नौ दुर्गा आराधना का महत्व

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शक्ति उपासना के महत्व के बारे में कहा जाता है कि जगत्‌ की उत्पत्ति, पालन एवं लय तीनों व्यवस्थाएँ जिस शक्ति के आधीन सम्पादित होती है वही पराम्वा भगवती आदि शक्ति हैं, यें कारी बन कर सृष्टि का सृजन करने से इन्हें सृष्टिरूपा बीज कहा जाता है। 'ह्रीं कारी' देवी को प्रतिपालि का एवं 'क्लीं कारी' काम रूपा शक्ति जगत का लय कर अपने आश्रय में ले लेती हैं। यही तीन शक्तियाँ महाकाली, महालक्ष्मी महासरस्वती कहलाती हैं।

इन्हीं के अनन्त रूप हैं लेकिन प्रधान नौ रूपों में नवदुर्गा बन कर आदि शक्ति सम्पूर्ण पृथ्वी लोक पर अपनी करूणा की वर्षा करती है, अपने भक्त और साधकों में अपनी ही शक्ति का संचार करते हुए, करूणा एवं परोपकार के द्वारा संसार के प्राणियों का हित करती है।

प्रथम नवरात्रि को माँ की शैल पुत्री रूप में आराधना की जाती है। वस्तुतः नौ दुर्गा के रूप माता पार्वती के हैं। दक्ष प्रजापति के अहंकार को समाप्त कर प्रजापति क्रम में परिवर्तन लाने एवं अपने सती स्वरूप का संवरण कर पार्वती अवतार क्रम में नौ दुर्गा की नौ रूपमूर्तियों की उपासना है नवरात्रि उपासना।

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यद्यपि शक्ति अवतार को दक्ष यज्ञ में अपने योग बल से सम्पन्न करने से पूर्ण भगवती सती जी ने भगवान शंकर के समक्ष अपनी दस महाविधाओं को प्रकट किया तथा उनके सती जी के दग्ध छाया छाया देह के अंग-प्रत्यंगो से अनेक शक्ति पीठों में आदि शक्ति प्रतिष्ठित हो कर पूजी जाने लगी पार्वती रूपा भगवती के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री की आराधना से साधक की योग यात्रा की पहली सीढ़ी बिना बाधाओं के पार हो जाती है। योगीजन प्रथम नवरात्रि की साधना में अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित शक्ति केंद्र की जागृति मे तल्लीन कर देते हैं।

नवरात्रि आराधना, तन मन और इन्द्रिय संयम साधना की उपासना है, उपवास से तन संतुलित होता है। तन के सन्तुलित होने पर योग साधना से इंद्रियाँ संयमित होती है। इन्द्रियों के संयमित होने पर मन अपनी आराध्या माँ के चरणों में स्थिर हो जाता है। वस्तुतः जिसने अपने मन को स्थिर कर लिया वह संसार चक्र से छूट जाता है। संसार में रहते हुए उसके सामने कोई भी सांसारिक विध्न-बाधाएँ टिक नहीं सकती। वह भगवती दुर्गा के सिंह की तरह बन जाता है, ऐसे साधक भक्त एवं योगी महापुरूष का दर्शन मात्र से सिद्धियाँ मिलने लगती हैं। परन्तु सावधान रहना चाहिए की सांसारिक उपलब्धि रूपी सिद्धियाँ संसार में भटका देती हैं। अतः उपासक एवं साधकों को यह भी सावधानी रखनी होती है कि उनका लक्ष केवल माँ दुर्गा के श्री चरणों में समर्पण है और कुछ नहीं।

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