नई दिल्ली। केन्द्र ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि फ्रांस से 36 लड़ाकू राफेल विमानों की खरीद में 2013 की रक्षा खरीद प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया और बेहतर शर्तों पर बातचीत की गई थी। इसके साथ ही केंद्र ने कहा कि इस सौदे से पहले मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति ने भी अपनी मंजूरी प्रदान की।
गौरतलब है कि राफेल सौदे को लेकर देश में राजनीतिक घमासान मचा हुआ है और कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष भाजपा नीत केंद्र सरकार पर लगातार हमले बोल रहा है। सरकार ने 14 पृष्ठों के हलफनामे में कहा है कि राफेल विमान खरीद में रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया है। इस हलफनामे का शीर्षक 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का आदेश देने के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में उठाए गए कदमों का विवरण है।
केन्द्र ने राफेल विमानों की खरीद के सौदे की कीमत से संबंधित विवरण सीलबंद लिफाफे में न्यायालय में पेश किया। केन्द्र विमानों की कीमतों का विवरण देने को लेकर अनिच्छुक था और उसने कहा था कि इनकी कीमतों को संसद से भी साझा नहीं किया गया है। शीर्ष अदालत के 31 अक्टूबर के आदेश का पालन करते हुए निर्णय लेने की प्रक्रिया और कीमत का ब्यौरा पेश किया गया।
न्यायालय अब दोनों दस्तावेजों पर गौर करेगा और बुधवार को सुनवाई करेगा। एक वरिष्ठ विधि अधिकारी ने बताया कि विभिन्न आपत्तियों के मद्देनजर सौदे के मूल्य का ब्यौरा न्यायालय में एक सीलबंद लिफाफे में दायर किया गया। अधिकारी अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करना चाहते थे।
दस्तावेज में कहा गया है कि राफेल विमान खरीद में रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया गया है और मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति ने 24 अगस्त, 2016 को उस समझौते को मंजूरी दी जिस पर भारत और फ्रांस के वार्ताकारों के बीच हुई बातचीत के बाद सहमति बनी थी। 2013 में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार थी।
दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि इसके लिये भारतीय वार्ताकार दल का गठन किया गया था जिसने करीब एक साल तक फ्रांस के दल के साथ बातचीत की और अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले सक्षम वित्तीय प्राधिकारी, मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति, की मंजूरी भी ली गई। 23 सितंबर 2016 को दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए।
राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि राजग सरकार हर विमान को करीब 1,670 करोड़ रुपए में खरीद रही है जबकि संप्रग सरकार जब 126 राफेल विमानों की खरीद के लिए बातचीत कर रही थी तो उसने इसे 526 करोड़ रुपए में अंतिम रूप दिया था।
दस्तावेज में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा दोहराए गए आरोपों का भी जिक्र किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी के रिलायंस समूह की एक कंपनी का चयन करने के लिए फ्रेंच कंपनी दसाल्ट एविएशन को मजबूर किया ताकि उसे 30000 करोड़ रुपए दिए जा सकें। इसमें कहा गया है कि रक्षा ऑफसेट दिशानिर्देशों के अनुसार, कंपनी ऑफसेट दायित्वों को लागू करने के लिए अपने भारतीय ऑफसेट सहयोगियों का चयन करने के लिए स्वतंत्र है।
दस्तावेज में विस्तार से कहा गया है कि क्यों सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) इस सौदे में ऑफसेट पार्टनर बनने में नाकाम रही क्योंकि दसाल्ट के साथ उसके कई अनसुलझे मुद्दे थे। कांग्रेस ने कहा था कि राफेल मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में सरकार के जवाब से साबित हो गया कि सौदे को अंतिम रूप देने से पहले सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की मंजूरी नहीं ली गई।
पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, एक तरह से सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति से विचार-विमर्श नहीं किया गया है। क्या अनुबंध देने के बाद विचार-विमर्श करेंगे या पहल करेंगे? सिंघवी ने आरोप लगाया कि सरकार राफेल मामले पर लोगों को गुमराह कर रही है।
राफेल सौदे की जांच के लिए अधिवक्ता मनोहरलाल शर्मा और फिर अधिवक्ता विनीत ढांडा ने याचिकाएं दायर कीं। इसके बाद, आप पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी अलग से एक याचिका दायर की। पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी इस मामले में एक संयुक्त याचिका दायर की है।