हरितालिका तीज : अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति

सुख-सौभाग्य वर्धक हरितालिका तीज

- पं. प्रेमकुमार शर्मा
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गंगा, यमुना की इस पावन धरती पर जहाँ गंग ा- यमुना जैसी नदियों का पवित्र जल प्रत्येक जीव को अपने शीतल जल से तृप्त कर अपने नजदीक आए प्राणी चाहे वह कितना ही व्यथित या दुःखी हो उसके पापों को नष्ट कर उसे जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान कर उसका लौकिक व पारलौकिक जीवन सँवारती हैं। वहीं व्रत त्योहारों के माध्यम से स्त्री-पुरुष जीवन पथ पर मुर्झाएँ हुए तन, मन को पुनः खिलाने में सफलता प्राप्त करते हैं। इस संसार में सृष्टि के निर्माण व विकास में स्त्री-पुरुष महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं।

अतएवं सृष्टि के विकास व निर्माण हेतु एक उत्तम व सुयोग्य जीवन साथी की तलाश युवा अवस्था की आहट आते ही शुरू हो जाती है। एक ऐसा साथी जो कि गृहस्थ आश्रम के दायित्वों व पति-पत्नी के कर्तव्यों को बाखूबी निभाएँ। दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित हो, भारत वर्ष में रिश्तों की पवित्रता व मधुरता जग जाहिर है। जहाँ धर्म ग्रंथों में त्रिदेव समूहों के विवाह की कथाओं व जनश्रुतियों का बड़ा ही रोचक उल्लेख मिलता हैं।

हरितालिका तीज का व्रत इस वर्ष 10 सितंबर दिन शुक्रवार 2010 को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाएगा। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र होने से यह और अधिक बहुमूल्य योग है। ऐसा योग कभी-कभी ही मिलता है।

व्रत के सामान्य नियम :- इस व्रत में कुछ ना खाने-पीने की वजह से ही इसका नाम हरितालिका तीज पड़ा। व्रती स्त्री को पहले नित्य कर्म स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त (यदि संभव हो तो गंगा-यमुना में स्नान) हो प्रसन्नतापूर्वक वस्त्राभूषणों से श्रृंगार कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए, व्रत के दौरान किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए, किसी प्रकार के तामसिक आहार व अन्न, चाय, दूध, फल, रस (जूस) आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

व्रत के समय हरि चर्चा व भजन, कीर्तन करते रहना चाहिए और सायंकाल में माँ पार्वती व भगवान शिव की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए, अर्थात्‌ शिव व पार्वती को उनसे संबंधित श्रृंगार की वस्तुएँ, फल, दक्षिणा अर्पित कर आरती करें। व्रत की कथा सुनें, अपराध क्षमा प्रार्थना कर भगवान को प्रणाम करें और बड़ों व ब्राह्मणों को प्रणाम कर भोजन व दक्षिणा दें, जिससे व्रत पूर्णतया सफल रहता है।

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धर्म शास्त्रों के अनुसार माँ पार्वती ने हिमांचल के घर जन्म लेकर पुनः शिव को पति के रूप में पाने के लिए कई वर्षों तक कठिन व्रत किया उनकी नाना प्रकार से कठिन परीक्षा ली गई, उनकी स्वच्छ व कठिन तपस्या से प्रसन्न हो शिव ने उन्हें वांछित वर माँगने के लिए कहा था, किन्तु पार्वती द्वारा उन्हें अपने पति के रूप में व खुद को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वर माँगा जिसे सहर्ष भगवान शिव को देना पड़ा।

माँ पार्वती ने इसी तिथि को सौभाग्य (पति) रूप में अन्नत अविनाशी भगवान शिव को प्राप्त किया था। अर्थात्‌ श्रद्धा-विश्वास के द्वारा हरितालिका तीज का व्रत जो भी स्त्री करती है उसे इस संसार व स्वर्ग लोक के सभी सुख-वैभव प्राप्त होते हैं, उसका सुहाग अखण्ड रहता है।

- हरितालिका तीज व्रत कुँवारी (युवा) कन्याएँ सुयोग्य तथा सुन्दर, मनोवांछित, सुशील और स्वास्थ्य जीवन साथी (पति) की प्राप्ति के लिए करती हैं।

- जो वैवाहिक जीवन में पदार्पण कर चुकी हैं वह अपने पति की सुख, समृद्धि व दीर्घायु की कामना से इस व्रत को करती हैं।

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- अर्थात्‌ यह व्रत स्त्रियों के लिए है जिसे कोई भी स्त्री कर सकती है। यह बहुत ही कठिन व त्याग का व्रत है, जिसमें द्वितीया की रात को ही सुहागिन महिलाएँ दातून व मंजन करके, नाना प्रकार के सुहाग से सज और कन्या अपने यथावत रूप में उनके लिए जो मान्य है उन अलंकारों से सज तृतीया के दिन निर्जला व्रत रखती हैं। जिसमें अन्न, जल, फल आदि खाद्य पदार्थों को त्याग कर पूरे दिन व्रत रखा जाता है।

- भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को इस व्रत को करने का विधान है, इस व्रत के पुण्य प्रभाव से व्रती स्त्री के सभी ज्ञात-अज्ञात पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उसे मनोवांछित फल व शिव लोक की प्राप्ति होती है।

- इस व्रत को करने से पहले तृतीया के एक दिन पहले अर्थात्‌ द्वितीया के दिन से शुद्ध शाकाहरी व्यंजनों मात्र का सेवन करके सोने से पहले मंजन या महुएँ के पेड़ की दातून करें और सदाशिव व माँ पार्वती से विन्रम प्रार्थना करें कि हे!

देवी पार्वती व भगवान शिव आप मुझे इतनी शक्ति देना कि मैं इस दिन निराहार रहते हुए आपकी पूजा-वन्दना बड़े प्रसन्न मन से कर सकूँ और मेरे सारे मनोरथ पूर्ण हो। मुझे अखण्ड सुख-सौभाग्य तथा पुत्र, ऐश्वर्य की प्राप्ति हो। मेरा मन किसी प्रकार विचलित न हो।

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