मुंबई को बांद्रा-वर्ली सी-लिंक की सौगात

निवेश की राह आसान होने की उम्मीद

Webdunia
मंगलवार, 30 जून 2009 (23:10 IST)
सोलह सौ 44 करोड़ रुपए के निवेश और करीब दस वर्ष तक चले निर्माण कार्य के बाद मंगलवार को खुले मुम्बई के विश्वस्तरीय समुद्री पुल ने आम लोगों को आसान यातायात और निवेशकों के लिए ऐसी आधारभूत संरचना में निवेश करने की उम्मीद जगाई है।

बांद्रा-वर्ली सी लिंक : खास बातें
भारत के दस आधुनिक अजूबों में शामिल
वर्ली से बांद्रा की दूरी 7 मिनट में होगी पूरी
रोज करीब डेढ़ लाख वाहन गुजरेंगे
दस हजार लोग लगे निर्माण में
लंबाई-5.7 किलोमीटर
लागत-1644 करोड़ रुपए
1999 में शुरू हुआ निर्माण
पुल का नाम 'राजीव सेतु' होगा
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने समारोहपूर्वक इसका उद्घाटन किया। बांद्रा वर्ली सीलिंक के नाम से जाने जाने वाले इस आठ लेन वाले पुल के महज चार लेन यातायात के लिए खोले गए हैं।

लगभग साढ़े पाँच किलोमीटर लंबे इस पुल से प्रतिदिन एक लाख वाहन गुजर सकेंगे। लोगों को करीब दो दर्जन ट्रैफिक लाइटों पर जाम में नहीं फँसना पड़ेगा और वे बांद्रा से वर्ली के आधे घंटे का सफर वे 10 मिनटों में पूरा कर लेंगे।

व्यापारी आशुतोष तिकेकर ने कहा हमें इसकी सख्त जरूरत है। हम काफी समय से इसका इंतजार कर रहे थे। यह पुल पश्चिम एक्सप्रेस हाइवे के माहिम इंटरसेक्शन और बांद्रा के स्वामी विवेकानंद मार्ग को वर्ली के अब्दुल गफ्फार खान बाजार से जोड़ेगा।

किसे कितना देना होगा टोल : इससे गुजरने के लिए कारों को 50 रुपए, हल्के वाहनों को 75 रुपए और ट्रकों एवं बसों को 100 रुपए देना होंगे। तिपहिया और दोपहिया वाहनों को भी इस पुल से गुजरने की इजाजत होगी।

गडकरी ने दिया था प्रस्ता व : पूर्व लोकनिर्माण मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नितिन गडकरी ने इसकी परिकल्पना पेश की थी। इसका डिजाइन ब्रिटेन के मैसर्स डार कंसल्टेंट ने तैयार किया था और हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी ने निर्माण किया है।

राज्य के लोकनिर्माण मंत्री विमल मुंडा ने इस पुल को महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम की ओर से मुम्बई के परिवहन अधोसंरचना के क्षेत्र में एक नई सौगात बताया है।

PTI
... लेकिन इस पुल के निर्माण पर न केवल नौकरशाही, लागत में वृद्धि, राज्य और ठेकेदारों के बीच विवाद आदि का असर पड़ा, बल्कि पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर स्थानीय निवासी और आजीविका को लेकर चितिंत मछुआरों ने अदालत तक का दरवाजा खटखटाया। आर्थिक मंदी ने भी इस निर्माण को प्रभावित किया।

हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी के अध्यक्ष अजीत गुलाबचंद ने कहा इस पुल के निर्माण में कई चुनौतियाँ थीं और हमने इससे कई सबक भी सीखे हैं। हमने अपनी बेहतर इंजीनियरिंग का मानदंड रखने और भारत की अधोसंरचना निर्माण क्षमता साबित करने के लिए इस परियोजना को हाथ में लिया था। हमें खुशी है कि हम मानव कौशल के इस बेहतर स्मारक का निर्माण करने में सफल रहे।

देश में बंदरगाहों, सड़कों के उन्नयन एवं पर्याप्त जनसुविधाओं के निर्माण के लिए 2012 तक 500 अरब डॉलर की जरूरत है, जबकि निवेश की कमी है। हालाँकि नियमों में ढील और उभरती अर्थव्यवस्था से कई देशी और विदेशी निवेशक आगे भी आए, लेकिन वित्तीय संकट की वजह से बात नहीं बनी।

मुम्बई की कई परियोजनाएँ समेत देशभर में दर्जनों काम ठप हैं, लेकिन केंद्र की नई कांग्रेस सरकार से अगले सप्ताह पेश होने वाले आम बजट में बुनियादी ढाँचा व्यय को बढ़ाने के लिए उपाय किए जाने उम्मीद है।
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