पंचांगों में तिथि भ्रम दूर होना चाहिए

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- अखिलेश

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हिन्दू धर्म विशाल धर्म है। इसके अनुयायी देश ही नहीं विश्व के कोने-कोने में फैले हुए हैं। इसमें विभिन्न वर्ग भी बँटे हुए हैं। अनेक धर्माचार्य हैं, महापंडित हैं, पंचांग निर्माता हैं। भारत में मुख्य माना जाने वाला यह धर्म अनेक विशेषताएँ लिए हुए है। इनमें एक विशेषता यह है कि देश में अलग-अलग स्थानों पर समय की गणना और सूर्य की स्थिति के अनुसार तथा अन्य कारणों से पंचांग निर्माता अपनी-अपनी पंचांग प्रतिवर्ष बनाते हैं।

इन पंचांगों में कई बार ऐसा होता है कि कभी तो कोई तिथि का लोप हो जाता है तो कोई तिथि दो बार आती है। इस कारण होता यह है कि देश में कोई महत्वपूर्ण त्योहार या व्रत दो भागों में बँट जाता है। देश के एक हिस्से में ‍वह त्योहार पहले दिन तो दूसरे हिस्से में अगले दिन मनाया जाता है। तिथि भ्रम के कारण सरकारों को भी अवकाश घोषित करने में दिक्कत होती है। कभी-कभी तो ऐसी स्थिति भी निर्मित हो जाती है कि एक ही शहर में दो दिनों तक अलग-अलग त्योहार मनाया गया।

इससे जिस व्यक्ति को अवकाश मिला है उसे ज्यादा तकलीफ होती है। क्योंकि जिस रोज उसे छुट्टी मिली है, उस रोज उसका परिवार त्योहार नहीं मना पाता और जिस रोज उसे अपने कर्तव्य पर जाना है उस रोज त्योहार मनाया जाता है। ऐसे में अप्रिय स्थिति निर्मित हो जाती है। इस प्रकार के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जब लोग असहज महसूस करते हैं।
  भारत में मुख्य माना जाने वाला यह धर्म अनेक विशेषताएँ लिए हुए है। इनमें एक विशेषता यह है कि देश में अलग-अलग स्थानों पर समय की गणना और सूर्य की स्थिति के अनुसार तथा अन्य कारणों से पंचांग निर्माता अपनी-अपनी पंचांग प्रतिवर्ष बनाते हैं।      


यदि हमारे देश के धर्मगुरु, विद्वान, ‍पंचांग निर्माता, ज्योतिषाचार्य इस स्थिति से बचने के लिए पहल करें तो यह धर्महित में रहेगा। इसके लिए मैं कुछ सुझाव देना चाहूँगा-

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पहला तो यह कि प्रतिवर्ष पंचांग निर्माण के पूर्व देशभर के धर्मगुरु, विद्वान, ज्योतिषाचार्य, पंचांग निर्माता आपस में एक महासम्मेलन आयोजित करें। इसमें इन परिस्थितियों पर गहन विचार-विमर्श हो। व्यवस्था ऐसी हो कि सभी पंचांगों में इन पर्वों, त्योहारों के बारे में एकरूपता हो। उसमें इस बात का स्पष्ट उल्लेख हो कि तिथि चाहे दो हो लेकिन फलाँ त्योहार फलाँ दिन ही मनेगा।

दूसरी बात यह कि यदि सम्मेलन में किसी तिथि को लेकर मसला नहीं सुलझ पाए तो उस त्योहार की अलग-अलग प्रदेश में अलग-अलग मनाने की घोषणा कर दी जाए यानी मान लो कि दशहरा पर्व मंगलवार और बुधवार दोनों दिन है तो ऐसा तय होना चाहिए कि मध्यप्रदेश के विद्वान जो दिन तय करें वह दिन पूरे प्रदेश के लिए मान्य हो। इसी प्रकार अन्य राज्यों के विद्वान भी तय कर लें। इससे सरकारों को भी अवकाश घोषित करने में सुविधा होगी और त्योहार मनाने वाले भी खुश रहेंगे।
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