25 मार्च 2020 : चैत्र नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त, महत्व और मंत्र

आचार्य राजेश कुमार
chaitra navratri 2020
 
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-आचार्य राजेश कुमार
 
25 मार्च 2020 दिन बुधवार को नव संवत्सर के साथ ही चैत्र माह की नवरात्रि भी शुरू हो जाएगी। इसी दिन से नव संवत् 2077 शुरू हो रहा है। इस दौरान वसंत ऋतु होने के कारण इसे 'वासंती नवरात्र' भी कहा जाता है।
 
सालभर में 2 गुप्त और 2 प्राकट्य नवरात्र होते हैं। इन्हीं 2 प्राकट्य नवरात्रों में से पहली और प्रमुख नवरात्रि चैत्र माह में आती है, जो कि इस बार 25 मार्च से 2 अप्रैल 2020 तक रहेगी।
 
इस बार कोई भी तिथि क्षय नहीं होगी जिससे नवरात्रि पूरे 9 दिनों की रहेगी। वैसे तो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा का आरंभ 24 मार्च 2020 को दिन में 2.58 पर ही हो रहा है लेकिन उदया तिथि 25 मार्च से ही मिलेगी। चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि 24 मार्च दोपहर 2.58 बजे से शुरू होकर 25 मार्च शाम 5.26 बजे तक रहेगी।
 
चैत्र नवरात्र का महत्व
 
मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का प्राकट्य हुआ था और मां दुर्गा के कहने पर ही ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होता है। इसके अलावा भगवान विष्णु के 7वें अवतार भगवान राम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि में ही हुआ था।
 
नवरात्र भारतवर्ष में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के 9 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो 1 वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर 4 बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं।
 
बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को 'वासंती नवरात्र' तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को 'शारदीय नवरात्र' भी कहा जाता है। चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को 'महानवरात्र' कहा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं। दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है। नवरात्र के 9 दिनों में मां के अलग-अलग रूपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रूप में भी देखा जाता है।
 
किस-किस दिन होगी किस देवी की पूजा?
 
नवरात्र प्रथम : 25 मार्च को घटस्थापन व शैलपुत्री की पूजा
नवरात्र द्वितीय : 26 मार्च को ब्रह्मचारिणी की पूजा
नवरात्र तृतीय : 27 मार्च को चंद्रघंटा की पूजा
नवरात्र चतुर्थी : 28 मार्च को कूष्मांडा की पूजा
नवरात्र पंचमी : 29 मार्च को स्कंदमाता की पूजा
नवरात्र षष्ठी : 30 मार्च को कात्यायनी की पूजा
नवरात्र सप्तमी : 31 मार्च को कालरात्रि की पूजा
नवरात्रि अष्टमी : 1 अप्रैल को महागौरी की पूजा
नवरात्र नवमी : 2 अप्रैल को सिद्धिदात्री की पूजा
 
घटस्थापना मुहूर्त
 
काशी पंचांग के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न (मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ) में प्रारंभ करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या, धनु तथा कुंभ राशि द्विस्वभाव राशि है अत: इसी लग्न में पूजा प्रारंभ करनी चाहिए। 25 मार्च, बुधवार को प्रतिपदा के दिन रेवती नक्षत्र और ब्रह्म योग होने के कारण सूर्योदय के बाद तथा अभिजीत मुहूर्त में घट/कलश स्थापना करना चाहिए।
 
घटस्‍थापना का शुभ मुहूर्त दिनांक 25 मार्च 2020, बुधवार को सुबह 6.10 बजे से सुबह 10.20 बजे तक रहेगा अथवा चुकी अभिजीत मुहूर्त प्रात: 11.58 से 12.49 तक है अत: इसी समयांतराल में कलश स्थापन व पूजन प्रारंभ करना अत्यंत शुभ फलदायी होगा।
 
नवरात्रि में 9 दिन कैसे करें नवदुर्गा साधना?
 
माता दुर्गा के 9 रूपों का उल्लेख श्री दुर्गा सप्तशती के कवच में है जिनकी साधना करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कई साधक अलग-अलग तिथियों को जिस देवी की हैं, उनकी साधना करते हैं, जैसे प्रतिपदा से नवमी तक क्रमश:-
 
(1) माता शैलपुत्री : प्रतिपदा के दिन इनका पूजन-जप किया जाता है। मूलाधार में ध्यान कर इनके मंत्र को जपते हैं। धन-धान्य-ऐश्वर्य, सौभाग्य-आरोग्य तथा मोक्ष के देने वाली माता मानी गई हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।'
 
(2) माता ब्रह्मचारिणी : स्वाधिष्ठान चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। संयम, तप, वैराग्य तथा विजय प्राप्ति की दायिका हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'
 
(3) माता चंद्रघंटा : मणिपुर चक्र में इनका ध्यान किया जाता है। कष्टों से मुक्ति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए इन्हें भजा जाता है।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चंद्रघंटायै नम:।'
 
(4) माता कूष्मांडा : अनाहत चक्र में ध्यान कर इनकी साधना की जाती है। रोग, दोष, शोक की निवृत्ति तथा यश, बल व आयु की दात्री मानी गई हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।'
 
(5) माता स्कंदमाता : इनकी आराधना विशुद्ध चक्र में ध्यान कर की जाती है। सुख-शांति व मोक्ष की दायिनी हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'
 
(6) माता कात्यायनी : आज्ञा चक्र में ध्यान कर इनकी आराधना की जाती है। भय, रोग व शोक-संतापों से मुक्ति तथा मोक्ष की दात्री हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।
 
(7) माता कालरात्रि : ललाट में ध्यान किया जाता है। शत्रुओं का नाश, कृत्या बाधा दूर कर साधक को सुख-शांति प्रदान कर मोक्ष देती हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।'
 
(8) माता महागौरी : मस्तिष्क में ध्यान कर इनको जपा जाता है। इनकी साधना से अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। असंभव से असंभव कार्य पूर्ण होते हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'
 
(9) माता सिद्धिदात्री : मध्य कपाल में इनका ध्यान किया जाता है। सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं।
 
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।'
 
विधि-विधान से पूजन-अर्चन व जप करने पर साधक के लिए कुछ भी अगम्य नहीं रहता।
 
विधान- कलश स्थापना
 
देवी का कोई भी चित्र संभव हो तो यंत्र प्राण-प्रतिष्ठायुक्त तथा यथाशक्ति पूजन-आरती इत्यादि तथा रुद्राक्ष की माला से जप संकल्प आवश्यक है। जप के पश्चात अपराध क्षमा स्तोत्र यदि संभव हो तो अथर्वशीर्ष, देवी सूक्त, रात्रिप सूक्त, कवच तथा कुंजिका स्तोत्र का पाठ पहले करें। गणेश पूजन आवश्यक है। ब्रह्मचर्य, सात्विक भोजन करने से सिद्धि सुगम हो जाती है।

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