परशुराम अवतार

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प्राचीन समय की बात है। पृथ्वी पर हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार बढ़ गया था। सभी तरफ हाहाकार मचा हुआ था। गौ, ब्राह्मण और साधु असुरक्षित हो गए। ऐसे में भगवान स्वयं परशुराम के रूप में जमदग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका के गर्भ से अवतरित हुए।

उन दिनों हैहयवंश का राजा सहस्रबाहु अर्जुन था। वह बहुत ही अत्याचारी था। एक बार वह जमदग्नि ऋषि के आश्रम पर आया। आश्रम के पेड़-पौधों को तो उजाड़ ही दिया साथ ही ऋषि की गाय भी ले गया। जब परशुरामजी को उसकी दुष्टता का समाचार मिला तो उन्होंने सहस्रबाहु अर्जुन को मार डाला। सहस्रबाहु के मर जाने पर उसके दस हजार लड़के डरकर भाग गए।

सहस्रबाहु अर्जुन के जो लड़के परशुरामजी से हारकर भाग गए थे, उन्हें अपने पिता के वध की याद निरंतर बनी रहती थी। कहीं एक क्षण के लिए भी उन्हें चैन नहीं मिलता था।
  प्राचीन समय की बात है। पृथ्वी पर हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार बढ़ गया था। सभी तरफ हाहाकार मचा हुआ था। गौ, ब्राह्मण और साधु असुरक्षित हो गए। ऐसे में भगवान स्वयं परशुराम के रूप में जमदग्नि ऋषि की पत्नी रेणुका के गर्भ से अवतरित हुए।      


एक दिन की बात है। परशुरामजी अपने भाइयों के साथ आश्रम के बाहर गए हुए थे। अनुकूल अवसर पाकर सहस्रबाहु के लड़के वहाँ आ पहुँचे। उस समय महर्षि जमदग्नि को अकेला पाकर उन पापियों ने उन्हें मार डाला। सती रेणुका सिर पीट-पीटकर जोर-जोर से रोने लगीं।

परशुरामजी ने दूर से ही माता का करुण क्रंदन सुन लिया। वे बड़ी शीघ्रता से आश्रम पर आए। वहाँ आकर देखा कि पिताजी अब इस संसार में नहीं हैं। उन्हें बहुत दुःख हुआ। वे क्रोध और शोक के मोहवश हो गए। उन्होंने पिता का शरीर तो भाइयों को सौंप दिया और स्वयं हाथ में फरसा उठाकर क्षत्रियों का संहार कर डालने का निश्चय किया।

भगवान ने देखा कि वर्तमान क्षत्रिय अत्याचारी हो गए हैं। इसलिए उन्होंने अपने पिता के वध को निमित्त बनाकर इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियविहीन कर दिया। भगवान ने इस प्रकार भृगुकुल में अवतार ग्रहण करके पृथ्वी का भार बने राजाओं का बहुत बार वध किया।

तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपने पिता को जीवित कर दिया। जीवित होकर वे सप्तर्षियों के मंडल में सातवें ऋषि हो गए। अंत में भगवान ने यज्ञ में सारी पृथ्वी दान दे दी और स्वयं महेन्द्र पर्वत पर चले गए।

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