प्रवासी कविता : अनजानी राहें...

पुष्पा परजिया
एक अनजान राह पर चल पड़े मुसाफिर,
चलना था, बस चलना ही था इस राह पर।
 
आगे क्या होने वाला है, ये पता नहीं था,
अपने सब हैं, साथ खुशी थी इसकी काफी।
 
अपनों से दूर हुआ तो सहसा कांप उठा,
मन की धरती से आहों का संताप उठा।
 
सुख-दु:ख किसे सुनाएगा ए पथिक बता,
तेरी आंखों में तो भरे हैं अपनों के सपने।
 
तेरे इस पथ पर आते ही उनके सपने पूर्ण हुए,
पर मूक अनकहे तेरे अपने अरमां तो चूर्ण हुए।
 
किसे पता सोने के पिंजरे में पंछी की आहों का, 
दिखता है तो एक मुखौटा झूठ-मूठ की चाहों का।
 
मन में दबी उदासी बाहर से नजर नहीं आती,
छुपे हुए आंसू और आहें भी नजर नहीं आतीं।
 
अरमां सबके पूर्ण हुए, है इसका संतोष मगर,
दूर तलक तुझको अपनी मंजिल नजर नहीं आती।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

नमक-मिर्च वाली केरी खाने से पहुंचा रहे हैं सेहत को नुकसान, हो जाइये सावधान

लू लगने पर शरीर में दिखते हैं ये लक्षण, हीट स्ट्रोक से बचने के लिए अपनाएं ये उपाय और ज़रूरी सावधानियां

गर्मियों में धूप में निकलने से पहले बैग में रखें ये चीजें, लू और सन टेन से होगा बचाव

इन कारणों से 40 पास की महिलाओं को वेट लॉस में होती है परेशानी

खुद की तलाश में प्लान करें एक शानदार सोलो ट्रिप, ये जगहें रहेंगी शानदार

सभी देखें

नवीनतम

हमास की टनल बैटल स्ट्रैटेजी का इजराइल पर खौफ,गाजा में न पक्का मकान बनेगा और न ही स्कूल या अस्पताल

पृथ्वी दिवस 2025: कैसे सुधारा जा सकता है धरती के पर्यावरण को?

ईस्टर पर 10 सुंदर और प्रेरणादायक धार्मिक विचार

यीशु मसीह की 10 प्रमुख कहानियां और उनका संदेश

ईसाई समुदाय में बनते हैं ईस्टर के ये पारंपरिक व्यंजन

अगला लेख