Article 370 हटने के 4 साल बाद क्‍या बदला कश्‍मीर में, क्‍या है 370 और क्‍यों इसे हटाया गया था?

Webdunia
सोमवार, 11 दिसंबर 2023 (08:30 IST)
Article 370: जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में 4 साल पहले अनुच्छेद 370 को निरस्त करना (Abrogation of Article 370) नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार एक बड़ा फैसला था। इस अनुच्‍छेद के हटने के बाद कश्‍मीरियों की जिंदगी में कई तरह के सकारात्‍मक बदलाव आए हैं।

बता दें कि आज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराने की कगार पर आ गई है। आतंकियों को मिलने वाली आर्थिक मदद और हथियारों की मदद भी पूरी तरह से घट गई है। बता दें कि अनुच्छेद 370 अलगाववादियों और पाकिस्तान समर्थकों के लिए एक बड़ा हथियार था। जिसकी वजह से जम्‍मू कश्‍मीर में अशांति का माहौल था।जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का कहना है कि राज्य से आर्टिकल 370 हटने के बाद अब आम कश्मीरी आजादी की जिंदगी जी रहा है और किसी के हुक्म से बंधा हुआ नहीं है। आज करीब 4 साल बाद कश्‍मीर की तस्‍वीर पूरी तरह से बदली हुई सी नजर आती है।

इस मौके पर आइए जानते हैं आखिर क्या है अनुच्छेद यानी आर्टिकल 370, ये जम्मू कश्मीर में कैसे लागू हुई और इससे आखिर वहां क्या-क्या बदला।

क्‍या बदला जम्‍मू-कश्‍मीर में?
रातनीतिक बदलाव : 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर से दोहरी नागरिकता का प्रावधान भी समाप्त हो गया। पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता था, वहीं अब उसे अन्य राज्यों की तरह 5 साल कर दिया है। केंद्र शासित प्रदेश से विधान परिषद को भी समाप्त कर दिया गया है। वहीं 7 विधानसभा सीटें बढ़ी हैं। इनमें 6 सीटें जम्मू और 1 सीट कश्मीर घाटी में बढ़ी है।

आतंकवाद और अलगावाद : आतंकवाद और अलगावाद जम्मू-कश्मीर में अब बीती हुई बात है। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद आतंकी घटनाओं में भी कमी देखने को मिली है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराने की कगार पर आ गई है। आतंकियों को मिलने वाली आर्थिक मदद और हथियारों की मदद भी पूरी तरह से घट गई है।

घूमने आ रहे लोग : धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर के पर्यटन क्षेत्र में भी विकास हुआ है। 4 सालों में जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों की अच्छी भीड़ देखी गई। भयमुक्त माहौल है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में 1.88 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर आए।

दरअसल, 5 अगस्त 2019 वो तारीख, जिसने आर्टिकल 370 की लकीर को मिटाकर भारत के इतिहास की एक बेमिसाल गाथा लिख दी। भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा में संविधान के आर्टिकल 370 को हटाने का प्रस्ताव पेश किया गया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को पढ़ना एक इतिहास बनता नजर आ रहा था। इस प्रस्ताव के साथ जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 377 हटा दी गई। इसके बाद कश्मीर में शांति बहाल हुई, पत्थरबाजी की घटनाएं रूकीं और आतंकवाद लगभग खत्म हुआ। 

क्या है इतिहास?
17 अक्टूबर 1949 को एक एक ऐसी घटना घटी जिसने जम्मू और कश्मीर का इतिहास बदल दिया। दरअसल, संसद में गोपाल स्वामी आयंगर ने खड़े होकर कहा कि हम जम्मू और कश्मीर को नया आर्टिकल देना चाहते हैं। उनसे जब यह पूछा गया कि क्यों? तो उन्होंने कहा कि आधे कश्मीर पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है और इस राज्य के साथ समस्याएं हैं। आधे लोग उधर फंसे हुए हैं और आधे इधर।

वहां की स्थिति अन्य राज्यों की अपेक्षा अलग है तो ऐसे में वहां के लिए फिलहाल नए आर्टिकल की जरूरत होगी, क्योंकि अभी जम्मू और कश्मीर में पूरा संविधान लागू करना संभव नहीं होगा। अतत: अस्थायी तौर पर उसके लिए 370 लागू करना होगी। जब वहां हालात सामान्य हो जाएंगे तब इस धारा को भी हटा दिया जाएगा। फिलहाल वहां धारा 370 से काम चलाया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि सबसे कम समय में डिबेट के बाद यह आर्टिकल पार्लियामेंट में पास हो गया। यह संविधान में सबसे आखिरी में जोड़ी गई धारा थी। इस धारा के फेस पर भी लिखा है कि 'टेम्परेरी प्रोविंजन फॉर द स्टेट ऑफ द जम्मू और कश्मीर'।

भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 एक अनुच्छेद है। 21वें भाग को बनाया ही गया अस्थायी प्रावधानों के लिए था जिसे कि बाद में हटाया जा सके। इस धारा के 3 खंड हैं। इसके तीसरे खंड में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के परामर्श से धारा 370 कभी भी खत्म कर सकता है। हालांकि अब तो संविधान सभा रही नहीं, ऐसे में राष्ट्रपति को किसी से परामर्श लेने की जरूरत नहीं।

जब कोई आर्टिकल या धारा टेम्परेरी बनाई जाती है तो उसको सीज करने या हटाने की प्रक्रिया भी लिखी जाती है। उसमें लिखा गया कि प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया जब उचित समझें और उन्हें लगे कि समस्याओं का हल हो गया है या जनजीवन सामान्य हो गया तो वह उस धारा को हटा सकता है।

यहां यह समझने वाली बात यह है कि धारा 370 भारत की संसद लेकर आई है और वहीं इसे हटा सकती है। इस धारा को कोई जम्मू और कश्मीर की विधानसभा या वहां का राजा नहीं लेकर आया, जो हटा नहीं सकते हैं। यह धारा इसलिए लाई गई थी, क्योंकि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पीओके) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी। ऐसे में वहां भारत के संपूर्ण संविधान को लागू करना शायद नेहरू ने उचित नहीं समझा या नेहरू ने इस संबंध में शेख अब्दुल्ला की बात मानी हो।

लेकिन यह भी कहा गया कि इसी बीच वहां पर भारत के संविधान का वह कानून लागू होगा जिस पर फिलहाल वहां कोई समस्या या विवाद नहीं है। बाद में धीरे-धीरे वहां भारत के संविधान के अन्य कानून लागू कर दिए जाएंगे। इस प्रक्रिया में सबसे पहले 1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच एक एग्रीमेंट हुआ। जिसे 'दिल्ली एग्रीमेंट' कहा गया।

धारा 370 के विशेष अधिकार
धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। Edited by navin rangiyal

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