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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, धर्म के आधार पर नहीं हो सकता आरक्षण

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
सोमवार, 9 दिसंबर 2024 (19:02 IST)
Supreme Court on reservation on basis of religion: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह बात कही, जिसमें पश्चिम बंगाल में 2010 से कई जातियों को दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने 22 मई के फैसले को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका सहित सभी याचिकाएं न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आईं।
 
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं हो सकता। राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह धर्म के आधार पर नहीं है। यह पिछड़ेपन के आधार पर है। उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में 2010 से कई जातियों को दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया था और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में उनके लिए आरक्षण को अवैध ठहराया था। ALSO READ: बहुसंख्यकों के हिसाब से ही चलेगा देश, हाईकोर्ट जज की टिप्पणी से मचा बवाल
 
मुस्लिम समुदाय का अपमान : अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा कि वास्तव में इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए धर्म ही एकमात्र मानदंड प्रतीत हो रहा है। उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि मुसलमानों के 77 वर्गों को पिछड़ों के रूप में चुना जाना समग्र रूप से मुस्लिम समुदाय का अपमान है।
 
राज्य के 2012 के आरक्षण कानून और 2010 में दिए गए आरक्षण के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर निर्णय लेते हुए, उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हटाए गए वर्गों के उन नागरिकों की सेवाएं, जो पहले से ही सेवा में थे या आरक्षण का लाभ उठा चुके थे, या राज्य की किसी भी चयन प्रक्रिया में सफल हुए थे, इस निर्णय से प्रभावित नहीं होंगे।  ALSO READ: संभल मस्जिद सर्वे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्देश, निचली अदालत न ले कोई एक्शन
 
77 वर्गों का आरक्षण रद्द किया था : उच्च न्यायालय ने कुल मिलाकर अप्रैल 2010 और सितंबर 2010 के बीच 77 वर्गों को दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया था। उसने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत ओबीसी के रूप में आरक्षण के लिए 37 वर्गों को भी रद्द कर दिया। सोमवार को सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने मामले में उपस्थित वकीलों से मामले का अवलोकन करने को कहा।
 
उच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए सिब्बल ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों को निरस्त कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसलिए इसमें बहुत गंभीर मुद्दे शामिल हैं। यह उन हजारों छात्रों के अधिकारों को प्रभावित करता है जो विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने के इच्छुक हैं, जो लोग नौकरी चाहते हैं। ALSO READ: अजमेर शरीफ दरगाह को शिव मंदिर बताने वाली याचिका कोर्ट ने मंजूर की, 20 दिसंबर को अगली सुनवाई
 
7 जनवरी को फिर सुनवाई : इसलिए सिब्बल ने पीठ से आग्रह किया कि कुछ अंतरिम आदेश पारित किए जाएं और उच्च न्यायालय के आदेश पर पूर्वदृष्टया रोक लगाई जाए। पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया सहित अन्य वकीलों की दलीलें भी सुनीं, जो मामले में कुछ प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह 7 जनवरी को विस्तृत दलीलें सुनेगी।
 
गत पांच अगस्त को मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार से ओबीसी सूची में शामिल की गई नई जातियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर मात्रात्मक आंकड़े प्रदान करने को कहा था।
 
उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर निजी वादियों को नोटिस जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने राज्य से एक हलफनामा दाखिल करने को कहा। हलफनामे में 37 जातियों, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समूह थे, को ओबीसी सूची में शामिल करने से पहले उसके और राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किए गए परामर्श, यदि कोई हो, का विवरण देने को कहा गया है। (एजेंसी/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
 

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