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Shardiya Navratri 2025: नवरात्रि में दुर्गासप्तशती पाठ करने के नियम और विधि

WD Feature Desk
शुक्रवार, 19 सितम्बर 2025 (17:24 IST)
Durga saptashati path during Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से प्रारंभ होकर 1 अक्टूबर 2025 को समाप्त होगी। इस दिन माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस दौरान कई लोग दुर्गासप्तशती का पाठ भी करते हैं। इस नवरात्री यदि आप दुर्गासप्तशती पाठ करने वाले ये तो हमारे बताए प्लान के अनुसार करेंगे तो तेरह अध्याय आसानी से हो जाएंगे। यह एक नियम भी है। 3 दिन, 7 दिन और 9 दिन की योजना यहां विस्तार से दी गई है। इसी के साथ यहां सप्तशती के पाठ की विधि में जान लें। 
 
1. पहला प्लान: 3 दिन में पाठ करने की विधि: पहले दिन पहला अध्याय, दूसरे दिन दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय और तीसरे दिन पांचवें अध्याय से अंतिम तेरहवें अध्याय तक। 
 
2. दूसरा प्लान: 7 दिन में पाठ करने की विधि: पहले दिन पहला, दूसरे दिन दूसरा और तीसरा, तीसरे दिन चौथा, पांचवें दिन पांचवां, छठा, सातवां और आठवां, छठे दिन ग्यारहवां और सातवें दिन बारहवां एवं तेरहवां अध्याय। 
 
3. तीसरा प्लान: 9 दिन में पाठ करने की विधि: पहले दिन पहला, दूसरे दिन दूसरा और तीसरा, तीसरे दिन चौथा, चौथे दिन पांचवां, पांचवें दिन छठा और छठे दिन आठवां अध्याय, सातवें दिन नौवां और दसवां अध्याय, आठवें दिन ग्यारहवां अध्याय, नौवें दिन बारहवां और तेरहवां अध्‍याय।  
 
दुर्गासप्तशती पाठ करने की विधि:-
आरंभ में पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उसके ऊपर कलश को विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर मूर्ति की प्रतिष्ठा करें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति होने की आशंका हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दे। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके दोनों भुजाओं में त्रिशूल बनाकर दुर्गाजी का चित्र, पुस्तक तथा शालग्राम को विराजित कर विष्णु का पूजन करें। पूजन सात्विक हो, राजस और तामस नहीं।
 
नवरात्र व्रत के आरंभ में स्वस्ति वाचक शांति पाठ कर संकल्प करें और तब सर्वप्रथम गणपति की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण का विधि से पूजन करें। फिर प्रधानमूर्ति का षोड़शोपचार पूजन करना चाहिए। अपने ईष्टदेव का पूजन करें। पूजन वेद विधि या संप्रदाय निर्दिष्ट विधि से होना चाहिए। दुर्गा देवी की आराधना अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराण के अनुसार श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मुख्य अनुष्ठान कर्तव्य है।
 
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ विधि:-
श्री दुर्गा सप्तशती पुस्तक का विधिपूर्वक पूजन कर इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए।
 
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्‌।
 
इस मंत्र से पंचोपचार पूजन कर यथाविधि पाठ करें। देवी व्रत में कुमारी पूजन परम आवश्यक माना गया है। सामर्थ्य हो तो नवरात्रि भर प्रतिदिन, अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कुमारियों के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मानकर गंध-पुष्पादि से अर्चन कर आदर के साथ यथारुचि मिष्ठान भोजन कराना चाहिए एवं वस्त्रादि से सत्कार करना चाहिए।
 
कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का अर्चन विशेष महत्व रखता है। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली सुभद्रा स्वरूपा होती है। दुर्गा पूजा में प्रतिदिन की पूजा का विशेष महत्व है जिसमें प्रथम शैलपुत्री से लेकर नवम्‌ सिद्धिदात्री तक नव दुर्गाओं की नव शक्तियों का और स्वरूपों का विशेष अर्चन होता है।
 

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