प्रवासी कविता : बुढ़ापा अमेरिका में

Webdunia
old age poem
 
- हरनारायण शुक्ला (मिनियापोलिस, USA) 
 
अमेरिका ने यारों,
बूढ़ा कर दिया, 
वरना हम भी,
जवान थे अच्छे-खासे।
 
आए तो थे चालीस के,
अब हो गया है अस्सी,
सेहत और उम्र की कशमकश,
जिंदगी खिंची-तनी इक रस्सी।
 
मैं पापड़ बहुत ही बेला,
धक्का भी खूब खाया,
सेवा-निवृत्त जब हो ही गया,
तब जाके मुझे रास आया।

 
जिंदाबाद 'सोशल सिक्योरिटी',
वहीं से आती, मेरी दाल-रोटी, 
कुछ मिलता भी है मुझको पेंशन,
मस्ती में हूं, मैं लेता नहीं हूं टेंशन।
 
आराम की है जिंदगी,
मेरी यही पसंदगी, 
करता नहीं मैं दिल्लगी, 
प्रभु, मेरी तुझे है बंदगी।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

सम्बंधित जानकारी

Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

मेडिटेशन करते समय भटकता है ध्यान? इन 9 टिप्स की मदद से करें फोकस

इन 5 Exercise Myths को जॉन अब्राहम भी मानते हैं गलत

क्या आपका बच्चा भी हकलाता है? तो ट्राई करें ये 7 टिप्स

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.

अगला लेख