कैसे फैलता है खतरनाक जीका, क्या हैं लक्षण और उपचार...

Webdunia
शनिवार, 13 अक्टूबर 2018 (15:41 IST)
जीका वायरस सबसे पहले बंदरों में देखा गया था। वर्ष 1947 में युगांडा स्थित जीका के जंगलों में जो बंदर थे, वह इस वायरस से संक्रमित थे और इसी वजह से इस वायरस का नाम जीका पड़ा था।


वर्ष 1954 में पहली बार इंसानों के शरीर में इस वायरस के लक्षण देखे गए। हालांकि कई दशकों तक कभी भी यह वायरस मानव जाति के लिए बड़े खतरे के तौर पर सामने नहीं आया। इस वजह से कभी भी वैज्ञानिकों ने इसकी वैक्सीन को विकसित करने के बारे में नहीं सोचा।

इस वायरस को वर्ष 2007 में कैरीबियन कंट्री माइक्रो‍नेशिया के एक आईलैंड याप में देखा गया और यहां से यह वायरस लैटिन अमेरिकी देशों की ओर बढ़ता गया। दिसंबर 2015 में लैटिन अमेरिकी देश प्यूर्टो रिको में इसका पहला लक्षण दिखा।

इस तरह फैलता है जीका : जीका आरएनए वायरस से संबंधित है। यह वायरस डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया की ही तरह मच्छरों से फैलता है। यह एक प्रकार का एडीज मच्छर ही है, जो दिन में सक्रिय रहते हैं। ब्ल्यूएचओ के अनुसार अगर किसी व्यक्ति को इस वायरस से संक्रमित मच्छर काट लेता है तो उस व्यक्ति में इसके वायरस आते हैं। इस तरह से यह वायरस एक जगह से दूसरी जगह फैल जाता है। मच्छरों के अलावा असुरक्षित शारीरिक संबंध और संक्रमित खून से भी जीका बुखार या वायरस फैलता है।

प्रभाव : यह वायरस इतना खतरनाक है कि अगर किसी गर्भवती महिला को हो जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को भी यह बुखार हो सकता है। जिस वजह से बच्चे के सिर का विकास रुक सकता रूक सकता है और वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन भी फैल सकता है। वर्टिकली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन में स्किन रैशेज़ या दाग, पीलिया, लिवर से जुड़ी बीमारियां, अंधापन, दिमागी बीमारी, ऑटिज्म, सुनने में दिक्कत और कई बार बच्चे की मौत भी हो सकती है।

वहीं, वयस्कों में जीका वायरस गुलैन-बैरे सिंड्रोम का कारण बन सकता है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर हमला करती हैं, इस वजह से शरीर में कई दिक्कतों की शुरुआत होती है।कभी-कभी इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति पैरालिसिस का शिकार भी हो सकता है।

लक्षण : वायरस की वजह से होने वाले बुखार से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में दर्द रहता है, थकान, सिरदर्द, शरीर पर लाल चकत्ते, आंखों में सूजन होती है, उसे जोड़ों में दर्द रहता है। इसके लक्षण लगभग डेंगू की तरह ही होते हैं।

बचने के उपाय : इस वायरस का कोई टीका नहीं है, न ही कोई उपचार है। इस संक्रमण से पीड़ित लोगों को दर्द में आराम देने के लिए पैरासिटामॉल (एसिटामिनोफेन) दी जाती है। जीका वायरस को फैलाने वाले मच्छर से बचने के लिए वही उपाय हैं जो आप डेंगू से बचने के लिए करते आए हैं। इसके अलावा मच्छरदानी का प्रयोग, पानी को ठहरने नहीं दें, आसपास की साफ-सफाई, मच्छर वाले एरिया में पूरे कपड़े पहनना, मच्छरों को मारने वाली चीज़ों का इस्तेमाल और खून को जांचे बिना शरीर में ना चढ़वाना।

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