Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि में महाष्टमी का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माँ दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा होती है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान् शिव को पतिरूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों सालों तक कठिन तपस्या की थी जिस कारण इनका रंग काला पड़ गया था परंतु बाद में भगवान शिव ने गंगा के जल से इनके वर्ण को फिर से गौर कर दिया और इनका नाम महागौरी विख्यात हुआ। यहाँ महाष्टमी की 10 प्रमुख और खास बातें बताई गई हैं:-
महागौरी मंत्र: ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
दुर्गा अष्टमी की 10 खास बातें:-
1. मां महागौरी की पूजा: महाष्टमी के दिन देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप, माँ महागौरी, की पूजा की जाती है। माँ महागौरी को शांति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। उनकी आराधना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और वे कुटुंब की रक्षा करती है। संतानों की रक्षा करती हैं।
2. कन्या पूजन (कन्या भोज): महाष्टमी का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान कन्या पूजन है। इस दिन नौ छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर उन्हें घर पर आमंत्रित किया जाता है। उनके चरण धोए जाते हैं और फिर उन्हें पूड़ी, चना और हलवे का भोजन कराया जाता है। इसके बाद उन्हें हरि चुनरी के साथ दक्षिणा दी जाती है।
3. कुमारी पूजा: कन्या पूजन को कुमारी पूजा भी कहते हैं। इसमें दो से दस वर्ष की कन्याओं का पूजन किया जाता है और उन्हें उपहार व दक्षिणा दी जाती है। यह मान्यता है कि इन कन्याओं को भोजन कराने से देवी माँ प्रसन्न होती हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है।
4. हवन यज्ञ: महाष्टमी पर कई घरों और मंदिरों में हवन का आयोजन किया जाता है। हवन के माध्यम से देवी-देवताओं को आहुतियाँ दी जाती हैं और यह माना जाता है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
5. संधि पूजा: नवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण पूजा संधि पूजा है। यह अष्टमी तिथि के समाप्त होने और नवमी तिथि के प्रारंभ होने के बीच के 48 मिनट की अवधि में की जाती है। इस समय को सबसे पवित्र माना जाता है क्योंकि इसी समय माँ दुर्गा ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का संहार किया था।
6. विशेष प्रसाद: अष्टमी पूजन के दिन माता को नारियल का भोग लगा सकते हैं, लेकिन नारियल खाना निषेध है, क्योंकि इससे बुद्धि का नाश होता है। कई स्थानों पर इस दिन तिल का तेल, लाल रंग का साग, कद्दू और लौकी खाना निषेध माना गया है, क्योंकि यह माता के लिए बलि के रूप में चढ़ता है। इसके अलावा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध कहा गया है। इस दिन माता को खीर, मालपुआ, पुरनपोली, घेवर, केला, तिल-गुड़, घी, शहद तथा हलवा का भोग लगाना चाहिए। साथ ही अपनी कुलदेवी के प्रसाद के अनुसार भोग बनाना चाहिए। यही प्रसाद कन्याओं को खिलाया जाता है और भक्तों में भी वितरित किया जाता है।
7. व्रत का पारण: जिन घरों में नवरात्रि का व्रत रखकर अष्टमी को पारण करते हैं उन घरों के कुछ सदस्या नवमी को ही व्रत खोलते हैं यानि वे अष्टमी के सभी कर्मकांड पूर्ण करने के बाद संधिपूजा करके अलगे दिन नवमी पर व्रत खोलते हैं। अष्टमी के दिन वे देवी की पूजा और कन्या पूजन के बाद अपना व्रत खोलते हैं या कई लोग संधि पूजा के बाद व्रत खोलते हैं।
8. देवी के शस्त्रों की पूजा: कुछ परंपराओं में महाष्टमी पर देवी के शस्त्रों और हथियारों की पूजा भी की जाती है, जिसे 'अस्त्र पूजा' या 'शस्त्र पूजा' कहते हैं। हालांकि दशमी के दिन भी यही शस्त्र पूजा पुन: करते हैं लेकिन जिनके घरों में अष्टमी की पूजा होती है वे अष्टमी पर शस्त्र पूजा करते हैं।
9. भक्ति और उत्साह: महाष्टमी का दिन नवरात्रि के सबसे अधिक भक्ति और उत्साह वाले दिनों में से एक होता है। मंदिरों और घरों में विशेष भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजन होते हैं।
10. तंत्र साधना का महत्व: तांत्रिक परंपराओं में महाष्टमी का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन मां दुर्गा के उग्र रूपों की पूजा भी होती है और मंत्रों की साधना की जाती है।