सुप्रीम कोर्ट की धर्मांतरण मामले में हिमाचल और एमपी को पक्षकार बनाने की एनजीओ को अनुमति

Webdunia
बुधवार, 17 फ़रवरी 2021 (18:02 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अंतर-धर्म विवाहों के कारण होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका में हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश को पक्षकार बनाने की बुधवार को एक गैरसरकारी संगठन को अनुमति दे दी। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने देश में इन कानूनों के इस्तेमाल से बड़ी संख्या में मुसलमानों को उत्पीड़ित किए जाने संबंधी आरोप के आधार पर मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द को भी पक्षकार बनने की अनुमति दे दी।
 
उच्चतम न्यायालय 6 जनवरी को उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में विवाह के लिए धर्मांतरण रोकने की खातिर बनाए गए कानूनों पर गौर करने के लिए राजी हो गया था। न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमणियन भी पीठ का हिस्सा थे। पीठ ने विवादित कानूनों पर रोक लगाने से इंकार करते हुए विभिन्न याचिकाओं पर दोनों राज्यों को नोटिस जारी किया।
ALSO READ: अंतरजातीय विवाह से घटेगा सामु‍दायिक तनाव : सुप्रीम कोर्ट
अधिवक्ता विशाल ठाकरे और अन्य तथा गैरसरकारी संगठन 'सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस' ने उत्तरप्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। याचिकाओं पर हुई संक्षिप्त सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह एनजीओ की ओर से पेश हुए और उन्होंने हिमाचल प्रदेश तथा मध्यप्रदेश को भी पक्षकार बनाए जाने का अनुरोध किया, क्योंकि इन दोनों राज्यों ने भी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की तर्ज पर कानून बनाए हैं।
ALSO READ: राज्यसभा में उठी मांग, सुप्रीम कोर्ट में कामकाज हिन्दी में हो
उत्तरप्रदेश के विवादास्पद अध्यादेश को पिछले साल 28 नवंबर को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने मंजूरी दी थी। यह अध्यादेश न केवल अंतर-धर्म विवाहों से, बल्कि सभी तरह के धर्मांतरण से संबंधित है और इसमें अन्य धर्म अपनाने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए विस्तृत प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है। ठाकरे और अन्य ने अपनी याचिका में कहा है कि वे अध्यादेश से दुखी हैं, क्योंकि इसमें भारत के नागरिकों को संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाया गया है।

याचिका में कहा गया है कि 'लव जिहाद' के खिलाफ उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड द्वारा बनाए गए कानूनों को रद्द किया जा सकता है, क्योंकि वे कानून द्वारा निर्धारित संविधान के बुनियादी ढांचे को बाधित करते हैं। इसमें कहा गया है कि संबंधित कानून सार्वजनिक नीति और समाज के खिलाफ हैं। मुंबई स्थित एनजीओ की याचिका में कहा गया है कि दोनों कानून संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि इन कानूनों से राज्य को किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंदीदा धर्म मानने की आजादी को दबाने का अधिकार मिलता है। अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से दायर अपनी याचिका में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने मुस्लिम युवाओं के मौलिक अधिकारों के मुद्दे को उठाया है। (भाषा)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

कांवड़ यात्रा को बदनाम करने की कोशिश, CM योगी ने उपद्रवियों को दी चेतावनी

समुद्र में आग का गोला बना जहाज, 300 से ज्यादा यात्री थे सवार, रोंगटे खड़े कर देगा VIDEO

महंगा पड़ा कोल्डप्ले कॉन्सर्ट में HR मैनेजर को गले लगाना, एस्ट्रोनॉमर के CEO का इस्तीफा

संसद के मानसून सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक, बिहार में SIR पर विपक्ष ने उठाए सवाल

24 कंपनियों ने जुटाए 45,000 करोड़, IPO बाजार के लिए कैसे रहे 2025 के पहले 6 माह?

सभी देखें

नवीनतम

Apple iphone 17 pro price : लॉन्च से पहले ही आईफोन 17 प्रो की चर्चाएं, क्या होगी कीमत और फीचर्स, कैसा होगा कैमरा

भोपाल में 160 करोड़ की लागत से बनेंगे विधायकों के लिए हाईटेक फ्लैट, CM और विधानसभा अध्यक्ष ने किया भूमिपूजन

हिंदू कप्तान होने के कारण बांग्लादेशियों ने मैच में किया पाकिस्तानियों का समर्थन (Video)

Bangladesh plane crash : बांग्लादेश में स्कूल पर जा गिरा एयरफोर्स का F-7 प्लेन, 19 की मौत, 50 घायल

Indore: भगवान गणेश की आपत्तिजनक प्रतिमाओं को लेकर विवाद, 3 मूर्तिकारों पर मामला दर्ज

अगला लेख