दैविक साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ चैत्र नवरात्र

पं. अशोक पँवार 'मयंक'
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नवरात्र आह्वान है शक्ति की शक्तियों को जगाने का ताकि हममें देवी शक्ति की कृपा होकर हम सभी संकटों, रोगों, दुश्मनों, प्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। शारीरिक तेज में वृद्धि हो। मन निर्मल हो व आत्मिक, दैविक, भौतिक शक्तियों का लाभ मिल सके ।

चैत्र नवरात्र माँ भगवती जगत जननी को आह्वान कर दुष्टात्माओं का नाश करने के लिए जगाया जाता है। प्रत्येक नर-नारी जो हिन्दू धर्म की आस्था से जुड़े हैं वे किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं देवी की उपासना करते ही हैं। फिर चाहे व्रत रखें, मंत्र जाप करें, अनुष्ठान करें या अपनी-अपनी श्रद्धा-‍भक्ति अनुसार कर्म करते रहें। वैसे माँ के दरबार में दोनों ही चैत्र व अश्विन मास में पड़ने वाले शारदीय नवरात्र की धूमधाम रहती है। सबसे अधिक अश्विन मास में जगह-जगह गरबों की, जगह-जगह देवी प्रतिमा स्थापित करने की प्रथा है।

चैत्र नवरात्र में घरों में देवी प्रतिमा-घट स्थापना करते हैं। इसी दिन से नववर्ष की बेला शुरू होती है। महाराष्ट्रीयन समाज में इस दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। घर-घर में उत्साह का माहौल रहता है। कुछ साधकगण भी शक्तिपीठों में जाकर अपनी-अपनी सिद्धियों को बल देते हैं। अनुष्ठान, हवन आदि का पर्व भी होता है। कुछेक अपनी वाकशक्ति को बढ़ाते हैं तो कोई अपने शत्रु से राहत पाने के लिए माँ बगुलामुखी का जाप-हवन आदि करते हैं। कोई काली का उपासक है तो कोई नवदुर्गा का। कुछ भी हो किसी न किसी रूप में पूजा तो देवी की ही होती है।
 
  नवरात्र आह्वान है शक्ति की शक्तियों को जगाने का ताकि हममें देवी शक्ति की कृपा होकर हम सभी संकटों, रोगों, दुश्मनों, प्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। शारीरिक तेज में वृद्धि हो। मन निर्मल हो व आत्मिक, दैविक, भौतिक शक्तियों का लाभ मिल सके।      

आइए जानें देवी के नवरूप व पूजन से क्या फल मिलते हैं। वैसे फल की इच्छा न करते हुए ही पूजा करना चाहिए।

1. शैलपुत्री‍
माँ दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म होने से इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। नवरात्र की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से भक्त सदा धनधान्य से परिपूर्ण रहते हैं।

2. ब्रह्मचारिणी
माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। माँ दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।

3. चंद्रघंटा
माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है, आकर्षण बढ़ता है।

4. कुष्मांडा
चतुर्थी के दिन माँ कुष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।

5. स्कंदमाता
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन आपकी उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।

6. कात्यायनी
माँ का छठा रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है।

7. कालरात्रि
नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है।

8. महागौरी
देवी का आठवाँ रूप माँ गौरी है। इनका अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। पूजन करने से समस्त पापों का क्षय होकर कांति बढ़ती है। सुख में वृद्धि होती है, शत्रु-शमन होता है।

9. सिद्धिदात्री
माँ सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्र की नवमी के दिन की जाती है। इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो माँ की कृपा का पात्र बनता ही है। वाकसिद्धि व शत्रु नाश हेतु मंत्र भी बता दें। इनका विधि-विधान से पूजन-जाप करने से निश्चित फल मिलता है।

शत्रु नाश हेतु :- ॐ ह्रीं बगुलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिव्हामकीलय बुद्धिविनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा

वाकसिद्धि हेतु :- ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम: ॐ वद बाग्वादिनि स्वाहा

वाकशक्ति प्राप्त करने वाले को माँ वाघेश्वरी देवी के सम्मुख जाप करने से वाणी की शक्ति मिलती है, जिससे वह जातक जो कहता है वह बात पूर्ण होती है। वाघेश्वरी का मंदिर बुरहानपुर से 15 किलोमीटर आगे धमनगाँव की टेकरी पर स्थित है।

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