वृंदा की उत्पत्ति हुई तुलसी के रूप में

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तुलसी (पौध) की उत्पत्ति कैसे व क्यों हुई इसका एक दृष्टांत पौराणिक कथा में आता है।

पौराणिक कथानुसार एक बार दैत्यराज जालंधर के साथ भगवान विष्णु को युद्ध करना पड़ा। काफी दिन तक चले संघर्ष में भगवान के सभी प्रयासों के बाद भी जालंधर परास्त नहीं हुआ।

अपनी इस विफलता पर श्री हरि ने विचार किया कि यह दैत्य आखिर मारा क्यों नहीं जा रहा है। तब पता चला की दैत्यराज की रूपवती पत्नी वृंदा का तप बल ही उसकी मृत्यु में अवरोधक बना हुआ है। जब तक उसके तप बल का क्षय नहीं होगा तब तक राक्षस को परास्त नहीं किया जा सकता। इस कारण भगवान ने जालंधर का रूप धारण किया व तपस्विनी वृंदा की तपस्या के साथ ही उसके सतीत्व को भी भंग कर दिया। इस कार्य में प्रभु ने छल व कपट दोनों का प्रयोग किया।
 
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इसके बाद हुए युद्ध में उन्होंने जालंधर का वध कर युद्ध में विजय पाई। पर जब वृंदा को भगवान के छलपूर्वक अपने तप व सतीत्व को समाप्त करने का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुई व श्रीहरि को श्राप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओ।

इस श्राप को प्रभु ने स्वीकार किया पर साथ ही उनके मन में वृंदा के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया। तब उन्होंने उससे कहा कि वृंदा तुम वृक्ष बन कर मुझे छाया प्रदान करना। वही वृंदा तुलसी रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुई व भगवान शालिग्राम बने। इस प्रकार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी-शालिग्राम का प्रादुर्भाव हुआ।
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