Dharma Sangrah

एमबीबीएस और बीएएमएस का पुछल्ला कब तक?

Webdunia
- डॉ. आदित्य नारायण शुक्ला 'विनय'
 


 
यह मेरी नहीं, अमेरिका (यूएसए) तथा कई अन्य विदेशों में भी प्रवासी भारतीय के रूप में बसे उन हजारों डॉक्टरों की झल्लाहट है, जो भारत में दिए जाने वाले अपनी डॉक्टरी के ‘घिसे-पिटे नाम’ की डिग्री से तंग आ चुके हैं। भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़कर दुनिया के प्रायः सभी देशों में डॉक्टरी की डिग्रियों के नामों में ‘डॉक्टर’ शब्द अवश्य ही लगा रहता है।
 
भारत की डॉक्टरी (मेडिकल, डेंटल, वेटरनरी, आयुर्वेद, होम्योपैथी आदि) की डिग्रियों में सिर्फ एक 'एमडी' (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) को छोड़कर किसी भी डिग्री के नाम में 'डॉक्टर' शब्द नहीं लगा है। भारतीय डॉक्टरी की डिग्रियों के नाम आज भी 300 साल पुराने यानी ब्रिटिशकालीन ही चले आ रहे हैं, जैसे एमबीबीएस (बैचलर ऑफ मेडिसिन एंड बैचलर ऑफ सर्जरी), एमएस (मास्टर ऑफ सर्जरी), बीवीएस-सी (बैचलर ऑफ वेटरनरी साइंस), एमवीएस-सी (मास्टर ऑफ वेटरनरी साइंस), बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी), एमडीएस (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी), बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेद विथ मेडिसिन एंड सर्जरी) आदि। इन डिग्रियों के ‘फुल नेम’ में कहीं भी ‘डॉक्टर’ शब्द नहीं लगे हैं जबकि सभी विदेशों में हर डॉक्टरी की डिग्रियों में 'डॉक्टर' शब्द अवश्य लगा या जुड़ा रहता है।
 
यूरोप और दक्षिण अमेरिका के बहुत से देशों में डॉक्टरी डिग्रियों के नाम बीडी (बैचलर ऑफ डॉक्टर) और एमडी (मास्टर ऑफ डॉक्टर) होते हैं। अमेरिका सहित बहुत से विदेशों में मेडिकल लाइन की एकमात्र डिग्री है एमडी (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन)। अमेरिका में किसी रोग में विशेषज्ञ बनने के लिए उसमें 3 साल का प्रशिक्षण लेना होता है जिसका एक सर्टिफिकेट मिलता है। उसमें अलग से कोई डिग्री नहीं मिलती अतः अमेरिका के शत-प्रतिशत मेडिकल डॉक्टर केवल एमडी ही होते हैं। एमडी लिखने के बाद वे अपनी विशेषज्ञता भी लिख देते हैं। अमेरिका में पशु चिकित्सा विज्ञान यानी वेटरनरी साइंस में डीवीएम (डॉक्टर ऑफ वेटरनरी मेडिसिन) और दंत चिकित्सा में डीडीएस (डॉक्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) की डिग्री प्रदान की जाती है।
 
विषयांतर तो होगा लेकिन इस उदाहरण से हमारी मनोवृत्ति उजागर हो जाएगी। 1963 की बात है। मेरी भाभी निर्मला शुक्ला, विद्यार्थी-पत्नी की हैसियत से अमेरिका जा रही थीं। भैया श्यामनारायण शुक्ला के प्रोफेसर ने कृपा करके उनकी पत्नी को अमेरिका पहुंचने के पूर्व ही यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी में 'लायब्रेरी असिस्टेंट' की नौकरी दिलवा दी थी ताकि उनके विदेशी विद्यार्थी परिवार को कुछ आर्थिक सहायता मिल जाए। भाभी ने भारत में जब अमेरिका जाने लिए पासपोर्ट के लिए आवेदन किया तो 'लायब्रेरी असिस्टेंट' की नौकरी के नियुक्ति पत्र की एक कॉपी भी आवेदन के साथ अटैच कर दी। यह सोचकर कि इससे शायद पासपोर्ट जल्दी बनकर आ जाएगा, लेकिन हुआ ठीक इससे उल्टा। उनका पासपोर्ट नहीं बना और वहां से उत्तर आया 'चूंकि आपको विदेश में नौकरी मिली है अतः आप अपने नियोक्ता (यानी भैया की यूनिवर्सिटी) से यह पत्र भी भिजवाएं कि वे आपको अमेरिका से भारत वापस आने का खर्च भी देंगे।’
 
हवाला दिया गया था कि 1912 में (यानी ब्रिटिशकालीन भारत में) यह नियम बना था कि यदि कोई भारतीय नौकरी या रोजगार प्राप्त करने के लिए विदेश जा रहा हो तो उसे उस विदेशी कंपनी से भारत वापसी की गारंटी भी चाहिए। (शायद इसलिए कि ‘तुम वापस आकर भी हमारे गुलाम बने रहो’)। 
 
 

 


पासपोर्ट ऑफिस को भैया ने अमेरिका से दसों पत्र लिखे कि निर्मला को यह नौकरी अपने विद्यार्थी-पति को आर्थिक सहायता देने के लिए दी गई है अतः उस पर 1912 का यह नियम लागू नहीं होना चाहिए, पर पासपोर्ट कार्यालय ने कहा कि नियम सब पर लागू होता है। तब देश को स्वतंत्र हुए 16 साल हो चुके थे। ब्रिटिशकाल में बने नियम-कानून अब भी चल रहे थे। भाभी को बहुत मुश्किल से पासपोर्ट मिल पाया था। स्थानीय सांसद (बिलासपुर, छत्तीसगढ़ जहां से हमारा परिवार है) से सहायता लेनी पड़ी थी।
 
ब्रिटिशकालीन भारत में बना यह कानून या नियम 1977 तक चलता रहा। 1977 में जब अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने और उनके पास जब इस संबंध में शिकायत पहुंची, तब उन्होंने यह नियम हटाने का आदेश जारी करवाया था। वाजपेयीजी के कारण ही आम आदमी को पासपोर्ट मिलना सरल भी हुआ था। खैर...!
 
भारत से जो डॉक्टर अमेरिका आकर बसते हैं यदि वे अपने नाम के आगे एमबीबीएस या एमएस लिखें तो उन्हें यहां कोई डॉक्टर समझेगा ही नहीं अतः 'अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन' की लाइसेंस परीक्षा पास कर लेने के बाद वे भी यहां एमडी ही लिखते हैं। इसी तरह से भारत से अमेरिका आकर बसने वाले पशु चिकित्सक डीवीएम (डॉक्टर ऑफ वेटरनरी मेडिसिन) व दंत चिकित्सक डीडीएस (डॉक्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) लिखते हैं। कहना न होगा- यहां के लाइसेंस एक्जाम्स पास कर लेने के बाद ही।
 
प्रसंगवश अमेरिका में जितने भी भारतीय डॉक्टर हैं उनमें पशु चिकित्सक यानी कि 'वेटरनरी डॉक्टर' लोग मेडिकल डॉक्टरों से ज्यादा धनी हैं। प्रायः सभी भारतीय वेटरनरी डॉक्टर अमेरिका में 'मल्टी मिलियनेयर' (बहु-करोड़पति) हैं। इसका कारण यह है कि अमेरिकी लोग बेहद पशु-प्रेमी होते हैं और उन्हें अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं।
 
व्हाइट हाउस (अमेरिकी राष्ट्रपति निवास) से लेकर हर अमेरिकी घर में आपको 2-3 पालतू कुत्ते और 1-2 पालतू बिल्लियां जरूर मिलेंगे। अमेरिकनों के पालतू जानवर जरा भी बीमार हुए नहीं कि वे उन्हें वेटरनरी डॉक्टर के पास लेकर दौड़ते हैं। प्रायः सभी वेटरनरी डॉक्टर यहां प्राइवेट प्रैक्टिस ही करते हैं।
 
पुनः विषयांतर तो होगा लेकिन एक और जानकारी देना चाहूंगा। अमेरिका में कोई भी अपने घर में गाय-भैंस नहीं पाल सकता। शहरों के बाहर बड़े-बड़े सरकारी-गैरसरकारी डेयरी फॉर्म होते हैं, जहां दुधारू पशु पाले जाते हैं और उनके लिए वेटरनरी डॉक्टर्स की टीम वहां काम करती है।
 
हॉलैंड और अमेरिका दुनिया के सबसे बड़े दुग्धोत्पादक देश हैं। दूध-दही-घी-मक्खन की अमेरिका में भरमार है। सौभाग्य से दूध की काल्पनिक नदी (और दुर्भाग्य से शराब की भी) अमेरिका में ही बहती है। और इसीलिए यह देश मोटापे की समस्या से परेशान है। वैसे भारत की सभी लाइन की डॉक्टरी की डिग्रियां अमेरिका में मान्यता प्राप्त हैं। कहना न होगा उस डॉक्टरी लाइन के अमेरिकन एसोसिएशन के लाइसेंस एक्जाम्स पास कर लेने के बाद ही।
 
तो चर्चा हो रही थी भारत की डॉक्टरी डिग्रियों के नामों की। स्वतंत्रता के 68 वर्षों बाद तो अब इन ब्रिटिशकालीन (सिर्फ डॉक्टरी) की डिग्रियों के नाम तो कम से कम हमें अब बदल ही देने चाहिए। इन डिग्रियों के नामों में कम से कम ‘डॉक्टर’ शब्द अवश्य ही लगा हो। लेकिन इस संबंध में न तो विभिन्न डॉक्टरी लाइन पढ़ने वाले विद्यार्थी पहल करते हैं, न उनके प्रोफेसर और न ही उन डॉक्टरी लाइनों के भारत के एसोसिएशन ही।
 
भारतीय डॉक्टरों को अपनी डिग्रियों के 'घिसे-पिटे और बेतुके नाम' होने का आभास तब होता है, जब वे विदेश जाकर बस जाते हैं। और अक्सर इन सवालों का सामना करते हैं- 'व्हाट डू यू मीन बाई एमबीबीएस/ बीडीएस/ बीवीएस-सी' वगैरह जिनमें कहीं भी ‘डॉक्टर’ शब्द नहीं है।
 
हाल ही में एक अमेरिकी पत्रिका में पढ़ने को मिला कि श्रीलंका, पाकिस्तान, चीन, इंडोनेशिया आदि देश भी अपनी डॉक्टरी की डिग्रियों के नामों में परिवर्तन करने जा रहे हैं और उनके नए नाम होंगे- बीडी (बैचलर ऑफ डॉक्टर) और एमडी (मास्टर ऑफ डॉक्टर) जबकि भारत-अमेरिका सहित कुछ देशों में 'एमडी' का पूरा नाम ‘डॉक्टर ऑफ मेडिसिन’ है।
 
यद्यपि भारत के डॉक्टरी डिग्रियों के नाम वैसे कोई बहुत गंभीर बात या मसले नहीं हैं, लेकिन पुनः दोहराऊंगा कि यह हम आम भारतीयों की मनोवृत्ति, आदत या स्वभाव तो अवश्य ही जाहिर करता है कि जो प्रथा (वास्तव में कहना चाहिए 'ब्रिटिशकालीन कुप्रथाएं') चली आ रही हैं उन्हें बदलने का कष्ट हम उठाना ही नहीं चाहते। भले ही उन कुप्रथाओं की वजह से हम कष्ट सहते रहें और असुविधाओं का सामना करते रहें।

 
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