'मोदी पॉवर' मप्र में बदलेगा सत्ता समीकरण!

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गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा के साथ ही निश्चित ही उनकी ताकत में इजाफा हुआ है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दी भाषी प्रदेशों के विधानसभा चुनाव से पहले तो मोदी की घोषणा और अहम हो जाती है। खासकर मध्यप्रदेश के संदर्भ में तो 'मोदी पॉवर' के आते ही अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है।

मध्यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को आडवाणी कैंप का माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शिवराज को आगे बढ़ाने में आडवाणी की अहम भूमिका रही है। गाहे-बगाहे आडवाणी शिवराज की तारीफ भी करते रहते हैं। कई बार तो उन्होंने शिव के शासन को मोदी से भी श्रेष्ठ बताया है। ऐसे में मोदी की उम्मीदवारी राज्य में भी नए समीकरणों को जन्म दे सकती है। क्योंकि अभी तक यदि मोदी की राह में सबसे अधिक रोड़ा यदि किसी ने अटकाया है तो वे आडवाणी हैं और उनके कुछ खास समर्थक।

अत: यह नहीं भूलना चाहिए कि शिव की आडवाणी से नजदीकी मोदी को जरूर खटकेगी। दूसरी ओर मोदी विरोधी और आडवाणी समर्थक सुषमा स्वराज मध्यप्रदेश से लोकसभा सांसद हैं और शिवराज का उन्हें भी समर्थन प्राप्त है। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि विधानसभा चुनाव के बाद यदि भाजपा को राज्य में सफलता मिलती है (जिसकी संभावना ज्यादा है) तो मुख्‍यमंत्री पद के लिए मोदी किसी अपने खास मोहरे को आगे कर सकते हैं। ‍किसकी नजर है शिवराज की कुर्सी पर... पढ़ें अगले पेज पर...

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राज्य में यदि भाजपा की राजनीति का गणित देखा जाए तो एक बड़ा धड़ा शिवराज के साथ है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो खुलकर मोदी का समर्थन करते रहे हैं। राज्य के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की मोदी से निकटता किसी से छिपी नहीं है। साथ ही कैलाश महत्वाकांक्षा को देखते हुए लगता है कि उनकी नजर भी मुख्‍यमंत्री पद पर है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि शिवराज उन्हें निकट रखते हुए भी अन्य चीजों में उलझाए रखते हैं। हाल ही में विजयवर्गीय ने राजनीति से ब्रेक लेने की भी बात कही थी, लेकिन जल्द ही वे अपनी बात से पलट गए थे। हालांकि उनकी बात को उनके बेटे को राजनीति में स्थापित करने से जोड़ा जा रहा था।

पिछले चुनाव की ही बात करें तो कैलाश को उनके गढ़ इंदौर की दो नंबर विधानसभा सीट से हटाकर महू भेज दिया गया था, जहां जीत की जोड़तोड़ के लिए वे पूरे समय महू में ही उलझे रहे। हालांकि शिवराज और कैलाश का साथ भी काफी पुराना है। दोनों ही भाजयुमो के जमाने के साथी हैं, लेकिन महत्वाकांक्षाएं उन्हें एक दूसरे से दूर ले गईं। कोई आश्चर्य नहीं कि कैलाश मोदी का सहयोग लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करें। इंदौर में एक कार्यक्रम के दौरान मोदी कैलाश विजयवर्गीय से अपनी निकटता भी जाहिर कर चुके हैं।

राज्य के सत्ता समीकरण बदलने में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे क्योंकि उन्हें शिवराज के कारण ही राज्य में प्रदेश का दूसरा कार्यकाल नहीं मिल पाया था, जिसकी कसक आज भी उनके मन में है। तब चौहान ने चुनाव से पहले अपने खास नरेन्द्रसिंह तोमर को इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन करा दिया था। हालांकि शिवराज व्यवहार कुशल राजनीतिज्ञ हैं और परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने की क्षमताएं भी उनमें हैं, लेकिन अभी इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी की होगी कि राज्य की राजनीत‍ि का ऊंट किस करवट बैठेगा।

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