प्रवासी कहानी : भीतर की आग

Webdunia
डॉ. सतीशराज पुष्करणा
 
पत्रकारिता में डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद सुदीप 'दैनिक सुमार्ग' में नौकरी मिलने पर बड़ा उत्साहित था। वह सोचने लगा कि जान लगाकर पत्रकार होने का दायित्व निभाऊंगा।उसे एक मर्डर केस की रिपोर्टिंग का कार्य सौंपा गया और वह जुट गया केस की गहराई तक पहुंचने में। आशातीत सफलता मिलने पर वह मन-ही-मन खुश था कि यह रिपोर्ट छपते ही वह पत्रकारिता जगत में छा जाएगा। 
 

 
बड़ी लगन से फोटुओं सहित रिपोर्ट तैयार की और पहुंच गया संपादक के कक्ष में- 'सर! उस मर्डर केस की फाइनल रिपोर्ट।
 
वाह! बड़े स्मार्ट हो, बहुत तेजी से सौंपा गया काम पूरा कर दिखाया तुमने। यह सुनकर वह फूला नहीं समाया।
 
ठीक है सुदीप! तुम समाचार-संपादक से अगला काम पूछ लो।
 
संपादक ने जिज्ञासा-भाव लिए फोटो देखे। रिपोर्ट पढ़ने लगा। वह जैसे-जैसे रिपोर्ट पढ़ता जा रहा था, भीतर-ही-भीतर परेशान-सा होता जा रहा था। ...यह लड़का खुद भी मरेगा और हमें भी मरवाएगा। अखबार को तो साला ले ही डूबेगा। ये सब सोचते हुए उसका हाथ घंटी के बटन पर चला गया। 
 
चपरासी के घुसते ही, अरे! वो जो नया लड़का सुदीप आया है न, उसे बुला लाओ।

चपरासी से संपादक का आदेश सुनते ही सुदीप एक बार पुन: उत्साह से भर उठा... सर! पीठ तो जरूर थपथपाएंगे। यह सोचते-सोचते संपादक के कक्ष में प्रवेश किया। इससे पूर्व कि सुदीप कुछ कहता, संपादक ने कहना शुरू किया, अरे! ऐसी रिपोर्ट छापने का परिणाम जानते हो? तुम्हारा, हमारा और इस पूरे अखबार का अंत। जिन लोगों की तुमने पोल खोली है, जानते हो ये लोग कौन हैं? अरे ये राज्य के बड़े माफिया राधेसिंह के आदमी हैं। इनकी पैठ राज्य से केंद्रीय नेताओं तक है।
 
तो इससे क्या? हमने वही लिखा, जो सच था, प्रमाण आप देख ही रहे हैं।
 
पर क्या?
 
तुम्हें इतना कष्ट करने की जरूरत नहीं थी। पुलिस से मिलकर उससे रिपोर्ट ले लेते...।
 
सर! पत्रकारिता तो पुलिस के समानांतर खोज करके सच को सामने लाना है, मैंने वही किया है। सुदीप थोड़ा उत्तेजित-सा हो उठा।
 
देखो! जो तुमने पढ़ा था, वह आदर्श था, अब जो तुम्हें करना है उसमें व्यावहारिक होना है।
 
वह क्रोध का भाव लिए बिना कुछ कहे संपादक के सामने से रिपोर्ट एवं फोटो उठाकर कार्यालय से बाहर निकल आया। इस वक्त वह स्वयं अपने भीतर की आग से जल रहा था।
उसने निर्णय लिया क‍ि वह पत्रकारिता में उसी राह पर चलेगा, जो उसने पढ़ा है... यह अखबार नहीं, तो कोई दूसरा या तीसरा सही...।
 
साभार- हिन्दी चेतना 

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