श्रीनगर। करगिल युद्ध के बाद जम्मू कश्मीर में आरंभ हुए फिदायीन हमलों का रूप अब बदल गया है। यहां शुरुआत के फिदायीन हमलों में एक से दो आतंकी शामिल हुआ करते थे, अब उनकी संख्या बढ़कर 4 से 6 तक हो गई है।
फिदायीन हमला करने वालों ने अब अपनी रणनीति को भी पूरी तरह से बदल कर लिया है। अब उनका मकसद सुरक्षाबलों को अधिक से अधिक क्षति पहुंचाने के साथ ही ऐसा कुछ करने का है जो हमेशा पहली बार हो। यह कुछ महीने पहले जम्मू के सुंजवां, कश्मीर के उड़ी तथा जम्मू बॉर्डर पर अरनिया सेक्टर में हुए फिदायीन हमलों से साबित होता है।
जुलाई 1999 में जब करगिल युद्ध समाप्त हुआ तो 6 अगस्त 1999 को पहला फिदायीन हमला हुआ था। एकमात्र आतंकी ने फिदायीन की भूमिका निभाते हुए सैनिक शिविर के भीतर घुसकर हमला किया तो एक मेजर समेत तीन सैनिकों की मौत हो गई थी।
पहले फिदायीन हमले के 19 सालों के बाद फिदायीन हमलों में शामिल होने वालों की संख्या अब एक से बढ़कर 6 तक पहुंच गई है। जबकि इस साल फरवरी में जम्मू के सुंजवां में हुए हमले में 6 फिदायीन शामिल थे तो कुछ अरसा पहले अरनिया में हुए फिदायीन हमले में चार फिदायीन शामिल थे। फिदायीन हमलों में सिर्फ फिदायीनों की संख्या ही नहीं बढ़ी है बल्कि उनकी रणनीति भी बदल गई है।
पिछले 19 सालों के दौरान होने वाले सैकड़ों फिदायीन हमलों में अभी तक यही होता रहा था कि 3 से 4 आतंकी सैनिक शिविर में अंधाधुंध गोलीबारी करते हुए घुसने की कोशिश करते थे और जितने लोग सामने आते थे उन्हें ढेर कर देते थे। पर उड़ी में हुए फिदायीन हमले में आतंकियों ने जो रणनीति अपनाई उसने सभी को चौंका दिया। यहां उन्होंने दो दलों में बंटकर हमला बोला था। एक दल कैम्प में घुस गया और दूसरे ने उन सैनिकों को कैम्प के भीतर आने से रोके रखा जो दूसरे गुट को हमला करने से रोकना चाहते थे।
यही नहीं उड़ी में हुए फिदायीन हमले में पहली बार आतंकियों ने सैनिकों की बैरकों को भी आग लगा दी थी। आग लगने के कारण चार सैनिक जलकर मारे गए। यह पहला अवसर था कि फिदायीनों ने सोए हुए सैनिकों को जिंदा जला दिया था।
इन दो बड़े फिदायीन हमलों का खास पहलू यह था कि तीनों ही हमलों में शामिल आतंकी अपने साथ रॉकेट लांचर और मोर्टार जैसे हथियार लेकर आए थे और अपने साथ वे इतना गोला-बारूद लेकर आए थे जो मुठभेड़ों को कई दिनों तक जारी रखने के लिए काफी थे।
यही नहीं इन तीनों फिदायीन हमलों से एक और बात सामने आई कि दोनों ही हमले कई किमी भीतर आकर हुए हैं। जबकि दोनों ही हमलों में शामिल फिदायीनों ने ताजा घुसपैठ की थी और फिर सुरक्षाबलों पर हमले कर सभी को चौंकाया था। जबकि सुंजवां के हमले के प्रति चौंकाने वाला पहलू यह था कि फिदायीन कुछ दिन पहले ही आर्मी कैम्प के भीतर आकर छुप गए थे।