भारत-चीन युद्ध, दुर्गति के लिए नेहरू जिम्मेदार...

Webdunia
मंगलवार, 18 मार्च 2014 (13:26 IST)
भारत और चीन के बीच हुए युद्ध (1962) के घाव एक बार फिर हरे हो गए हैं। यह ऐसा दर्द है जो भारत के लोगों को हमेशा सालता रहता है। अब एक और रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीन के खिलाफ भारत की हार के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जिम्मेदार थे।

उल्लेखनीय है कि भारत की लगभग 38000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन का कब्जा है। हैंडरसन ब्रूक्स की एक रिपोर्ट के हवाले से पत्रकार नैविल मैक्सवेल ने दावा किया है कि 62 की इस लड़ाई में भारत को मिली हार के लिए सिर्फ और सिर्फ तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जिम्मेदार हैं।

नैविल उस वक्त नई दिल्ली में टाइम्स ऑफ लंदन के लिए काम करते थे। 1962 की लड़ाई के बाद भारत सरकार ने लिए लेफ्टिनेंट जनरल हेंडरसल ब्रूक्स और ब्रिगेडियर पीएस भगत ने पूरे मामले की जांच की थी और इन्होंने उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को हार के लिए जिम्मेदार ठहराया था।

मैक्सवेल ने खुलासा किया है कि उनके पास ये दस्तावेज सालों से हैं, लेकिन वे भारत सरकार का इंतजार कर रहे थे कि वह जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करे, लेकिन भारत सरकार ने हाल ही में इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से मना किया।

समझा जाता है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस तरह का खुलासा कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि यह भी उतना ही सही है कि भारत-चीन युद्ध की बात समय-समय पर सामने आती रही है और अंगुलियां भी हमेशा नेहरू की ओर ही उठती रही हैं।

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वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल एवाई टिपणीस भी चीन के हाथों पराजय के लिए जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि इस युद्ध में वायुसेना का इस्तेमाल आक्रमण के लिए न होना हमेशा चर्चा का विषय रहा है। इसी से मिलती जुलती प्रतिक्रिया एयर मार्शल एनएके ब्राउन ने भी व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि चीन के साथ युद्ध में यदि वायुसेना की आक्रामक भूमिका होती तो शायद नतीजा ही कुछ और होता।

टिपणीस ने यह भी कहा था कि अंतरराष्ट्रीय नेता बनने की अपनी महात्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए नेहरू ने राष्ट्र के सुरक्षा हितों को त्याग दिया। युद्ध में भारत की अपमानजनक पराजय के लिए नेहरू मुख्य रूप से जिम्मेदार थे। उनके समय में सेना प्रमुख स्कूल के बच्चों की तरह फटकार दिए जाते थे। नेहरू उन्हें बुरी तरह से डांट देते थे।

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चीन से हार के बाद जवाहर लाल नेहरू ने भी संसद में खेदपूर्वक कहा था कि हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे और हम एक बनावटी माहौल में रह रहे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था। इस तरह से उन्होंने इस बात को लगभग स्वीकार कर लिया था कि उन्होंने ये भरोसा करने में बड़ी गलती की कि चीन सीमा पर झड़पों, गश्ती दल के स्तर पर मुठभेड़ और तू-तू मैं-मैं से ज्यादा कुछ नहीं करेगा।

दरअसल, नेहरू चीन के 'हिन्दी-चीनी भाई भाई' के नारे के झांसे में आ गए थे। इतना ही नहीं भारत ने चीन को संयुक्त राष्ट्र में मजबूत बनाने के लिए भी काफी सहयोग किया था, लेकिन बदल में उसने हमारी पीठ में ही छुरा घोंप दिया। यह भी माना जाता है कि इस हार के बाद नेहरू को बड़ा सदमा लगा था।

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1962 में भारत के खिलाफ चीन की कार्रवाई ने मुंबईवासियों का खून खौला दिया था। वे कम्युनिस्ट विरोधी भावनाओं से भर गए थे। इस संबंध में राज्य के तत्कालीन कार्यवाहक राज्यपाल चीफ जस्टिस एचके चयनानी ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन को पत्र लिखा था।

पहली बार 1993 में भारतीय रक्षा मंत्रालय ने 'ऑफिशियल हिस्ट्री ऑफ 1962 वॉर' जारी की जिससे इस लड़ाई के बारे में जानकारी मिली। इसके लेखक रिटायर्ड कर्नल अनिल अठाले के मुताबिक उन्होंने ब्रूक्स-भगत की रिपोर्ट के आधार पर ही इसे लिखा है। हालांकि इस रिपोर्ट में भारत की सामरिक रणनीति की समीक्षा की गई है लेकिन सरकार और सेना के कुछ उन लोगों पर भी सवाल उठाए गए हैं जिनके गलत फैसलों की वजह से भारत और चीन को यह लड़ाई लड़नी पड़ी।
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