सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर माह में दिए समाज की दशा और दिशा बदलने वाले 8 बड़े फैसले

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने हाल के दिनों में कुछ बड़े फैसले दिए हैं। ये ऐसे फैसले हैं जो समाज की दशा और दिशा को बदलने का काम करेंगे। आइए डालते हैं इन बड़े फैसलों पर एक  नजर... 
 
1. समलैंगिकता : सर्वोच्च न्यायालय ने 6 सितंबर के अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में धारा 377 को रद्द करते हुए कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा कि LGBT समुदाय को भी समान अधिकार हैं। अंतरंगता और निजता किसी की व्यक्तिगत पसंद है। इसमें राज्य को दखल नहीं देना चाहिए। किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन है। धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार आर्टिकल 14 का हनन करती है।
 
2. राजनीति में अपराधीकरण : 25 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनाव लड़ने से पहले प्रत्येक उम्मीदवार अपना आपराधिक रिकॉर्ड निर्वाचन आयोग के समक्ष घोषित करे। साथ ही उसने सभी राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने उम्मीदवारों के संबंध में सभी सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि नागरिकों को अपने उम्मीदवारों का रिकॉर्ड जानने का अधिकार है। पीठ ने विधायिका को निर्देश दिया कि वह राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने के लिए कानून बनाने पर विचार करे। 
 
3. प्रमोशन में आरक्षण : 26 सितंबर को प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को खारिज न करते हुए इसे राज्यों पर छोड़ दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर राज्य सरकारें चाहें तो वे प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं। हालांकि अदालत ने केंद्र सरकार की यह अर्जी खारिज कर दी कि एससी-एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए। 
 
4. आधार की वैधता : सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर को ही बहुचर्चित आधार मामले में बड़ा फैसला देते हुए आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि स्कूलों में दाखिले के समय आधार जरूरी नहीं होगा। साथ ही मोबाइल कंपनी और बैंक आधार की मांग नहीं कर सकेंगे। लेकिन, पैन कार्ड, आयकर रिटर्न और सरकारी सब्सिडी के लिए आधार जरूरी होगा। 
 
5. अदालत की कार्यवाही का प्रसारण : सुप्रीम कोर्ट ने 26 सितंबर के तीसरे अहम फैसले में कहा कि महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई लोग LIVE देख सकेंगे। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया कि इस प्रक्रिया की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट से होगी। कोर्ट ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग से अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता आएगी।
 
6. एडल्टरी पर ऐतिहासिक फैसला : प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 27 सितंबर को व्यभिचार (adultery) के लिए दंड का प्रावधान करने वाली धारा को सर्वसम्मति से असंवैधानिक घोषित किया। न्यायमूर्ति मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि व्यभिचार के संबंध में भादसं की धारा 497 असंवैधानिक है। अर्थात अब व्यभिचार अपराध नहीं होगा। हालांकि यह तलाक का कारण हो सकता है। 
 
7. मस्जिद इस्लाम का अंग है या नहीं : 27 सितंबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं’ के बारे में शीर्ष अदालत के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से गुरुवार को इंकार कर दिया। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि वह 29 अक्टूबर से अयोध्या मामले की सुनवाई विषय के गुण एवं दोष के आधार पर करेगा। कोर्ट ने इस मामले में 1994 के अपने फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में कहा था कि नमाज मस्जिद का हिस्सा नहीं है।
 
8. महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश : 28 सितंबर को उच्चतम न्यायालय ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार देते हुए कहा कि वे किसी भी तरह पुरुषों से कम नहीं हैं। अदालत ने कहा कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक पूरी तरह असंवैधानिक है। मंदिर में हर उम्र में महिलाएं जा सकेंगी। महिलाओं को पूजा से रोकना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है।

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