क्रमांक | देवी का स्वरूप | औषधीय नाम | मुख्य लाभ और गुण |
1 | शैलपुत्री | हरड़ | आयुर्वेद की प्रधान औषधि। सात प्रकार की होती है (हरीतिका, पथया, कायस्थ, अमृता, हेमवती, चेतकी, श्रेयसी)। यह भय हरने वाली, हितकारी और शरीर को बनाए रखने वाली है। |
2 | ब्रह्मचारिणी | ब्राह्मी | आयु, स्मरण शक्ति और स्वर को मधुर करने वाली। रूधिर (रक्त) विकारों का नाश करती है। मन-मस्तिष्क को शक्ति देती है, गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। |
3 | चंद्रघंटा | चन्दुसूर/चमसूर | धनिये के समान पौधा जिसकी पत्तियों की सब्जी बनती है। मोटापा दूर करने में सहायक। शक्ति बढ़ाती है और हृदय रोग में लाभप्रद है। इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। |
4 | कूष्माण्डा | पेठा/कुम्हड़ा | पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक और रक्त के विकार को ठीक करता है। पेट साफ करने में सहायक। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए अमृत समान। रक्त पित्त और गैस को दूर करता है। |
5 | स्कंदमाता | अलसी | पार्वती और उमा के नाम से भी जानी जाती है। वात, पित्त और कफ - तीनों दोषों से होने वाले रोगों की नाशक औषधि है। |
6 | कात्यायनी | मोइया/माचिका | इसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार और कंठ के रोगों का नाश करती है। |
7 | कालरात्रि | नागदौन | महायोगिनी भी कहा जाता है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक, सर्वत्र विजय दिलाने वाली। मन और मस्तिष्क के विकारों को दूर करती है। घर में लगाने पर कष्टों को दूर करती है और सभी विषों का नाश करती है। |
8 | महागौरी | तुलसी | प्रत्येक घर में लगाई जाने वाली औषधि। यह सात प्रकार की होती है। रक्त को साफ करती है और हृदय रोग का नाश करती है। |
9 | सिद्धिदात्री | शतावरी | नारायणी भी कहते हैं। बुद्धि, बल और वीर्य के लिए उत्तम। रक्त विकार, वात-पित्त शोध नाशक है और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। |