बिखरी छठ की छटा...

सूर्यदेव की आराधना के पर्व की धूम

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बिहार के सुप्रसिद्ध पर्व छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है। यूपी-बिहार के काफी लोग संस्कारधानी में भी निवास करते हैं। छुट्टियों की कमी, रिजर्वेशन न मिलने की वजह से घर न जा पाने वाले या यहीं बस जाने वाले लोग पूरे हर्ष-उल्लास से डाला छठ का आयोजन कर रहे हैं। खरना के कारण आज हर तरफ सूर्यदेव की आराधना के पर्व की धूम है...

पौराणिक संदर्भ- छठ पूजा का पौराणिक संदर्भ भी है। कहते हैं द्वापर में जब पाण्डव वनवास कर रहे थे और उन्हें विजय का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था, तब द्रौपदी ने धैम्य ऋषि से सहायता मांगी। धैम्य ऋषि ने उन्हें सतयुग की कथा सुनाते हुए छठ व्रत करने की सलाह दी। उसी समय से छठ व्रत मनाया जा रहा है।

मनाया गया नहाय-खाय- चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार का पहला दिन नहाय-खाय का होता है। गुरुवार को नहाय-खाय की पूजा पारंपरिक उल्लास के साथ संपन्न हुई। इस दिन नहाने के बाद सूर्य को नमस्कार कर भोजन ग्रहण करने का रिवाज है। प्रसाद में चने की दाल और लौकी अनिवार्य होती है।

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खरने की पूजा- मुख्य व्रत आज शुक्रवार को प्रारंभ होगा। दिनभर उपवास के बाद शाम को नए चावल की खीर का भोग लगेगा और उसका वितरण किया जायेगा।

पहला अरग कल- शनिवार को पहला अरग अर्थात सूर्य अर्घ्य का पहला दिन होगा। नदी या तालाब में गीले शरीर से दूध और पानी से डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जायेगा।

दूसरा अरग और पारन- दूसरे अर्घ्य के दिन ही पूजा के बाद छठ व्रती 36 घंटे के उपवास के बाद पारन करते हैं। सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

आयोजन में हो रहीं दिक्कतें- छठ पूजा में पवित्रता का काफी ध्यान रखना पड़ता है। यहाँ छठ पूजा करने वालों को सभी सामान उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। कच्ची हल्दी, अदरक, सुथनी, अरता जैसी चीजें बिहार में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, पर यहाँ के बाजार में नहीं हैं। यही हाल आम की लक़ड़ी और गन्ने के सूखे रेशे का है।

घाट हो गए साफ- पहले अरग के दिन सूर्य को अर्घ्य देने के लिए लोग ग्वारीघाट, छठ ताल, हनुमानताल में मुख्य रूप से जाते हैं। हनुमानताल में छठ पूजा को लेकर साफ-सफाई की गई है। रांझी के छठ ताल में पहले से ही लोग अपने घाट आरक्षित कर रहे हैं।

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