विदेशी कविता : कल रात का ख्याल

रेखा भाटिया
कल रात बस यूं ही ख्याल आया सुपर बॉल देखते-देखते,

 
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सब कुछ कितना चमकीला है जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया है,
आतिशबाजियों की किलकारियों के बीच गूंजता उग्र संगीत,
जिसके बोल दिल को सुनाई नहीं देते अपितु दिमाग में शोर मचाते,
टैटुओं से सजे आधुनिक अधनंगे आदिपुरुष उछलते-गाते,
हजारों दीवानों की बेलगाम भीड़ और दर्शक बने हम,
आंखें गड़ाए बिना पलकें झपकाए मूर्ति-सा स्वांग भरे,
न भूख, न प्यास, न ही ठंड का भय, उस धार के प्रवाह में बहते,
घूंट-घूंट कोला कंठ उतरती, बहुत मीठा पर जलनभरा स्वाद,
सत्तर इंच टीवी में उभरता नशे में डुबोता नायक-गायक का चेहरा,
जैसे जादू बिखेरती किसी देवता की उभरती भव्य तस्वीर,
ऊर्जावान, सटीक, क्या बच्चे-बड़े, हाय दिल पर सीधे वार करे,
स्वप्निल विज्ञापनों की बहार सपनों की दुनिया में ले जाती,
विज्ञापन में आता शख्स, संतों की वाणी-सा मधुर बतियाता,
खेल में खिलाड़ियों को लगती चोट रोमांच को और भी बढ़ा रही थी,
खेल में हिंसा नहीं, हिंसा का खेल है,
मादकताभरे उन जीवंत क्षणों को हम कई क्षण जीना चाहते थे,
मैच खत्म हो गया, ट्रॉफी बंटी, हारी टीम के उतरे हुए चेहरे,
हमारा चढ़ता नशा क्यों उतर रहा है इन्हें देखकर,
' हाय', इतनी करुणा जगा रहा है हृदय में, 'बेचारे नसीब के मारे',
उनकी हार हमारी आंखों में समंदर उतार गई,
जीत की खुशी, हारने वालों के लिए सांत्वना-भाव,
समय बिता जीत का उत्सव संपन्न हुआ,
थके-हारे घर लौट करवट बदले हम भी सो गए,
सुबह जगे, अखबार संग चाय का प्याला लिए हाथों में,
कहीं भूकम्प ने तबाही मचाई है, कहीं बर्फबारी ने,
आधी आबादी अब भी अंधेरे में जीवन बिता रही है,
आधों के पेट खाली हैं, आधों के तन उघड़े हैं,
चौथे बिना इलाज जीने पर मजबूर हैं,
दो-तिहाइयों के सर छत भी तो नहीं है,
कहीं नारी सम्मान की जलती होली, अरमानों के छूटते पटाखे,
हिंसा-आतंक-डर के साये में हैं लाखों बच्चों के भविष्य अधर में,
छोड़ो भी मन ने पुचकारा, अखबार का पन्ना पलटो,
यह सब तो चलता रहता है,
इंसानियत, सांत्वना, करुणा, दया, मानवता,
सरकार जाने, लड़े-भिड़े, जो चाहे करे,
गांधीवाद पर चले या मार्क्सवाद पर,
कुछ भी बदलेगा नहीं, सारे राजनेता चोर हैं,
वोट देकर भी क्या फायदा?
अपने ही इतने काम हैं, हम कोई गांधी या मंडेला तो है नहीं,
पन्ना पलटा, दृश्य बदला,
कल की खूबसूरत रात की याद ताजा हो आई,
आंखें चमक उठीं, चेहरे पर मुस्कान बिखर गई,
वाह-वाह, कल रात का सुपर-बॉल देखते-देखते ख्याल आया,
मानो जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आया।

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