मांसाहार में चिकन के शौकीनों के लिए यह एक बुरी खबर हो सकती है कि जिस लजीज स्वाद के लिए वे मुर्गे को अपने पेट में डाल रहे हैं, वही उनके लिए एक बड़ी मुसीबत साबित हो सकता है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने जो सर्वेक्षण किया है, उसमें सनसनीखेज परिणाम सामने आए हैं। इन परिणामों को देखते हुए हो सकता है कि आप मुर्गे खाना कम कर दें या फिर बंद कर दें क्योंकि जिस मुर्गे को खाकर आप फूले नहीं समा रहे हैं, भविष्य में यही मुर्गा आपकी सेहत के साथ नुकसान कर सकता है, वह भी उस वक्त जब आप बीमार पड़ जाएं...
सीएसई के सर्वेक्षण में जो सनसनीखेज बातें सामने आई हैं, उसके मुताबिक पोल्ट्री फॉर्म में मुर्गों का वजन बढ़ाने के लिए उन्हें एंटीबायोटिक दवाइयां दी जा रही हैं। एंटीबायोटिक दवाइयों से मुर्गे जरूर सेहतमंद हो रहे हैं लेकिन जब उन्हें मारकर चिकन के रूप में परोसा जाता है, तब ये एंटीबायोटिक दवाइयां मरे हुए मांस में रह जाती हैं और यही एंटीबायोटिक दवाइयां खाने वाले के पेट में पहुंच जाती हैं।
बाद में इसका असर यह होता है कि इंसानी शरीर एंटीबायोटिक दवाइयों का पहले से आदी होने के कारण बाहर से ली जा रही दवा असर ही नहीं करती। सबसे हैरत की बात तो यह है कि मुर्गों का वजन बढ़ाने वाले पोल्ट्री फार्म जो एंटीबायोटिक दवाइयां खिला रहे हैं, वह इंसानों को नहीं दी जाती। भारत में यह भी देखा गया है कि एंटीबायोटिक दवाइयां खुलेआम बिकती हैं जिस पर कोई रोकटोक नहीं है।
सनद रहे कि 2006 से ही यूरोपीय संघ ने जानवरों की सेहत बढ़ाने वाली एंटीबायोटिक दवाइयों पर प्रतिबंध लगाया था। इसका सीधा मतलब है कि भारत में इंसानों की जान के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ किया जा रहा है। यदि सरकार चाहे तो मुर्गों को दी जा रही एंटीबायोटिक दवाइयों पर प्रतिबंध लगाकर इस पूरे खेल पर अंकुश लगा सकती है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में पोल्ट्री फॉर्म का व्यवसाय 50 करोड़ रुपए के पार है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने जो सर्वेक्षण किया था, वह दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों का था। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि देशभर में पोल्ट्री फॉर्मों में किस तरह से चिकन के जरिए इंसानों की जान के साथ खेला जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पोल्ट्री फॉर्म में एंटीबायोटिक दवाइयां खाकर वजन बढ़े मुर्गों को खाने वाले लोग इस बात से अनजान हैं कि मरे हुए मांस के साथ उनके पेट में एंटीबायोटिक दवाई भी जा रही है। यह भी संभव है कि जब ऐसे चिकन खाने वाले लोग जब बीमार हों तो एंटीबायोटिक दवाएं उनके शरीर पर कोई असर नहीं करे।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट का यह सर्वेक्षण जनहित में है और इस सर्वे के परिणामों की आवाज सरकार के कानों तक भी पहुंचनी चाहिए ताकि लोगों की इस बेशकीमती जान को बचाया जा सके।
हालांकि जब इस बारे में लोगों से चर्चा की तो उनका कहना था कि शाकाहारी लोगों को परोसी जाने वाली सब्जियों में भी रसायन का प्रयोग हो रहा है। कई जगह तो नाले के पानी से सब्जियां उगाई जा रही हैं, ऐसे में खाएं तो क्या खाएं?
बहरहाल, यह तो तय है कि मांसाहारी लोगों की प्लेट में आ रहा मोटा-ताजा चिकन शुद्ध है और बीमारी रहित है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह जरूरी नहीं कि मुर्गे ने एंटीबायोटिक दवाएं खाई हैं या नहीं, लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के इस सर्वे ने कम से कम चिकन खाने वालों के साथ ही देश की सरकार को सावधान तो कर ही दिया है। (वेबदुनिया न्यूज)