सिंहस्थ में डुबकी से नहीं मिलती मुक्ति-महेश्वरदास

वृजेन्द्रसिंह झाला
आम धारणा है कि सिंहस्थ और कुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान से लोगों को पापों से मुक्ति मिल जाती है या फिर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। मगर हकीकत इससे अलग है। पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के महंत महेश्वरदास कहते हैं कि नदियों में डुबकी लगाने से हम मुक्त हो जाएंगे, यह संभव नहीं है। ...लेकिन, यह डुबकी हमें शुभ संकल्प का अवसर जरूर देती है, जिससे हमारे भावी कर्म निर्धारित होते हैं। 
महेश्वरदास जी कहते हैं कि शाही स्नान के दौरान क्षिप्रा, गंगा आदि नदियों में स्नान से पाप नष्ट होना और पुण्य की प्राप्ति हमारे संकल्प पर निर्भर है। यदि हम विशेष अवसर पर प्रायश्चित करें और संकल्प लें और ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें कि मैं भविष्य में कोई गलत काम नहीं करूंगा, बुराई छोड़कर अच्छाई के मार्ग पर चलूंगा तो पापों से मुक्ति संभव है।
दरअसल, सिंहस्थ जैसे आयोजन हमें अपने संकल्प मजबूत करने का अवसर देते हैं। मगर जो व्यक्ति जैसे कर्म करता है, उसके अनुरूप शुभ और अशुभ फल मिलना भी निश्चित है। यदि हम कुल्हाड़ी पर पैर मारेंगे तो पांव कटेगा ही न। सबसे अहम बात तो यह है कि सही और गलत की गवाही तो हमारा हृदय देता है। यदि हमारा मन प्रसन्न है तो शुभ है और खिन्न है तो अशुभ है। 
 
सिंहस्थ से संदेश : संत महेश्वरदास जी कहते हैं कि सिंहस्थ देश ही नहीं पूरी दुनिया को भेदभाव मुक्त समाज का संदेश देता है। यहां भाषा, जाति, संप्रदाय, प्रांत, रंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी के लिए मंदिरों के द्वार खुले हैं। सभी लोग एक घाट पर स्नान करते हैं और एक पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। यहां लोग आते ही इसलिए हैं कि यहां उन्हें आत्मीयता मिलती है और यही आत्मीयता उन्हें आकर्षित करती है। यहां वीआईपी कल्चर भी नहीं है। जब तक समाज से भेदभाव नहीं मिटेगा तब तक लोगों के बीच की दूरियां भी नहीं मिट सकतीं। ऐसे में हम ईश्वर और मानवता की ओर भी नहीं बढ़ सकते।    
नदियों में बढ़ते प्रदूषण के विषय पर महेश्वरदास जी कहते हैं कि प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह औद्योगीकरण और नगरीकरण है। जनता को भी चाहिए कि वह नदियों में फूल, अगरबत्ती आदि न डाले। प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए वृहद योजना की जरूरत है मगर भाषणों से काम नहीं चलेगा। इस दिशा में वास्तविकता में कुछ करना होगा। 
 
कैसा हो गुरु : संतश्री कहते हैं कि गुरु तो कहीं भी मिल सकता है। बस, हमारे पास दृष्टि होनी चाहिए। एक कहानी के माध्यम से अपनी बात को समझाते हुए महेश्वरदास जी कहते हैं कि जो आपने चुना है वह आपके लिए सही है। दरअसल, हम भीड़ तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं और ठगे जाते हैं और बाद में दोष संत को देते हैं। गुरु कैसा या कौन हो यह आपको तय करना है गुरु को नहीं। ( फोटो एवं वीडियो : धर्मेन्द्र सांगले)
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