नेता प्रतिपक्ष का फैसला चार दिनों में

Webdunia
बुधवार, 30 जुलाई 2014 (14:54 IST)
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नई दिल्ली। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा है कि वे नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) के मुद्दे पर नियमों का अध्ययन करने और अटॉर्नी जनरल के पत्र पर विचार करने के बाद अगले 4 दिन के भीतर फैसला ले सकती हैं।

उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष को किसी सदस्य को नेता प्रतिपक्ष चुनने के लिए कोई निजी विवेकाधिकार प्राप्त नहीं है और उन्हें केवल नियमों और पूर्व उदाहरणों का पालन करते हुए फैसला लेना है।

उन्होंने कहा कि मैं सभी नियमों और अटॉर्नी जनरल के पत्र का भी अध्ययन करूंगी। मुझे देखना होगा कि उनमें क्या है और क्या नहीं? लोकसभा अध्यक्ष कुछ नहीं कर सकता। मुझे नियमों के अनुसार चलना होगा। मैं इस मामले में 1 से 4 दिन के भीतर फैसले की उम्मीद कर रही हूं।

पूर्व में सदन में एलओपी नहीं होने के उदाहरण रखते हुए महाजन ने कहा कि कई बार सदन में नेता प्रतिपक्ष नहीं रहा। पहला एलओपी 1969 में ही बना था, क्योंकि इससे पहले किसी पार्टी की लोकसभा में 10 प्रतिशत सीटें नहीं थीं। 1980 और 1984 में भी कोई एलओपी नहीं था।

उन्होंने कहा कि अब भी एलओपी के लिहाज से पर्याप्त संख्या नहीं है इसलिए देखना होगा। इस मुद्दे पर बनी असमंजस की स्थिति के चलते स्पीकर ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की राय मांगी थी।

रोहतगी ने अपने पत्र में राय दी थी कि कांग्रेस इसकी पात्रता नहीं रखती और पहली लोकसभा के बाद से ऐसी पार्टी को यह पद देने का कोई उदाहरण नहीं मिलता जिसके पास न्यूनतम सांसदों की संख्या नहीं हो।

अटॉर्नी जनरल की राय से कांग्रेस को झटका लगा, जो 543 सदस्यीय सदन में 44 सीटों के बाद भी विपक्ष के नेता का पद प्राप्त करने की पुरजोर वकालत कर रही है।

जिन नियमों का हवाला दिया जा रहा है, उनके अनुसार किसी पार्टी को नेता प्रतिपक्ष का पद प्राप्त करने के लिए उसके पास सदन में 10 प्रतिशत यानी कम से कम 55 सीटें होनी चाहिए। (भाषा)

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