कौन हो तुम!

- कविता रावत

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कौन हो तुम!
पहले पहल प्रेम करने वाली
शीत लहर-सी

सप्तरंगी सपनों का ताना-बाना बुनती
चमकती चपला सी
शरद की चाँदन‍ी-सी
गुलाब की पँखुडि़यों-सी
काँटों की तीख‍ी चुभन से बेखबर
मरू में हिमकणों को तराशती
कौन हो तुम!

अधर दाँतों में दबाती
नयन फैलाती
घनघोर घटाओं में सूरज का
इंतजार करती
अरमानों को
आँचल बाँधे
मिलन की तीव्र
साधना में रत
प्रेम उपासना को उद्यत
जिंदगी के सुहावने सपनों में
खोई-खोई दिखने वाली
कौन हो तुम!

खुद से बेखबर
ऊबड़-खाबड़ राहों से जानकर अनजान
कठोर धरातल पर नरम राह तलाशती

जिंदगी के आसमान को
चटक सुर्ख रंगों से
रंगने को आतुर-व्याकुल
कौन हो तुम!
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