डब्‍लूएचओ की अध्‍यक्षत तक ऐसी थी शाही खानदान की राजकुमारी अमृत कौर की कामयाबी की कहानी।

राजधानी दिल्‍ली में जिस ‘एम्‍स’  में आज हजारों-लाखों लोग अपना इलाज करवाते हैं, कोविड-19 के दौर में जो एम्‍स लाखों मरीजों के इलाज का केंद्र बना उस एम्‍स की स्‍थापना में शाही परिवार की राजकुमारी अमृत कौर का जबरदस्‍त योगदान है।

2 फरवरी को राजकुमारी अमृत कौर का जन्‍म हुआ था। आइए जानते हैं भारत की इस शानदार शख्‍स‍ियत के बारे में।

राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ में हुआ था। वह पंजाब के कपूरथला के राजा सर हरनाम सिंह की बेटी थीं। वो देश की पहली केंद्रीय मंत्री बनीं और 1947 से लेकर 1957 तक दस साल तक स्वास्थ्य मंत्री भी रहीं। 2 अक्टूबर 1964 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।

दरसअल, नई दिल्ली में एम्स की स्थापना के लिए अमृता कौर ने बहुत अहम योगदान दिया था। कौर ने अस्‍पताल के लिए जर्मनी और न्यूजीलैंड से आर्थिक मदद ली थी। एम्‍स की आधारशिला साल 1952 में रखी गई और एम्‍स का सृजन 1956 में संसद के एक अधिनियम के जरिये स्‍वायत्त संस्‍थान के रूप में किया गया था। वह एम्स की पहली महिला अध्यक्ष बनाई गई थी। इतना ही नहीं, उन्होंने शिमला में अपनी पैतृक संपत्ति और घर को भी संस्थान और कर्मचारियों के लिए दान कर दिया था।

साल 1950 में उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन का अध्यक्ष बनाया गया था। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली महिला और एशियाई थी। उन्हें खेलों से भी काफी लगाव था। नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना भी अमृत कौर ने की थी और इस क्लब की वह शुरू से ही अध्यक्ष भी रहीं। उनको टेनिस खेलने का बड़ा शौक था और उन्होंने इसमें कई चैंपियनशिप भी जीती थी।

राजकुमारी अमृत कौर केंद्रीय मंत्री बनने वाली आजाद भारत की पहली महिला थीं। अमृत कौर महात्मा गांधी के बेहद करीब थीं। विदेश में पढ़ाई करने के बाद स्वदेश लौटने पर वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गईं। महात्मा गांधी से 1934 में मुलाकात होने के बाद वह पूरी तरह से गांधीवादी विचारधारा पर चलने लगी थीं

गांधी जी और कौर के बीच सैकड़ों पत्र व्यवहार हुए, जिनमें गांधी जी उन्हें 'माई डियर ईडियट' यानी मेरी प्यारी बेवकूफ लिखते थे। राजकुमारी होने के बावजूद भी वह काफी साधारण रहन सहन पसंद करती थीं। वह गांधीजी के साथ नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल भी गईं। इसके साथ ही उन्होंने 16 साल तक गांधीजी के सचिव का भी काम किया।

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