नवरात्रि में क्यों करते हैं कलश स्थापना, जानिए कलश का शुभ महत्व

Webdunia
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और किसी धार्मिक अनुष्ठान में कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में कलश को सुख-समृद्धि,ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। बिना कलश स्थापना के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है। हर वर्ष अश्विन माह के नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना की जाती है। इसलिए नवरात्रि पर मां दुर्गा की पूजा करते समय माता की प्रतिमा के सामने कलश की स्थापना करनी चाहिए।
 
वरुण और अग्नि को साक्षात देवता माना जाता है। वरुण का प्रतीक कुंभ है। कुंभ को देखते ही समुद्र मंथन की कथा का स्मरण होता है। घट के साथ ही जुड़ी है श्रीकृष्ण की बाल लीला और समुद्र मंथन का प्रसंग।
 
मोहिनी अवतार के हाथों देव-असुरों के बीच अमृत बांटने की कथा स्मरण हो आती है। शास्त्रों में कलश दर्शन को देव दर्शन के समकक्ष माना गया है। कलश स्थापना के समय जिन श्लोकों का उच्चारण और जो भावना व्यक्त की जाती है, उसी से स्पष्ट हो जाता है कि कलश क्यों मंगलसूचक है।
 
कलश की स्थापना और उसके पूजन के समय पुजारी शास्त्रसम्मत कुछ मंत्रों का उच्चारण करते हैं।
 
कलश पूजा का महत्व 
 
कलशस्य मुखे विष्णु : कंठे रुद्र: समाश्रित।
मूल तस्य, स्थित ब्रह्मा मध्ये मातगण: समाश्रित:।। 
 
भ्रात: कान्चलेपगोपितबहिस्ताम्राकृते सर्वतो।
मा भैषी: कलश: स्थिरो भव चिरं देवालयस्योपरि।।
ताम्रत्वं गतमेव कांचनमयी कीर्ति: स्थिरा ते धुना।
नान्स्तत्त्वविचारणप्रणयिनो लोका बहिबरुद्धय:।।
 
कांचन से कीर्ति महान है और सुवर्ण से सुनहरा जीवन श्रेष्ठ है। मंदिर के शिखर पर स्थित कलश वह कीर्ति और वैसा जीवन प्राप्त कर चुका है। अब उसे अपने बारे में हीनभाव रखने का कोई कारण नहीं है। छोटा मानव भी महान कार्य में निमित्त बना हो तो वह जीवन में महानता के शिखरों को प्राप्त कर सकता है। उसके बाद उसे छोटेपन का अनुभव नहीं करना चाहिए।
कलश भारतीय संस्कृति का अग्रगण्य प्रतीक है इसलिए तो महत्वपूर्ण सभी शुभ प्रसंगों में पुण्याहवाचन कलश की साक्षी में तथा सान्निध्य में होता है।
 
प्रत्येक शुभ प्रसंग या कार्य के आरंभ में जिस तरह विघ्नहर्ता गणपति जी की पूजा की जाती है उसी तरह कलश की भी पूजा होती है। देवपूजा के स्थान पर इस कलश को अग्रस्थान प्राप्त होता है। पहले इसका पूजन, फिर इसे नमस्कार और बाद में विघ्नहर्ता गणपति को नमस्कार! ऐसा प्राधान्यप्राप्त कलश और उसके पूजन के पीछे अति सुंदर भाव छिपा हुआ है।
नवरात्रि के शुभ पर्व में कलश पर स्वस्तिक चिह्न अंकित करते ही सूर्य आकर उस पर आसनस्थ होते हैं कलश को सजाते ही वरुणदेव उसमें विराजमान होते हैं। जो संबंध कमल-सूर्य का है वही संबंध कलश वरुण का है। वास्तव में कलश यानी लोटे में भरा हुआ या घड़े में भरा हुआ साधारण जल। परंतु कलश की स्थापना के बाद उसके पूजन के बाद वह जल सामान्य जल न रहकर दिव्य ओजस्वी बन जाता है।
 
तत्वायामि ब्रह्मणा वंदमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भि:।
अहेळमानो वरुणोहबोध्यु रुशंसा मा न आयु: प्रमोषी:।।
 
हे वरुणदेव! तुम्हें नमस्कार करके मैं तुम्हारे पास आता हूं। यज्ञ में आहुति देने वाले की याचना करता हूं कि तुम हम पर नाराज मत होना। हमारी उम्र कम नहीं करना आदि वैदिक दिव्य मंत्रों से भगवान वरुण का आवाहन करके उनकी प्रस्थापना की जाती है और उस दिव्य जल का अंग पर अभिषेक करके रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती है। कलश पूजन की प्रार्थना के श्लोक भी भावपूर्ण हैं। उसकी प्रार्थना के बाद वह कलश केवल कलश नहीं रहता, किंतु उसमें पिंड ब्रह्मांड की व्यापकता समाहित हो जाती है।
 
कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित:।
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।।
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा।
ऋग्वेदोअथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्ण:।।
अंगैच्श सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।
अत्र गायत्री सावित्री शांतिपृष्टिकरी तथा।
आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा:।
आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।
 
हमारे ऋषियों ने छोटे से पानी के लोटे में सभी देवता, वेद, समुद्र, नदियां, गायत्री, सावित्री आदि की स्थापना कर पापक्षय और शांति की भावना से सभी को एक ही प्रतीक में लाकर जीवन में समन्वय साधा है। बिंदु में सिंधु के दर्शन कराए हैं।
 
नए घर में प्रवेश करने से पहले कुंभ रखने की प्रथा प्रचलित है। जलपूर्ण कुंभ की तरह घर भावपूर्ण और नवपल्लवित रहे, ऐसी मंगलकामना इसके पीछे रही है। कलश या कुंभ पर श्रीफल रखने से उसकी शोभा दोगुनी होती है। श्रेष्ठागमन के समय माथे पर श्रीफलयुक्त कलश लेकर खड़ी रहने वाली कुमारिकाओं को हम कई बार देखते हैं।
 
भावभीने आतिथ्य सत्कार का यह अनोखा प्रकार है। गुजरात में नवरात्रि के प्रसंग पर खेला जाने वाला गरबा कलश या कुंभ का ही स्वरूप है। गरबा सजल होने के बजाय सतेज होता है। वास्तु और स्थापत्य शास्त्र में भी कलश का सबसे खास महत्व है।
 
देवी दुर्गा की पूजा में कलश क्यों स्थापित करते हैं ? कलश स्थापना से संबंधित हमारे पुराणों में एक मान्यता है, जिसमें कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसलिए लोग देवी की पूजा से पहले कलश का पूजन करते हैं। पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
 
कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की परंपरा धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है।

मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते हैं और मां का श्रृंगार रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से करते हैं। पूजा स्थल में एक अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। कलश स्थापना करने के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती करते है जिसके बाद नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाता है।
 
माता में श्रद्धा और मनवांछित फल की प्राप्ति के लिए बहुत-से लोग पूरे नौ दिन तक उपवास भी रखते हैं। नवमी के दिन नौ कन्याओं को जिन्हें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के समान माना जाता है, श्रद्धा से भोजन कराई जाती है और दक्षिणा आदि दी जाती है। भक्त नौ दिनों तक देवी की पूजा और उपवास करते हैं और दसवें दिन कन्या पूजन करने के पश्चात् उपवास खोलते हैं।
 
कलश स्थापना क्यों की जाती है? 
कलश विश्व ब्रह्मांड का, विराट ब्रह्म का, भू-पिंड (ग्लोब) का प्रतीक है। इसे शांति और सृजन का संदेशवाहक कहा जाता है। संपूर्ण देवता कलशरूपी पिंड या ब्रह्मांड में व्यष्टि या समष्टि में एकसाथ समाए हुए हैं। वे एक हैं तथा एक ही शक्ति से सुसं‍बंधित हैं। बहुदेववाद वस्तुत: एक देववाद का ही एक रूप है। एक माध्यम में, एक ही केंद्र में समस्त देवताओं को देखने के लिए कलश की स्थापना की जाती है। कलश को सभी देव शक्तियों, तीर्थों आदि का संयुक्त प्रतीक मानकर उसे स्थापित एवं पूजित किया जाता है। वेदोक्त मंत्र के अनुसार कलश के मुख में विष्णु का निवास है, उसके कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं।
 
कलश के मध्य में सभी मातृशक्तियां निवास करती हैं। कलश में समस्त सागर, सप्तद्वीपों सहित पृथ्वी, गायत्री, सावित्री, शांतिकारक तत्व, चारों वेद, सभी देव, आदित्य देव, विश्वदेव, सभी पितृदेव एकसाथ निवास करते हैं। कलश की पूजा मात्र से एकसाथ सभी प्रसन्न होकर यज्ञ कर्म को सुचारुरूपेण संचालित करने की शक्ति प्रदान करते हैं और निर्विघ्नतया यज्ञ कर्म को समाप्त करवाकर प्रसन्नतापूर्वक आशीर्वाद देते हैं। 
 
 कलश में पवित्र जल भरा रहता है। इसका मूल भाव यह है कि हमारा मन भी जल की तरह शीतल, स्वच्‍छ एवं निर्मल बना रहे। हमारे शरीररूपी पात्र हमेशा श्रद्धा, संवेदना, तरलता एवं सरलता से लबालब भरे रहें। इसमें क्रोध, मोह, ईर्ष्या, घृणा आदि की कुत्सित भावनाएं पनपने न पाएं। अगर पनपें भी तो जल की शीतलता से शांत होकर घुलकर निकल जाएं।
 
कलश के ऊपर आम्रपत्र होता है जिसके ऊपर मिट्टी के पात्र में केसर से रंगा हुआ अक्षत (चावल) रहता है जिसका भाव यह होता है कि परमात्मा यहां अवतरित होकर हम अक्षत अथवा अविनाशी आत्माओं एवं पंचतत्व की प्रकृति को शुद्ध करें। दिव्यज्ञान को धारण करने वाली आत्मा आम्रपत्र (पल्लव) के समान हमेशा हरियाली (सुखमय) युक्त रहे।
 
कलश में डाला जाने वाला दूर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प इस भावना को दर्शाती है कि हमारी पात्रता में दूर्वा (दूब) के समान जीवनी-शक्ति, कुश जैसी प्रखरता, सुपारी के समान गुणयुक्त स्थिरता, फूल जैसा उल्लास एवं द्रव्य के समान सर्वग्राही गुण समाहित हो जाए।
ALSO READ: नवरात्र‍ि का खास उपाय : किस्मत खोल देगा आपकी,मिट्टी का 1 घड़ा
ALSO READ: नवरात्रि 2020 में कलश स्थापना के सबसे अच्छे चौघड़िया मुहूर्त
ALSO READ: Shardiya Navratri Kalash Sthapana Muhurat : शारदीय नवरात्रि घटस्थापना शुभ मुहूर्त

सम्बंधित जानकारी

Show comments

April Birthday : अप्रैल माह में जन्मे हैं तो जान लीजिए अपनी खूबियां

sheetala saptami 2024 : शीतला सप्तमी पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

Sheetala ashtami vrat katha: शीतला सप्तमी-अष्टमी की कथा कहानी

Basoda puja 2024 : शीतला अष्टमी पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

Gudi padwa 2024 date : हिंदू नववर्ष पर 4 राशियों को मिलेगा मंगल और शनि का खास तोहफा

03 अप्रैल 2024 : आपका जन्मदिन

03 अप्रैल 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Vastu Tips : टी-प्वाइंट पर बने मकान से होंगे 5 नुकसान

बुध का मेष राशि में वक्री गोचर, 3 राशियों के लिए गोल्डन टाइम, 3 राशियों को रहना होगा संभलकर

22nd Roza 2024: अल्लाह की इबादत का माह रमजान, पढ़ें 22वें रोजे की खासियत

अगला लेख