Election rules dispute: सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर जवाब देने के लिए EC को दिया 3 सप्ताह का समय

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
गुरुवार, 17 अप्रैल 2025 (15:30 IST)
Election rules dispute: उच्चतम न्यायालय (Election Commission) ने 1961 के चुनाव नियमों में हुए हालिया संशोधनों को चुनौती देने वाली कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश (Jairam Ramesh) और अन्य पक्षों की याचिकाओं पर जवाब देने के लिए गुरुवार को निर्वाचन आयोग को 3 सप्ताह का समय और दिया। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार (Sanjay Kumar) की पीठ ने रमेश की याचिका पर 15 जनवरी को केंद्र सरकार और आयोग को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था।
 
निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने जवाब दाखिल करने के लिए 3 और सप्ताह का जवाब मांगा। पीठ ने सिंह का अनुरोध स्वीकार करते हुए सुनवाई के लिए 21 जुलाई की तारीख तय की। रमेश के अलावा श्मामलाल पाल और कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की 2 ऐसी ही याचिकाएं लंबित हैं। वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने रमेश का प्रतिनिधित्व किया।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि 1961 की चुनाव संचालन नियमावली में संशोधन बहुत चतुराई से किया गया है और मतदाता की पहचान उजागर होने का दावा करते हुए मतदान के सीसीटीवी फुटेज तक पहुंच पर रोक लगा दी गई है।
 
सिंघवी ने कहा था कि मतदान के लिए पसंदीदा विकल्पों के बारे में कभी खुलासा नहीं किया गया तथा सीसीटीवी फुटेज से भी मतों का पता नहीं चल सकता। वरिष्ठ वकील ने पीठ से आग्रह किया था कि वह निर्वाचन आयोग और केंद्र को अगली सुनवाई की तारीख से पहले अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दे।
 
रमेश ने दिसंबर में याचिका दायर करके उम्मीद जताई थी कि उच्चतम न्यायालय चुनावी प्रक्रिया की तेजी से खत्म हो रही शुचिता को बहाल करने में मदद करेगा। सरकार ने चुनाव नियमों में बदलाव करते हुए सीसीटीवी कैमरा और 'वेबकास्टिंग' फुटेज के अलावा उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों की सार्वजनिक जांच पर रोक लगा दी है ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके।
 
रमेश ने कहा था कि चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता तेजी से खत्म हो रही है। उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इसे बहाल करने में मदद करेगा। निर्वाचन आयोग की सिफारिश के आधार पर दिसंबर में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 1961 की नियमावली के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया था ताकि सार्वजनिक जांच के दायरे में आने वाले कागजात या दस्तावेजों को जनता की पहुंच से प्रतिबंधित किया जा सके।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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