shardiya navratri 2025: सामान्यत, शारदीय नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। ये नौ रूप हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। इन नौ में से ही कोई एक है किसी ने किसी कुल की कुलदेवी। हो सकता है कि आपकी कुलदेवी का नाम और स्थान अलग हो लेकिन हम आपको बताना चाहते हैं किन निम्मलिखित में से ही कोई एक किसी कुल की कुल देवी होती है।
नौदुर्गा: 1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4.कूष्माण्डा, 5.स्कंदमाता, 6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी और 9.सिद्धिदात्री।
दशा महाविद्या: 1. काली, 2. तारा, 3. त्रिपुर सुंदरी, 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10. कमला।
इसके अलावा लक्ष्मी, सरस्वती, अदिति, शतरूपा, गायत्री, श्रद्धा, शचि, सावित्री, गंगा देवी, उषा, आसादेवी आदि कई देवियां भी हैं जोकि सभी राजा दक्ष सहित ब्रह्मा के मानस पुत्रों की पुत्रियां हैं। आओ जानते हैं कि कैसे करें उनकी पूजा। शारदीय नवरात्रि में कुलदेवी की पूजा का विशेष महत्व है। यह पूजा आपके परिवार की परंपराओं और रीति-रिवाजों पर आधारित होती है, इसलिए इसमें कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं। यहाँ एक सामान्य विधि बताई गई है जिससे आप अपनी कुलदेवी की पूजा कर सकते हैं:-
कुलदेवी पूजा की तैयारी
सफाई: पूजा से पहले घर और पूजा स्थान को अच्छी तरह से साफ करें।
स्नान: स्वयं स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
सामग्री: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे- रोली, चावल, हल्दी, कुमकुम, धूप, दीप, फूल, माला, फल, मिठाई और नारियल एकत्र करें।
कलश स्थापना: यदि आपके यहाँ कलश स्थापना की जाती है, तो उसे शुभ मुहूर्त में स्थापित करें। कलश में जल भरकर उसके मुख पर आम के पत्ते और ऊपर नारियल रखें।
कुलदेवी की पूजा विधि
संकल्प: सबसे पहले हाथ में जल, फूल और चावल लेकर अपनी मनोकामना कहते हुए पूजा का संकल्प लें।
ध्यान और आवाहन: कुलदेवी का ध्यान करें और उनका आवाहन करें। मंत्रों का जाप करते हुए उन्हें अपने पूजा स्थान पर आने का निमंत्रण दें।
पीठिका पूजा: एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर कुलदेवी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
षोडशोपचार पूजा: कुलदेवी की पूजा सोलह (16) उपचारों के साथ की जाती है:
आसन: देवी को आसन दें।
स्वागत: उनका स्वागत करें।
पाद प्रक्षालन: उनके चरण धोएँ।
अर्घ्य: हाथ धोने के लिए जल दें।
आचमन: पीने के लिए जल दें।
स्नान: जल से स्नान कराएँ।
वस्त्र: नए वस्त्र अर्पित करें।
आभूषण: आभूषण और श्रृंगार सामग्री (चुनरी, बिंदी आदि) चढ़ाएँ।
गंध: चंदन, इत्र आदि लगाएँ।
पुष्प: फूल और माला चढ़ाएँ।
धूप: धूप जलाएँ।
दीप: दीपक जलाएँ।
नैवेद्य: फल और मिठाई का भोग लगाएँ।
आचमन: भोग के बाद जल दें।
ताम्बूल: पान का पत्ता, सुपारी, इलायची अर्पित करें।
आरती: कुलदेवी की आरती करें।
क्षमा प्रार्थना: पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए देवी से क्षमा माँगें।
कुछ विशेष बातें
ज्वारे बोना: कई परिवारों में ज्वारे (जौ) बोने की परंपरा होती है, जो सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
अखंड ज्योति: नवरात्रि के दौरान कुछ लोग अखंड ज्योति जलाते हैं, जो नौ दिनों तक लगातार जलती रहती है।
कन्या पूजन: अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन का विधान है। 9 कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें।
कुल मिलाकर, कुलदेवी की पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ की जानी चाहिए। यह आपके परिवार की परंपराओं और विश्वास को और भी मजबूत करती है।