जम्मू। यह सच है कि पुलवामा हमले के एक साल बाद जमीनी हकीकत बदल चुकी है। घाटी में 2019 में 160 आतंकी मारे गए और 102 पकड़े गए। आतंकियों का वित्तीय नेटवर्क तबाह हो चुका है। वादी में लश्कर व हिजबुल की कमान संभालने को कोई आतंकी कमांडर तैयार नहीं है। बेशक पाकिस्तान को हर मोर्चे पर शिकस्त झेलनी पड़ी पर अभी भी वह साजिशें रच रहा है। उसके कुछ पैरोकारी कश्मीर में नई पीढ़ी के मन में जहर भर रहे हैं।
सुरक्षाबल खास रणनीति पर काम कर रहे हैं और 80 युवाओं को मुख्यधारा में लाया भी गया है। कश्मीर के दूरदराज क्षेत्रों में युवाओं व किशोरों को गुमराह किया जा रहा। दरअसल आतंकी संगठन इस समय पूरी तरह हताश हैं। आतंकी कोई बड़ी वारदात नहीं कर पा रहे हैं। लगभग सभी प्रमुख कमांडर मारे जा चुके हैं। ऐसे में वह आत्मघाती हमले को अंजाम देकर हालात बिगाड़ने और अफरातफरी फैलाने का विकल्प अपना सकते हैं। बीते कुछ सालों के दौरान कई नौजवानों में धर्मांध जिहादी मानसिकता पैदा हुई है। उनमें से कुछ आत्मघाती बन सकते हैं।
कश्मीर में सुरक्षाबलों ने एक साल के दौरान आतंकी नेटवर्क की कमर लगभग तोड़ दी है। प्रमुख आतंकी कमांडर मारे जा चुके हैं या पकड़े गए हैं, लेकिन आज भी आत्मघाती हमलों की आशंका बनी हुई है। घाटी में पांच से छह स्थानीय आत्मघातियों की मौजूदगी का सूत्र दावा करते हैं। इनमें एक भी नहीं पकड़ा है। पुलवामा हमले में आत्मघाती हमलावर आदिल डार की मौत के बाद खुफिया सूत्रों ने अपने तंत्र से पता लगाया था कि कश्मीर में जैश ने सात स्थानीय लड़कों को आत्मघाती हमलों के लिए तैयार किया है। अहम सुराग से सभी सुरक्षा एजेंसियां सकते में आ गई थीं। हमलों में स्थानीय आतंकी कभी कभार हिस्सा लेते थे।
कश्मीर में पहले आत्मघाती हमले को अंजाम देने वाला आतंकी आफाक भी स्थानीय था। श्रीनगर के डाउन-टाउन के आफाक ने 2000 के दौरान विस्फोटकों से लदी कार के साथ बादामीबाग सैन्य शिविर के गेट पर हमला किया था। कई बार आत्मघाती हमले कश्मीर में हुए, लेकिन उनमें स्थानीय आतंकियों की भागीदारी नहीं थी। किसी इमारत में घुसकर या किसी सुरक्षा शिविर में हमला करने वाले आत्मघाती हमले में दो से तीन बार स्थानीय आतंकी शामिल रहे। वर्ष 2000 के बाद पुलवामा हमले में खुद को उड़ाने का यह पहला मामला था।
पुलवामा हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने वादी में कई जगह छापेमारी कर आत्मघाती हमलों के लिए तैयार किए स्थानीय युवकों की तलाश शुरू की, लेकिन कोई नहीं मिला। 30 मार्च 2019 को बनिहाल के निकट आत्मघाती आतंकी ने केरिपुब के काफिले पर हमले का नाकाम प्रयास किया। विस्फोटकों से भरी कार में सही तरीके से विस्फोट नहीं हुआ और जलती कार को मौके पर छोड़ आत्मघाती भाग निकला। वह अगले दिन पकड़ा गया। उसकी पहचान उवैस अमीन के रूप में हुई। वह बीबीए का छात्र था। उसकी निशानदेही पर पुलिस ने छह और युवकों को पुलवामा से पकड़ा।
पूछताछ से पता चला कि छह आत्मघाती और चार वाहन तैयार किए हैं। आत्मघातियों के लिए वाहनों को तैयार करने का जिम्मा मुन्ना बिहारी उर्फ मुन्ना लाहौरी नामक आतंकी संभालता है। मुन्ना भी जुलाई में एक अन्य साथी संग सुरक्षाबलों के हाथों मारा गया, लेकिन आत्मघाती हमलों के लिए तैयार वाहन बमों व आत्मघातियों का कोई सुराग नहीं मिला। बावजूद आत्मघाती हमलों का खतरा कम नहीं हुआ है। जैश आत्मघाती हमलों के जरिए किसी बड़े हमले को अंजाम देने के लिए फिर मौका तलाश रहा है।
वह अपनी साजिश में कामयाब रहता, अगर गत माह श्रीनगर में पांच सदस्यीय जैश मॉडयूल न पकड़ा जाता। इस मॉडयूल से हथियारों की बड़ी खेप के अलावा आत्मघाती हमलावर के लिए तैयार की गई जैकेट बरामद हुई। इसी मॉडयूल से मिले सुरागों पर 25 जनवरी को सुरक्षाबलों ने हरपरिगाम में कारी यासिर को उसके तीन साथियों संग मार गिराया।