विदाई ले रहा वर्ष 2022 भाजपा को गुजरात में तो महाविजय दे गया, लेकिन हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर पालिका में सत्ता उसके हाथ से निकल गई। आगामी वर्ष 2023 में चुनौतियां और बड़ी होंगी क्योंकि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा को इस साल होने वाले 9 राज्यों में 1083 सीटों पर विधानसभा चुनाव का सामना करना है, जो कि लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले होने जा रहे हैं। इसे केन्द्र की सत्ता का सेमीफाइनल भी कहा जा सकता है।
इन विधानसभा चुनावों के बाद मतदाताओं के मूड से पता चल जाएगा कि 2024 में सत्ता का ऊंट किस करवट बैठने वाला है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा नए साल में भी चलने वाली है। इसका समापन जम्मू-कश्मीर में होगा। राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो इस यात्रा का असर खासकर मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में देखने को मिल सकता है। जम्मू कश्मीर में भी संभव है 2024 में ही चुनाव हो जाएं।
वर्ष के पूर्वार्द्ध यानी पहली छमाही में मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होंगे। यूं तो चारों ही राज्य महत्वपूर्ण हैं, लेकिन भाजपा के लिए कर्नाटक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में यहां भाजपा की ही सरकार है। 224 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में 28 लोकसभा सीटें भी हैं। यदि कर्नाटक भाजपा के हाथ से निकलता है तो लोकसभा चुनाव में भी मुश्किल हो सकती है।
वहीं पूर्वोत्तर के 3 राज्यों- मेघालय (2), त्रिपुरा (2) और नगालैंड (1) में लोकसभा की 5 सीटें हैं। त्रिपुरा में इस समय भाजपा की सरकार है, वहीं नगालैंड और मेघालय में भाजपा और सहयोगी दलों की सरकार है। 2018 में 60 सदस्यीय मेघालय विधानसभा में 21 सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई थी। यहां 2 सीटें जीतने वाली भाजपा ने जोड़-तोड़ कर 5 दलों के सहयोग से सरकार बनवा दी थी। फिलहाल पूर्वोत्तर के एक भी राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं है।
साल के आखिरी महीने भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे, जब 3 हिन्दी भाषी राज्य- मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव होंगे। इस समय मध्यप्रदेश में भाजपा और राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं। हालांकि चुनाव के समय तो मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की ही सरकार बनी थी, लेकिन बाद में जोड़तोड़ कर भाजपा की सरकार बन गई।
2019 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की सभी 29 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज भी भाजपा की आंधी में ताश के पत्तों की तरह ढह गए थे। हालांकि बाद में सिंधिया भाजपा में ही आ गए थे। ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि चंबल इलाके में पार्टी की पकड़ मजबूत हो जाएगी। 2018 के विधानसभा चुनाव में चंबल क्षेत्र के इलाके भी भाजपा की हार का प्रमुख कारण बने थे। आदिवासी वोट हासिल करना भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी। हालांकि हार के बावजूद भाजपा का वोट प्रतिशत कांग्रेस के मुकाबले 1 फीसदी अधिक था।
राजस्थान में भाजपा ने विधानसभा चुनाव हारने के करीब 5 महीने के बाद ही लोकसभा चुनाव में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। 24 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी, जबकि एक सीट नागौर में उसके सहयोगी हनुमान बेनीवाल ने जीत हासिल की थी। राहुल गांधी की यात्रा के मद्देनजर राजस्थान विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
हालांकि इस राज्य में भी हिमाचल प्रदेश की तरह जनता हर बार परिवर्तन करती है। इस उम्मीद से भाजपा खुश हो सकती है। लेकिन, अशोक गहलोत का सस्ते गैस सिलेंडर का दांव कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकता है। साथ ही लोकसभा चुनाव में भी भाजपा फिर से प्रदर्शन दोहराने का दबाव होगा।
छत्तीसगढ़ में भी इस समय कांग्रेस की सरकार है, जबकि यहां 11 लोकसभा सीटें हैं। इनमें भाजपा का 9 सीटों पर भाजपा का कब्जा है, जबकि 2 सीटें कांग्रेस के पास हैं। 2013 में छत्तीसगढ़ में सत्ता हासिल करने वाली भाजपा के लिए 2023 में फिर से सत्ता हासिल करना एक बड़ी चुनौती होगी।
दक्षिणी राज्य तेलंगाना में भी वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। वर्तमान में यहां के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली टीआरएस की सरकार है। विधानसभा चुनाव में टीआरएस ने 119 सदस्यीय विधानसभा में 88 सीटें जीतकर एकतरफा बहुमत हासिल किया था। भाजपा यहां मात्र 2 सीटें ही जीत पाई थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 17 में से 4 सीटें जीती थीं। इस दक्षिणी राज्य में भाजपा काफी हाथ-पैर मार रही है, लेकिन राज्य में सत्ता हासिल करना मुश्किल ही प्रतीत होता है। यहां टीआरएस की प्रतिद्वंद्वी के रूप में कांग्रेस ही है।
पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम में भी साल के आखिर में चुनाव होंगे। यहां वर्तमान में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है, जबकि लोकसभा की एक ही सीट है। जम्मू कश्मीर में भी इस साल चुनाव करवाए जा सकते हैं। कुल मिलाकर 2023 का साल भाजपा के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। क्योंकि विधानसभा चुनावों के परिणामों के आधार पर ही काफी हद तक लोकसभा चुनाव की स्क्रिप्ट तैयार होगी।