आरक्षण को लेकर लोकसभा में हंगामा, विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर लगाए आरोप

Webdunia
सोमवार, 10 फ़रवरी 2020 (14:38 IST)
नई दिल्ली। एनआरसी और सीएए के विवाद और बहस के बीच अब आरक्षण को लेकर बहस गर्मा गई है। सोमवार को कांग्रेस, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) और बसपा समेत अन्‍य विपक्षी दलों ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को नौकरियों और पदोन्नति में आरक्षण को लेकर लोकसभा में हंगामा किया।
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दलों ने आरोप लगाया कि जिस तरह से उत्तराखंड सरकार की तरफ से उच्चतम न्यायालय में तर्क दिए गए हैं, उससे साफ है कि सरकार इस व्यवस्था को समाप्त करने का प्रयास कर रही है।
 
कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने शून्यकाल में यह मामला उठाया और कहा कि उत्तराखंड सरकार की तरफ से इन वर्गों के लिए आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायालय में याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा गया कि सरकारी नौकरियों तथा पदोन्नति में आरक्षण मूलभूत अधिकारों में शामिल नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में भाजपा की सरकार है और राज्य सरकार की तरफ से यह तर्क आरक्षण को लेकर न्यायालय में दिया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि सरकार आरक्षण समाप्त करना चाहती है। उन्होंने कहा कि हजारों साल से दबे कुचले इन वर्गों के लोगों को सरकार को संरक्षण देना चाहिए लेकिन भाजपा सरकार इसके विरोध में न्यायालय में गलत तर्क दे रही है।
 
कांग्रेस नेता के यह मामला उठाने के साथ ही लगभग सभी विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस मामले को उठाया और कहा कि सरकार के आरक्षण समाप्त करने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसी बीच कांग्रेस सदस्य सरकार विरोधी नारे लगाते हुए सदन के बीचों बीच आ गए।
 
संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी तथा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि यह न्यायालय का मामला है और सरकार पर आरक्षण खत्म करने का विपक्षी दलों के सदस्यों का आरोप बेबुनियाद है। उन्होंने सदन को बताया कि यह मामला 2012 का है और तब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी। 
 
इधर कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने सरकारी नौकरियों व  प्रोन्नतियों में दलित-आदिवासियों को आरक्षण देने को अनिवार्य करने के बजाए उसे राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ने वाले उच्चतम न्यायालय के ताजा आदेश से असहमति जताते हुए  इसके लिए भाजपा और उसकी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है।
 
पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने सोमवार को जारी बयान में इस आदेश को निराशाजनक और सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि इस आदेश के व्यवहारिक  क्रियान्वयन में नौकरियों में वंचित समूहों को आरक्षण मिलना ही बंद हो जाएगा।

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