अनंतनाग के 'वोट' तय करेंगे किसमें है 'दम'

-सुरेश एस डुग्गर

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कश्मीर घाटी में परसों 24 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव के दौरान अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में मतदान होगा। इस संसदीय क्षेत्र में होने वाला मतदान प्रतिशत अगर अगले दो चरणों की तस्वीर को भी तय करेगा तो साथ ही दर्शाएगा कि दोनों पक्षों-अलगाववादियों और प्रशासन- के बाजु-ए-कातिल में कितना दम है।

राजनीतिक पंडित भी इसे मानते हैं कि अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में परसों होने वाला मतदान का प्रतिशत संकेत देगा कि कश्मीर घाटी के लोग अलगाववादी हुर्रियत और आतंकियों की चुनाव बहिष्कार की घोषणा की अनदेखी करके वोट डालने के लिए निकलते हैं या नहीं। अनंतनाग कश्मीर घाटी का पहला संसदीय क्षेत्र है जहां मतदान होने वाला है। घाटी का यह सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र भी है, चार जिलों में फैले इस क्षेत्र में 16 विधानसभा क्षेत्र हैं।

आतंकी गतिविधियों से काफी अधिक प्रभावित रहे इस जिले में अब कुछ ही आतंकी बचे हैं, परंतु हुर्रियत और आतंकियों दोनों ने इस बार चुनाव बहिष्कार की घोषणा की है। एक मतदाता का कहना था कि विधानसभा चुनाव के दौरान आतंकियों ने सक्रिय रूप से बाधा नहीं पहुंचाई थी। इस बार सभी आतंकियों ने चेतावनी जारी की है। इससे कुछ स्थानों पर मतदान प्रभावित हो सकता है।

अनंतनाग में कुल 12.74 लाख मतदाता हैं। इनमें 6.72 लाख पुरुष और 6.02 लाख महिलाएं हैं। संसदीय क्षेत्र में कुल 1615 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। वर्ष 2008 के दिसम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में 58 प्रतिशत मतदान हुआ था। विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को अनंतनाग संसदीय क्षेत्र के 16 विधानसभा क्षेत्रों में से 12 में विजय हासिल हुई थी। कांग्रेस को दो सीटों पर और नेशनल कांफ्रेंस तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को एक-एक सीट पर विजय हासिल हुई थी।

अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में पीडीपी मजबूत है लेकिन सत्तारुढ़ नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने भी क्षेत्र में पीडीपी को हराने के लिए भारी प्रचार किया है। अनंतनाग में कुल 11 उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुकाबला पीडीपी प्रत्याशी महबूबा मुफ्ती और नेकां उम्मीदवार व निर्वतमान सांसद महबूब बेग के बीच है।

इतना जरूर है कि 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान जो उत्साह कश्मीरियों में देखा गया था वह इन दिनों संसदीय चुनावों में कहीं नजर नहीं आ रहा है। न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में कोई ज्यादा उत्साह है और न आम मतदाता चुनाव को लेकर कोई उत्सुकता दिखा रहा है। नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की कुछ खास स्थानों पर चुनावी रैलियों के अलावा ज्यादातर इलाकों में कोई चुनाव प्रचार करता नहीं दिख रहा है।

लोगों को मतदान केंद्रों तक लाने और अपने कार्यकताओं में जोश भरने के लिए डॉक्‍टर फारूक अब्दुल्ला, मुफ्ती मुहम्मद सईद और प्रोफेसर सैफुद्दीन सोज खुद चुनाव प्रचार में जुटे हैं, लेकिन वे भी ज्यादा उत्साह जगाने में असमर्थ नजर आ रहे हैं। लोगों में चुनाव के प्रति उदासीनता से न सिर्फ सियासी दल घबराए हुए हैं बल्कि सुरक्षा एजेंसियां और प्रशासन भी। मतदान में अपेक्षा से ज्यादा कमी का मतलब है वादी में हालात सामान्य होने के किए जा रहे दावों पर सवालिया निशान लगना और अलगाववादियों की कामयाबी।

विशेषज्ञों का मानना है कि संसदीय चुनवों में पोलिंग विधानसभा चुनावों की तुलना में दस से पंद्रह प्रतिशत तक कम हो सकती है, लेकिन यहां यह 50 प्रतिशत से भी ज्यादा कम होती नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि इस बार अलगाववादियों ने बड़े सुनियोजित तरीके से चुनाव बहिष्कार अभियान चला रखा है। उनके लोग मस्जिदों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा इस बार हिजबुल मुजाहिदीन और लश्करे तौयबा ने वोटरों और चुनाव में हिस्सा लेने वालों को सजा देने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा कि अगर इस बार कश्मीर में 25 से 35 प्रतिशत मतदान होता है तो उसे कामयाबी समझा जाना चाहिए।

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