कौन हैं शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन जो ‘वसीम रिजवी’ से बन गए ‘जितेंद्र नारायण सिंह त्‍यागी’?

Webdunia
सोमवार, 6 दिसंबर 2021 (15:05 IST)
इस्‍लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने वाले वसीज रिजवी की सोशल मीडि‍या से लेकर अखबारों और न्‍यूज चैनल में चर्चा है। बता दें‍ कि वसीम रिजवी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद गिरि से अपना धर्म परिवर्तन करवाया। इस दौरान डासना मंदिर में अनुष्ठान भी किया गया।

जानना दिलचस्‍प होगा कि आखि‍र कौन है वसीम रिजवी और क्‍या रहा है उनका कॅरियर। वसीम रिजवी के सनातन धर्म अपनाने के बाद राजनीति में भी हलचल है। वसीम रिजवी ने खुद इसे घर वापसी करार दिया है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मे वसीम रिजवी खुद एक शिया मुस्लिम हैं। रिजवी एक सामान्य परिवार से संबंध रखते हैं। उनके पिता रेलवे के कर्मचारी थे। रिजवी जब क्लास 6 की पढ़ाई कर रहे थे तो उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद रिजवी और उनके भाई-बहनों की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई। रिजवी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे।

रिजवी ने 12वीं तक की शिक्षा हासिल की और आगे की पढ़ाई के लिए नैनीताल के एक कॉलेज में प्रवेश लिया। इसके बाद वह सऊदी अरब चले गए और एक होटल में बहुत ही छोटे स्तर पर काम शुरू किया। कुछ दिनों बाद वह जापान चले गए। वहां एक कारखाने में काम किया और यहां से अमेरिका जाकर एक स्टोर में नौकरी की।

कुछ दिनों बाद उन्होंने नगर निगम का चुनाव लड़ा। इसी चुनावी गतिविधि‍ से उनके राजनीतिक करियर की शुरूआत हुई। इसके बाद वो वक्फ बोर्ड के सदस्य बने और उसके बाद चेयरमैन के पद तक पहुंचे। वो लगभग दस सालों तक बोर्ड में रहे।

वसीम रिजवी 2000 में पुराने लखनऊ के कश्मीरी मोहल्ला वॉर्ड से समाजवादी पार्टी (सपा) के नगरसेवक चुने गए। 2008 में शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के सदस्य बने। 2012 में शिया वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में हेरफेर के आरोप में घिरने के बाद सपा ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया।

क्‍या कहा हिंदू धर्म के बारे में
धर्म बदलने के बाद वसीम रिजवी जितेंद्र नारायण बन गए हैं। मीडिया से बात करते हुए जितेंद्र नारायण ने कहा, 'धर्म परिवर्तन की यहां पर कोई बात नही है। जब मुझे इस्लाम से निकाल ही दिया गया तो फिर ये मेरी मर्जी है कि मैं कौन सा धर्म स्वीकार करूं। सनातन धर्म दुनिया का सबसे पहला धर्म है, जितनी अच्छाईयां हिंदू धर्म में पाई जाती हैं, उतनी दुनिया के किसी और धर्म में नहीं हैं। इस्लाम को हम धर्म समझते ही नहीं है। इस्लाम के बारे में, मोहम्मद के चरित्र के बारे में इतना पढ़ लेने के बाद और उनके आतंकी चेहरे को पढ़ने के बाद हम यह समझते हैं कि इस्लाम कोई धर्म नहीं है।'

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