कॉमेडी को नई ऊँचाइयाँ देने वाला कलाकार

29 सितम्बर जन्मदिन पर विशेष

Webdunia
लोगों को हँसाने की विलक्षण प्रतिभा के धनी प्रख्यात हास्य कलाकार महमूद को कॉमेडी को भारतीय फिल्मों का अभिन्न अंग बनाने का श्रेय जाता है। हँसी-मजाक में बड़ी खूबसूरती से जिंदगी का फलसफा बयान करने का हुनर रखने वाले इस कलाकार ने हास्य भूमिका को नए आयाम और मायने दिए।

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महमूद ने भारतीय फिल्मों में महज औपचारिकता मानी जाने वाली कॉमेडी को एक अलग और विशेष स्थान दिलाया। उन्होंने कॉमेडी को एक नया स्तर और ऊँचाई देने के साथ-साथ यह भी साबित किया कि फिल्म का हास्य कलाकार उसके नायक पर भी भारी पड़ सकता है।

फिल्म समीक्षक ज्योति वेंकटेश ने महमूद को भारतीय फिल्मों में कॉमेडी के नए युग की शुरुआत करने वाला कलाकार बताते हुए कहा कि इस फनकार ने कॉमेडी को भारतीय फिल्मों के कथानक का अंतरंग हिस्सा बनाया। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि 60 के दशक में फिल्मों पर कॉमेडी हावी होने लगी थी और महमूद अभिनय की इस विधा के बेताज बादशाह बन गए थे।

बकौल वेंकटेश महमूद ने 60 के दशक में अपने अभिनय की विशिष्ट शैली के जादू से हिन्दी फिल्मों में कॉमेडियन की भूमिका को विस्तार दिया और एक वक्त ऐसा भी आया जब महमूद दर्शकों के लिए अपरिहार्य बन गए।

महमूद का जन्म 29 सितम्बर 1932 को मुम्बई में हुआ था। अपने माता-पिता की आठ में से दूसरे नम्बर की संतान महमूद ने शुरुआत में बाल कलाकार के तौर पर कुछ फिल्मों में काम किया था।

महमूद को फिल्मों में पहला बड़ा ब्रेक फिल्म ‘परवरिश’ (1958) में मिला था। इसमें उन्होंने फिल्म के नायक राजकपूर के भाई का किरदार निभाया था।

‘परवरिश’ से महमूद की कॉमेडी की प्रतिभा को पहचान मिली। बाद में उन्होंने फिल्म ‘गुमनाम’ में एक दक्षिण भारतीय रसोइए का कालजयी किरदार अदा किया। उसके बाद उन्होंने ‘प्यार किए जा’, ‘प्यार ही प्यार’, ‘ससुराल’, ‘लव इन टोक्यो’ और ‘जिद्दी’ जैसी हिट फिल्में दीं।

अपनी अनेक फिल्मों में वे नायक के किरदार पर भारी नजर आए। यह उनके अभिनय की खूबी थी कि दर्शक अकसर नायक के बजाय उन्हें देखना पसंद करते थे।

फिल्मों में अपनी बहुविध कॉमेडी से दर्शकों को दीवाना बनाने के बाद महमूद ने अपनी फिल्म निर्माण कम्पनी पर ध्यान देने का फैसला किया। उनकी पहली होम प्रोडक्शन फिल्म ‘छोटे नवाब’ थी। बाद में उन्होंने बतौर निर्देशक सस्पेंस-कॉमेडी फिल्म ‘भूत बंगला’ बनाई। उसके बाद उनकी फिल्म ‘पड़ोसन’ 60 के दशक की जबरदस्त हिट साबित हुई। पड़ोसन को हिंदी सिने जगत की श्रेष्ठ हास्य फिल्मों में गिना जाता है।

अभिनेता, निर्देशक, कथाकार और निर्माता के रूप में काम करने वाले महमूद ने बॉलीवुड के मौजूदा किंग शाहरुख खान को लेकर वर्ष 1996 में अपनी आखिरी फिल्म ‘दुश्मन दुनिया का’ बनाई लेकिन वे शायद दर्शकों के बदले जायके को समझ नहीं सके और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नाकाम रही।

अपने जीवन के आखिरी दिनों में महमूद का स्वास्थ्य खराब हो गया। वे इलाज के लिए अमेरिका गए, जहाँ 23 जुलाई 2004 को उनका निधन हो गया। दुनिया को हँसाकर लोट-पोट करने वाला यह महान कलाकार नींद के आगोश में बड़ी खामोशी से इस दुनिया से विदा हो गया। (भाषा)

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