नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को थल सेना को कई स्वदेशी सैन्य साजोसामान सौंपे जिनमें मानव रहित हवाई प्रणाली, त्वरित प्रतिक्रिया वाले युद्धक वाहन, गश्ती नौकाएं और निगरानी उपकरण शामिल हैं। इससे पूर्वी लद्दाख में सेना की समग्र युद्धक क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर (F-INSAS) : थल सेना को मिले अन्य नए उपकरणों में 'फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर एज ए सिस्टम', विशेष प्रकार की बारूदी सुरंग निपुण, स्वचालित संचार प्रणाली, टैंकों के लिए उन्नत दृष्टि प्रणाली और उन्नत थर्मल इमेजर शामिल हैं। आधुनिक हथियारों के साथ जवान बुलेटप्रूफ जैकेट और यंत्रों से लैस होंगे, इनके पास मल्टी मोड हैंड ग्रैनेड, मल्टी परपज़ चाकू होंगे साथ ही इनके जूते इन्हें बारूदी सुरंगों से इन्हें बचाएंगे।
हेलमेट और बुलेटप्रूफ जैकेट काफी मजबूत और हल्के हैं। इनमें कई मॉड्यूलर पाउच हैं, जिनमें ग्रैनेड्स, मैगजीन, रेडियो सेट्स और अन्य सामान रखे जा सकते हैं। थर्ड सब सिस्टम में कम्युनिकेशन और सर्विलांस सिस्टम रहेगा। हर सैनिक के पास एक रेडियो सेट होगा, जो हैंड्स फ्री होगा। सेक्शन कमांडर अलग से कम्युनिकेशन सर्विलांस डिवाइस लेकर चलेगा ताकि रीयल टाइम में अपनी टीम के साथ संपर्क में रह सके।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ जारी गतिरोध के बीच पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील पर निगरानी के लिए उन्नत निगरानी उपकरणों व अन्य साजोसामान से लैस नई नौकाओं (एलसीए) को तैनात किया जा रहा है।
करीब 13,900 फुट की ऊंचाई पर स्थित 134 किलोमीटर लंबी झील को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। झील के करीब दो-तिहाई हिस्से पर चीन का नियंत्रण है। सेना ने पिछले साल पोतों के अपने मौजूदा बेड़े को मजबूत बनाने के लिए 12 एलसीए नौकाओं का आदेश दिया था।
रक्षा मंत्रालय ने कहा कि एलसीए अधिक बहुमुखी है और इसने गति तथा क्षमता आदि की अपनी बाधाओं को पार कर लिया है। मंत्रालय ने कहा कि इससे पूर्वी लद्दाख में जल संबंध बाधाओं को पार करने की क्षमता में वृद्धि हुई है। उसने कहा कि सिंह ने युद्धक नौकाओं के साथ ही विशेष प्रकार के वाहन सेना को सौंपे एवं सीमाओं पर तैनात सैनिक इन साजोसामान की मदद से किसी भी चुनौती का उचित तरीके से जवाब दे सकेंगे।
सिंह ने विश्वास जताया कि इन उपकरण और प्रणालियों से भारतीय सेना की परिचालन तैयारियों को बल मिलेगा और उनकी दक्षता बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि यह निजी क्षेत्र और अन्य संस्थानों के साथ साझेदारी में देश की बढ़ते आत्मनिर्भर कौशल का एक बेहतरीन उदाहरण है।