प्रवासी कविता : अपनी जड़ों से दूर

सुशील कुमार शर्मा
प्रवासी 
अपनी जड़ों से दूर
बरगद की भांति फैलते हैं
और उन जड़ों को सींचते हैं
भारत के संस्कारों के पानी से।
 
प्रवासी 
करते हैं अपनी भाषा पर गर्व
उसको आचरण में पिरोते हैं
विदेश में प्रवासी होते हैं
भारत से भी ज्यादा भारतीय।
 
प्रवासी 
सहेजते हैं अपने संस्कारों को 
अपनी संस्कृति को बनाकर आचरण।
विदेशों में बिखेरते हैं भारत की खुशबू।
 
प्रवासी
अनकहे भावों को
शब्दों की बांसुरी में गाते हैं
अभिव्यक्त करते हैं प्रकृति को
झरनों की भाषा में।
 
प्रवासी
शब्दों की लाठियों से
प्रहार करते हैं कुरीतियों पर
तोड़ते हैं विषमताओं की कमर
अपने शब्दबाणों से।
 
प्रवासी
लिखते हैं भारत के हिन्दी साहित्य को
भारत के लेखकों से भी बेहतर
उतारते हैं अपनी अनुभूतियों को
कैनवास के कागज पर।
 
प्रवासी 
जीते हैं उन संस्कारों की सांसों से
जो उनके डीएनए में है
सुसुप्त-से स्वप्न की तरह
भारत को समेटे रहते हैं
अपने अस्तित्व में।
 
प्रवासी
आते हैं पक्षी की तरह
अपनी जड़ों में लगाकर
भारत की मिट्टी
फिर उड़ जाते हैं
ले जाते हैं इस मिट्टी की खुशबू।
सात समंदर पार।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सावन माह में क्या खाएं और क्या नहीं?

वेट लॉस में बहुत इफेक्टिव है पिरामिड वॉक, जानिए चौंकाने वाले फायदे और इसे करने का तरीका

सावन में रचाएं भोलेनाथ की भक्ति से भरी ये खास और सुंदर मेहंदी डिजाइंस, देखकर हर कोई करेगा तारीफ

ऑफिस में नींद आ रही है? जानिए वो 5 जबरदस्त ट्रिक्स जो झटपट बना देंगी आपको अलर्ट और एक्टिव

सुबह उठते ही सीने में महसूस होता है भारीपन? जानिए कहीं हार्ट तो नहीं कर रहा सावधान

सभी देखें

नवीनतम

फाइबर से भरपूर ये 5 ब्रेकफास्ट ऑप्शंस जरूर करें ट्राई, जानिए फायदे

सावन में नॉनवेज छोड़ने से शरीर में आते हैं ये बदलाव, जानिए सेहत को मिलते हैं क्या फायदे

सावन में कढ़ी क्यों नहीं खाते? क्या है आयुर्वेदिक कारण? जानिए बेहतर विकल्प

हर किसी के लिए सुरक्षित नहीं होता आइस बाथ, ट्रेंड के पीछे भागकर ना करें ऐसी गलती

विश्व जनसंख्या दिवस 2025: जानिए इतिहास, महत्व और इस वर्ष की थीम

अगला लेख