Shardiya Navratri 2023: शारदीय नवरात्रि पर इस तरह करें माता की षोडशोपचार पूजा

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Shodashopachar Durga puja vidhi : 15 अक्टूबर 2023 को शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। नवरात्रि के नौ दिनों में शुभ मुहूर्त में माता की षोडशोपचार पूजा करना चाहिए। इससे माता बहुत प्रसन्न होती हैं। क्या होती है षोडशोपचार पूजा और किस तरह करते हैं यह पूजा? जानिए संपूर्ण जानकारी।
 
पूजा के मुख्‍यत: 5 प्रकार है- 
  1. अभिगमन, उपादान, योग, स्वाध्याय और इज्या। 
  2. इसमें उपादान पूजा के 3 प्रकार होते है।
  3. पंचोपचार, दशोपचार और सोलह उपचार।
  4. सलोहर उपचार को ही षोडशोपचार कहते हैं।
1. पांच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य। 
2. दस उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
3. सोलह उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए। षोडशोपचार यानी विधिवत 16 क्रियाओं से पूजा संपन्न करना। 
 
षोडशोपचार पूजन : 1.ध्यान-प्रार्थना, 2.आसन, 3.पाद्य, 4.अर्ध्य, 5.आचमन, 6.स्नान, 7.वस्त्र, 8.यज्ञोपवीत, 9.गंधाक्षत, 10.पुष्प, 11.धूप, 12.दीप, 13.नैवेद्य, 14.ताम्बूल, दक्षिणा, जल आरती, 15.मंत्र पुष्पांजलि, 16.प्रदक्षिणा-नमस्कार एवं स्तुति।
 
माता की षोडशोपचार पूजा विधि :-
  1. प्रात:काल स्नान-ध्यान से निवृत हो माता का स्मरण करते हुए व्रत एवं पूजा का संपल्प लें।
  2. अब एक पाट पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर घट एवं कलश की स्थापना करें।
  3. इसके बादमाता की मूर्ति या चि‍त्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। 
  4. मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करें।
  5. पूजन में माता के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए। जलाए गए दीपक को स्वयं कभी नहीं बुझाना चाहिए।
  6. फिर माता के मस्तक पर हल्दी, कुंकू और चावल लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाकर माला पहनाएं।
  7. पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी) लगाना चाहिए।
  8. इसके बाद माता को संपूर्ण 16 प्रकार की सामग्री अर्पित करें जिसमें उनके 16 श्रृंगार का सामान भी हो।
  9. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं और प्रसाद अर्पित करें।
  10. ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
  11. प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
  12. नैवेद्य अर्पित करने के बाद अंत में माता की आरती करें।
  13. आरती के बाद सभी को प्रसाद वितरित करें।
नोट : घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी किया जाता। लेकिन विस्तृत पूजा तो पंडित जी ही करते हैं।
 
पूजा के नियम:-
  1. माता के पूजन में शुद्धता व सात्विकता का विशेष महत्व है।
  2. पूजा के समय हमारा मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। 
  3. घर के ईशान कोण में ही पूजा करें। 
  4. पूजा का उचित मुहूर्त देखें या दोपहर 12 से शाम 4, रात्रि 12 से प्रात: 3 बजे के बीच का समय छोड़कर पूजा करें। 
  5. पूजन के समय पंचदेव की स्थापना जरूर करें। सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु को पंचदेव कहा गया है।
  6. पूजा के समय सभी एकत्रित होकर पूजा करें। पूजा के दौरान किसी भी प्रकार शोर न करें।
घर में पूजा हेतु क्या क्या होना चाहिए :
गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा।
शंखद्वयं तथा सूर्यो नार्च्यो शक्तित्रयं तथा॥
द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्राम शिलाद्वयम्‌।
तेषां तु पुजनेनैव उद्वेगं प्राप्नुयाद् गृही॥
अर्थ- घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गा मूर्ति, दो गोमती चक्र और दो शालिग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है।
 
एका मूर्तिर्न सम्पूज्या गृहिणा स्केटमिच्छता।
अनेक मुर्ति संपन्नाः सर्वान्‌ कामानवाप्नुयात॥
अर्थ : कल्याण चाहने वाले गृहस्थ एक मूर्ति की पूजा न करें, किंतु अनेक देवमूर्ति की पूजा करे, इससे कामना पूरी होती है।

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